गोरखपुर

दीन-ए-इस्लाम में औरतों का बुलंद मर्तबा: महजबीन सुल्तानी

‘बज़्म-ए-ख़्वातीन’ में बच्चियों ने नात, तकरीर व किरात के मुकाबले में जीता इनाम, मिली दुआ

गोरखपुर। बुधवार को मदरसा क़ादरिया तजवीदुल कुरआन निस्वां अलहदादपुर में ‘बज़्म-ए-ख़्वातीन’ जलसा हुआ। जिसमें जिक्रा फातिमा, इल्मा नूर, आलिया, समीरा बानो, सना बानो, ज़ोया खान, काशिफा अंसारी, नौशीन फातिमा, शीबा परवीन, सीमा बानो, असनिया फातिमा, साहिबा आदि बच्चियों ने नात, तकरीर, किरात, दीनी मालूमात व सवालात जवाबात के मुकाबले के जरिए लोगों का दिल जीत लिया। इनाम के साथ दुआ भी मिली। कई बच्चियों ने बारगाह-ए-रिसालत में नात-ए-नबी का नज़राना शानदार अंदाज में पेश किया। संचालन महराजगंज की आलिमा रूकैया फिरदौस ने किया।

सदारत करते हुए आलिमा महजबीन सुल्तानी ने कहा कि कुरआन-ए-पाक की तालीम हासिल करना जरूरी है। मुसलमानों को चाहिए कि वह अपने बच्चों को कुरआन-ए-पाक व हदीस-ए-पाक जरूर पढ़ाएं। कुरआन व हदीस पढ़ने और पढ़ाने में बहुत सवाब है। हमें दीन-ए-इस्लाम के रूहानी पैगाम को समझने की पुरजोर कोशिश करनी चाहिए। दीन-ए-इस्लाम हमें पाक साफ़,भाईचारा और अमन से ज़िन्दगी जीने की तालीम देता हैं ताकि हम दुनिया में एक इज़्ज़तदार इंसान की हैसियत से ज़िन्दा रहें और हमारी पाक साफ़ ज़िन्दगी दूसरों के लिए एक मिसाल बने। हम दीन-ए-इस्लाम के उसूलों की पाबन्दी करें। दीन-ए-इस्लाम ने औरतों को काफी बुलंद मर्तबा अता किया है। बच्चियों को जिंदा दफ़न करने की पाश्विक प्रथा का खात्मा कर और बेवा से निकाह कर नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने औरतों को सम्मान के साथ जीने का हक दिलाया साथ ही पिता की जायदाद में हिस्सा भी दिलाने का काम किया।

मुख्य वक्ता महराजगंज की आलिमा फरज़ाना खान ने कहा कि मुसलमानों को दीन-ए-इस्लाम के बताए रास्ते पर चलना चाहिए। बुराई को छोड़ना चाहिए। अच्छाई को अपनाना चाहिए। अपने बच्चों को दीनी तालीम के साथ दुनियावी तालीम जरूर दिलानी चाहिए। दीन-ए-इस्लाम में इल्म की बहुत अहमियत है।

विशिष्ट वक्ता मुफ्तिया ताबिंदा खानम अमजदी ने पर्दे की अहमियत बताते हुए कहा कि पर्दा वास्तव में एक सुरक्षा कवच है, जो गैर मर्दों की बुरी नज़र से औरतों की हिफाजत करता है। दिल में खौफे खुदा पैदा कीजिए। पाबंदी के साथ नमाज पढ़िए। शरीयत पर चलिए। बच्चों को दीनी तालीम जरूर दिलवाईए।औरतों के लिए शौहर का मर्तबा सबसे आला है। मर्द के लिए मां-बाप की खिदमत के साथ-साथ बीवी-बच्चों की अच्छी परवरिश करने की जिम्मेदारी है। पांच वक्त की नमाज पाबंदी से अदायगी एवं रमज़ान के रोजे रखने के साथ जो औरत अपने शौहर की खिदमत करती है, वह जन्नत में जाएगी।

आलिमा रुबी परवीन व दरख्शां सिद्दीकी ने तिलावत-ए-कुरआन के बाद नात-ए-पाक पेश की। अंत में दरूदो सलाम पढ़कर देश की तरक्की एवं खुशहाली के साथ ही पूरी दुनिया में अमन कायम रहने की सामूहिक दुआ मांगी गई। शीरीनी तकसीम की गई। बज़्म-ए-ख़्वातीन में बड़ी तादाद में औरतों ने शिरकत की।

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