हज का शुभ अवसर चल रहा है, हज मानवता का सबसे बड़ा वार्षिक सम्मेलन है जिसमें पूरी दुनियाँ से लगभग तीस से चालीस लाख लोग एकत्रित होते है, जो बहुत सी कौमों, नस्लों और भाषाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
पूरे मानव समाज में एकता समानता और भाईचारे का ऐसा उदाहरण कहीं नहीं मिल सकता, सभी व्यक्ति एक जैसे कपड़े पहनते है और लगभग एक जैसी चप्पल, किसी देश का राजा हो राष्ट्रपति हो प्रधानमंत्री या मजदूर सबके लिये समान नियम होते है, गोरा काला कोई भेद नहीं कोई ऊँच नीच नहीं, जिस क्षण से वो हज के वस्त्र धारण करते है जिसे अहराम कहा जाता है उसी क्षण से वो पुकार उठते है कि कि अए मालिक मैं मौजूद हूँ आपकी पुकार के उत्तर में ।
अपनी पूरी यात्रा के दौरान वह अल्लाह की बड़ाई करते हुये आगे बड़ते है कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं के साथ अल्लाह की नीचे लिखे शब्दो का उच्चारण करते हुये प्रशंसा करते है।
लब्बैका अल्लाहुम्मा लब्बैक .. लब्बैका ला शरीका लका लब्बैक .. इन्नल-हम्दा वन्ने-मता लका वल-मुल्क, ला शरीका लक’’
(अर्थात : मैं हाज़िर (उपस्थित) हूँ, ऐ अल्लाह मैं हाज़िर हूँ .. मैं हाज़िर हूँ, तेरा कोई शरीक (साझी) नहीं, मैं हाज़िर हूँ .. निःसंदेह हर तरह की प्रशंसा, सभी नेमतें, और सभी संप्रभुता तेरी ही है। तेरा कोई शरीक नहीं।)
लब्बैका अल्लाहुम्मा लब्बैक’’ (मैं हाज़िर हूँ, ऐ अल्लाह मैं हाज़िर हूँ) एक उत्तर के बाद दूसरा उत्तर देने के अर्थ में है, जिसे यह दर्शाने के लिए दोहराया गया है कि यह उत्तर स्थायी और निरंतरता के साथ है कि अए अल्लाह मैं सदा और निरंतर तेरा आज्ञाकारी हूँ।
पवित्र क्षेत्र में प्रवेश से पहले उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह शालीन दशा में रहेंगे। वह अपने सांसारिक विचारों और इच्छाओं को छोड़ देते हैं, पवित्र क्षेत्र पूरी तरह सम्मानित है और इसमें किसी भी जानवर, पौधें यहाँ तक कि किसी मक्खी को भी हानि नहीं पहुँचा सकते हैं। हज यात्री हर तरह के अहंकार को छोड़े देते हैं और अपने बालों में कंघा करने, सुंगध लगाने और नाखून काटने से बचते हैं।
तमाम इच्छाओं यहाँ तक कि काम भावनाओं को भी किनारे कर दिया जाता है। हज-यात्री अल्लाह की खुशी और उसकी दया और क्षमा प्राप्त करने के लिए मक्का आते हैं।
अल्लाह की मौजूदगी के एहसास के बहुत ही महत्वपूर्ण क्षणों में यह देखते हुए कि मानवता की बड़ी संख्या मौजूद है और यह जानते हुए कि अपने अहंकार का दमन करना है क्योंकि इन अनुभवों के प्रभाव में हम सच्चे दिल से विनम्र होते हैं।
Abdul Rehman Humanist
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