लेखक: जावेद शाह खजराना
इस्लाम का परचम बुलंद करने के लिए हिंदुस्तान में आने वाले ख़्वाजा गरीब नवाज के साथी बुजुर्गों में एक नाम हजरत काजी हमीदुद्दीन नागौरी का भी है।
हज़रत काज़ी हमीदुद्दीन नागौरी बहुत बड़े आलिम और एक खुदा रसीदा बुजुर्ग थे। आप 98 साल की उम्र में ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह के साथ हिंदुस्तान तशरीफ लाए।
आपकी पैदाइश 463 हिजरी में उज़्बेकिस्तान के बुखारा के शाही खानदान में हुई आपके वालिद अताउल्लाह मेहमूद बुखारा के बादशाह थे। आपका बचपन का नाम मोहम्मद था।
आपके सूफी बनने की दास्तां यूं है आपके वालिद अताउल्लाह मेहमूद जब बहुत बुजुर्ग हो गए तब आपने हुकूमत 52 साल के हज़रत काज़ी हमीदुद्दीन नागौरी को सौप दी। आपको अपनी बीवी माहरू से बेहद मोहब्बत थी उनके इंतकाल के बाद आप अक्सर तन्हाई में बैठकर मौत और जिंदगी के मुताल्लिक सोचा करते। जब आपको महसूस हुआ कि दुनिया और तख्तोताज तो फनाह है। क्यों ना अल्लाह से दिल लगाया जाए अल्लाह से मोहब्बत फनाह नहीं।
इसी दरमियान एक और वाकिया पेश आया….
आप शिकार करने निकले।
आपने एक हिरण का पीछा किया उसे तीर मारा।
हिरण जख्मी हुआ। जब आप उसके करीब पहुंचे तो उस हिरण ने आपसे मुखातिब होकर कहा
“ए अजीज !! तू तो बंदा~ए~खुदा है!
मुझ बेगुहगार को क्यों मारा? 😭
अपने परवरदिगार को क्या जवाब दोगे?”
आप दुखी मन से महल वापस आए और तख्त~ओ~ताज को ठुकराकर तलाशे हक में निकल गए।
हजरत खिज्र अलैहिस्सलाम ने आपको 12 साल तालीम दी और बगदाद जाने का हुक्म दिया । बगदाद में हजरत शहाबुद्दीन सोहरवर्दी से आप मुरीद हुए। उन्होंने आपको प्यारे नबी हजरत मोहम्मद सल्लललाहू अलैह वसल्लम का जुब्बा मुबारक (कुर्ता) अता फरमाया।
आपने कुछ वक्त मदीना में कायम किया। वही बारगाहे रिसालत से आपको काज़ी हमीदुद्दीन नागौरी का खिताब मिला। आप नागौर का नाम सुनकर चौक गए क्योंकि आप नागौर से वाकिफ नहीं थे। जब आपको मालूम हुआ कि नागौर तो हिंदुस्तान में है तब आपने हिंदुस्तान का रुख किया।
ख्वाजा गरीब नवाज और दीगर बुजुर्गों के साथ आप हिंदुस्तान में दाखिल हुए। चूंकि आपको नागौर की खिलाफत मिली थी लिहाजा आपने नागौर की जानिब चल पड़े।
हिजरी सन 561 में 98 साल की उम्र में आप राजस्थान के नागौर में जलवा अफरोज हुए और नागौर में रहने वाली एक बूढ़ी औरत के यहां कयाम किया। नागौर में हिंदू तेली बिरादरी की कसीर तादाद थी।
बूढ़ी औरत कौम की तेलन थी। नागौर को आपने अपनी कुव्वत से फतह किया। नागौर की आवाम ने पैगामे हक कुबूल किया। यहां आपने “रेहल” नामी कस्बा बसाया।
शुरुआत में आप आम किसान की भांति गुजर बसर करते थे।
फिर हिंदुस्तान के बादशाह अल्तमश ने आपको नागौर का काजी मुकर्रर किया। तीस बरस नागौर में बसर करने के बाद आप बगदाद गए। वहां कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को तालीम दी और उनके उस्ताद बने। बगदाद से आते वक्त पेशावर से अपने वालिद और बीवी को साथ लिया और दिल्ली आए। दिल्ली में आपने एक धोबन का मकान खरीदा और उसमें रहने लगे। यही आपके वालिद का इंतकाल हुआ।
आपकी बहुत सी करामातें है। एक मर्तबा दिल्ली में बारिश नही हुई।बादशाह ने मशाइश (वलियों) से दुआ की दरख्वास्त की। आपने समा की फरमाइश की। बादशाह ने समा की इजाजत और खाने का इंतजाम किया। खाने के बाद समा शुरू हुआ। ऐसी बारिश हुई कि लोग कहने लगे अब रुक जाए तो बेहतर है।
आप महरौली में हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह की खानागाह की रौनक थे। अक्सर समा करते। अक्सर जरूरतमंदों की मदद और इबादत में मशरूफ रहते।
रमजान की 9वी रात थी। नमाजे तरावीह में आपने कुरान पढा। नमाज के बाद सजदा किया और सजदे में ही आपकी रूह परवाज हो गई। लोग ये समझते रहे कि आप सजदे में है। आपकी वफात का हाल बहुत देर बाद मालूम हुआ।
अल्तमश की बेटी रज़िया सुल्ताना के बाद उसका भाई बहराम शाह सुल्तान बना। 1242 में बहराम शाह के कत्ल के बाद उसके पोते अलाउद्दीन मसूद शाह को हुकूमत मिली।
सुल्तान अलाउद्दीन मसूद शाह के जमाने में आपका इंतकाल 180 बरस की लंबी उम्र में 9 रमजान 643 हिजरी मुताबिक 29 जनवरी 1246 ईस्वी बरोज पीर को दिल्ली के महरौली में हुआ।
आपकी रूहानी मजार ख्वाजा गरीब नवाज के खलीफा हजरत बख्तियार काकी के आस्ताने मुबारक महरौली में मौजूद है।
आप दिल्ली के बाईस ख्वाजा में शुमार है।
(गुलज़ार~ए~अबरार , दिल्ली के 22 ख्वाजा पेज नंबर 70 से 78 )