गोरखपुर

वफा गोरखपुरी के 23वें काव्य संग्रह ‘एहसास-ए-वफा’ का हुआ विमोचन

गोरखपुर। राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त कवि तारकेश्वर नाथ श्रीवास्तव ‘वफा’ गोरखपुरी के 23वें काव्य संग्रह ‘एहसास-ए-वफा’ का विमोचन जेएनयू के प्रोफेसर ख़्वाजा मो. इक़रामुद्दीन, गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. आर.डी. राय, इतिहासकार डॉ. दरख्शां ताजवर, उर्दू अकादमी के पूर्व अध्यक्ष चौधरी कैफुल‌ वरा अंसारी‌ व डॉ. दुष्यंत सिंह ने होटल प्रगति इन, […]

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नग़मा-ए-दीवाली

सारे जग पर वही छा गई रौशनीराम के शह्र से जो उठी रौशनी क्यूँ न दीवाली ये छाए माहौल परझूट पर सच की है फ़तहा की रौशनी उन की किस किस सिफ़त का बयाँ मैं करूँराम के हर अमल से उगी रौशनी हर तरफ़ रात में था अँधेरा बहुतजगमगाए दिये तो हुई रौशनी क्या अजब […]

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कविता: रौशनी बन के छाई दीवाली

रौशनी बन के छाई दीवालीमेरे घर मुस्कुराई दीवाली आओ इस को दिलों में भर लें हमजो उजाला है लाई दीवाली हिज्र में यादों के दिये रख करअब के मैं ने जगाई दीवाली ज़ुल्म की तीरगी से गुज़रे हैंतब कहीं हम ने पाई दीवाली कट गया मरहबा मेरा बनबासआज मैं ने मनाई दीवाली पैरहन उस का […]

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ऐ जान ए जां मैं फकत तुझसे प्यार करता हूँ

ऐ जान ए जां मैं फकत तुझसे प्यार करता हूँतुम्हारे वास्ते सब कुछ निसार करता हूँ मुझे पता है दगा है तुम्हारी फितरत मेंमगर मैं फ़िर भी तेरा अयतेबार करता हूँ तेरे नसीब की खुशियाँ तुझे मुबारक होमैं रोज़ गम के समंदर को पार करता हूँ इसी सबब से तेरा ज़रफ देखने के लिएकभी कभी […]

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ग़ज़ल: बिक गया वो शख्स आखिर कौड़ियों के दाम पर

रात की तारीकियों में रौशनी के नाम परएक दीया मैंने जला कर रख दिया है बाम पर मेरे अपनों ने मुझे कुछ इस तरह रुस्वा कियामेरा दामन चाक कर डाला रफू के नाम पर एक दूजे से लिपट कर रो रहे थे वालिदैनलाडले परदेश को जब भी गए थे काम पर क्या बताऊँ आपको मैं […]

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ऐ नए साल बता, तुझमें नयापन क्या है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ऐ नए साल बता, तुझमें नयापन क्या हैहर तरफ़ ख़ल्क़ ने क्यूँ शोर मचा रक्खा है! रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वहीआज हमको नज़र आती है हर इक बात वही! आसमाँ बदला है, अफ़सोस, ना बदली है ज़मींएक हिंदसे का बदलना कोई जिद्दत तो नहीं! अगले बरसों की तरह होंगे […]

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मुहब्बतों को नफरतों मे बदल दिया तुमने

मुहब्बतों को नफरतों मे बदल दिया तुमनेफिर इंसानियत का चेहरा कुचल दिया तुमने हिंदू को मुसलमान से जब जब लड़ाना चाहाहोशियारी से दांव धर्म का चल दिया तुमने जब भी आईना बन जाने को हुआ ये दिलहर बार कोई रंग हिंदुत्व का मल दिया तुमने तेरी इक नश्ल की खातिर इतनी नफरते है कीबाकियों में […]