कविता
मुहब्बतों को नफरतों मे बदल दिया तुमने
मुहब्बतों को नफरतों मे बदल दिया तुमने
फिर इंसानियत का चेहरा कुचल दिया तुमने
हिंदू को मुसलमान से जब जब लड़ाना चाहा
होशियारी से दांव धर्म का चल दिया तुमने
जब भी आईना बन जाने को हुआ ये दिल
हर बार कोई रंग हिंदुत्व का मल दिया तुमने
तेरी इक नश्ल की खातिर इतनी नफरते है की
बाकियों में जहर मजहबो का भर दिया तुमने
संवैधानिक मूल्यों को कूचकर इतराते फिर रहे
देश की आबोहवा को मैला कर दिया तुमने
नफरतो के दांव एक दिन टूट जाएंगे देखना
हमारी मोहब्बतों में इंसानियत न देखी तुमने
किसी हुक्मरानी खातिर गंगा जमुनी हम न भूलेंगे
चाहे लाख लड़ा और तोड़ा है इस वतन को तुमने
अब जो देने आए हो उसकी बात करो आज
हम भुला चुके हैं उसको जो कल दिया तुमने
भाई ये गजल मेरी है इसे किसी और नाम से आपने शेयर किया है कृपया आप इसकी सही तहकीक करें गूगल पर मिल जायेगी मारूफ आलम के नाम से
मूल रचना ये है जो योरकोट एप्स पर 2020 मे प्रकाशित हुई है
गजल
मुहब्बतों को नफरतों मे बदल दिया तुमने
फिर इंसानियत का चेहरा कुचल दिया तुमने
हिंदू को मुसलमान से जब जब लड़ाना चाहा
होशियारी से दांव धर्म का चल दिया तुमने
जब भी आईना बन जाने को हुआ ये दिल
हर बार कोई रंग जफा का मल दिया तुमने
अब जो देने आए हो उसकी बात करो आज
हम भुला चुके हैं उसको जो कल दिया तुमने
हमने क्या पूछा था मुहब्बत मे तुमसे और
सवाल का हमारे ये क्या हल दिया तुमने
मारुफ आलम
हम आप से क्षमा चाहते हैं। तथा आपके नाम के साथ इसे प्रकाशित करने की इजाजत चाहते हैं