तेरी नेकी कभी मेरे मोहसिन भूल जाने के काबिल नही है
काम ऐसा नही कोई जिसमे तेरा एहसान शामिल नही है
भूल बैठा है तू मुझ को लेकिन सच यही है अभी तक मेरा दिल
याद करता है तुझको हमेशा एक लम्हा भी गाफिल नही है
हम न जाने कहां जा रहे है चलते चलते मगर थक गये है
हम मुसाफिर है ऐसे सफर के जिसकी कोई भी मंजिल नही है
तू निकल कर मेरी जिंदगी से रब ही जाने कहां बस गया है
हाल तेरा बताए जो मुझको ऐसा कोई भी आमिल नही है
अपनी नज़रों से उसने ही दिल पर तीर मारा था हमदर्द बन कर
खुशनुमा सच है उसके अलावा मेरा कोई भी क़ातिल नही है