आज के दिन

22 जून: सरहिंद का जंग जिसने हुमायूं को दोबारा सत्ता दिलाई

पहली तस्वीर बादशाह हुमायूं की जिलावतनी के दौरान की है जिसमे हुमायूँ और उनकी बेगम के अलावा एक और शख्स नज़र आ रहा है। और दूसरी तस्वीर सरहिंद की लड़ाई की है जो आज के दिन ही 22 जून 1555 के दिन लड़ी गयी थी। और आखिर में हुमायूँ की 15 साल की लंबी ज़िलावतनी (देश निष्कासन) आज के दिन ख़त्म हुयी थी।

22 जून 1555 के दिन आज की तरह ही हिन्दुस्तान में सख्त गर्मी का मौसम था। सरहिंद के तपते मैदानों में दो फौज एक दूसरे के आमने-सामने थी। जिसमें से एक फौज की कयादत दिल्ली के सुल्तान सिकंदर शाह सूरी कर रहे थे तो दूसरी फौज की कयादत हुमायूँ के बेहद करीबी बैरम खान कर रहे थे। एक को अपनी सल्तनत बचानी थी तो दूसरे को अपना खोया हुआ वकार और सल्तनत दोबारा हासिल करनी थी। जंग अपने उरुज पर थी मैदाने जंग में लाशों पर लाशें गिरती जा रहीं थीं। तभी सिकंदर शाह सूरी ने ये महसूस किया की बाजी उनके हाथों से निकलती जा रही है। जब उनकी सारी उम्मीदें दम तोड़ गयीं तो वह मैदान-ए-जंग से शिवालिक की पहाड़ियों की ओर भाग उठे, जिसके बाद बाबर के बेटे हुमायूँ की किस्मत चमक उठी। उनकी 15 साल तक चली तवील जिलावतनी के दिन ख़त्म हुए। मुग़ल फौज के दस्ते आगरा और दिल्ली के लिए रवाना कर दिए गए।

जंग के खात्मे एक महीने बाद 23 जुलाई 1555 को मुग़ल दरबार जश्नों के रंग में डूब गया जब बाबर के फरजंद नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ दोबारा मुगलिया तख़्त पर काबिज हुए। इस बार किस्मत ने उनका भरपूर साथ दिया तो ये उनकी सांसो को गवारा न हुआ। उनके दौर-ए-हुकूमत का दूसरा दौर महज 6 महीने ही चला। जिंदगी में उन्होंने इस कदर आजमाइशें सहीं की महज 47 बरस की उम्र में ही उनकी रूह परवाज़ कर गयीं।

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