मोहम्मद रफी वैसे तो देश-विदेश में स्टेज जो,
लाइव कांसर्ट और सिंगिग परफार्मेंस दिया करते थे लेकिन आम लोगों के बीच यानि सार्वजनिक स्थलों पर वो नहीं गाते थे।
लेकिन इंदौर में उन्होंने खुलेआम गाने के लिए हां कर दी थी। क्योंकि इंदौर मोहम्मद रफ़ी के दो बेटों का ससुराल था। खजराना दरगाह मैदान में उनका एक सार्वजनिक कार्यक्रम होने वाला था जो आखिरकार टल गया।
सन 1975/76 की बात हैं।
यह प्रोग्राम मध्यप्रदेश के इंदौर में खजराना स्थित हजरत नाहरशाह की दरगाह पर उर्स के मौके पर होने वाला था।
फिल्म स्टार सलमान खान की बुआ सुरैया बेगम की लड़कियों की शादी मोहम्मद रफी के बेटों से हुई थी। सलीम खान के भाइयों के यहां मकान है। पलासिया पर बारात आई थी। सलमान खान के बड़े अब्बा हलीम खान जो उस वक्त खजराना दरगाह के रिसीवर यानि मेनेजर थे। यही रहते थे।
मेरे दादा के चचेरे भाई नन्नू शाह दरगाह के मुज़ावर थे।
मेरे मामू मुख्तयार शाह और नाना सुब्हान शाह उर्स की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। दरगाह रिसीवर के नाते हलीम खान ने सोचा क्यों ना उर्स में कव्वाली के साथ पार्श्व गायक मोहम्मद रफी साहब की नातों का प्रोग्राम भी रख लिया जाए। जनता में अच्छा मेसेज भी जाएगा।
हलीम खान की बहन सुरैया बेगम की बेटी यास्मीन
मोहम्मद रफी के बड़े बेटे खालिद रफी की बीवी थी।
लिहाजा उन्होंने अपनी लाडली भांजी यास्मीन से इस बारे में चर्चा की। यास्मीन आपा ने मौका देखकर अपने ससुर मोहम्मद रफी साहब से अपने मामू की ख्वाहिश जाहिर की। नेक बहु ने पहली बार कोई मांग की थी। बड़े दिलवाले नेक सीरत मोहम्मद रफी फौरन मान गए।
खजराना दरगाह के रिसीवर हलीम खान और उर्स कमेटी ने प्रचार करना शुरू कर दिया। मोहम्मद रफ़ी के चाहने वालों ने दरगाह मैदान में भीड़ जमाना शुरू कर दी।
अपने लाड़ले और फेवरेट सिंगर को देखने दूर~दराज़ से लोगों का हुजूम इंदौर में उलट पड़ा।🥰
मोहम्मद रफी साहब , यास्मीन आपा सब बॉम्बे से इंदौर पहुंचे। इंदौर के व्यवस्थापकों, प्रशासनिक अधिकारियों, कलेक्टर, कमिनश्नर और पुलिस अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा आप लोग क्या बात कर रहे हैं!
आप तो रफी साहब को इस तरह समझ रहे हैं जैसे वो बहुत मामूली इंसान हैं कि आपने कह दिया और रफी साहब यहां आकर एक दो नातें गाकर चले जाएंगे।
अजी सार्वजनिक प्रोग्राम को संभालना मुश्किल पड़ जाएगा। उनके यहां आने की खबर पहले ही आग की तरह फैल चुकी है और पता नहीं कहां-कहां से कितने लोग यहां उमड़ पड़े हैं। हमें तो यहां पर पूरी व्यवस्था करना, भीड़ को संभालना मुश्किल हो जाएगा।
आखिर हम किस तरह से हालत को संभालेंगे। हम आपको इस कार्यक्रम की परमिशन नहीं देंगे क्योंकि इसका आयोजन हमारे लिए रिस्की हो सकता है। हां, यदि आपने पहले से बात की होती तो बात कुछ और थी।
इस तरह से इंदौर में रफी साहब का वह कार्यक्रम नहीं हो सका लेकिन घरवालों को उनसे नातें सुनना थीं तो उसके लिए पलासिया स्थित घर में एक अलग से आयोजन किया गया।
एक शामियाना लगाया गया और पूरे घर के लोगों की फरमाइश पर रफी साहब ने रात भर नातेंं पढ़ी और खास कलाम भी गाए । इसमें वे प्रस्तुतियां शामिल थीं जिन्हें सुनने की घर वालों की लंबे समय से इच्छा थी। इस तरह पलासिया पर खास मेहमानों ने घर वालों के साथ इंदौर की खुली फिजा में सामने साक्षात मोहम्मद रफी साहब को कलाम पढ़ते हुए देखा और सुना। सबको बहुत मज़ा आया।
मोहम्मद रफी साहब अपने चाहने वालों से भी मिले।
खजराना सरपंच और दरगाह कमेटी के साथ फोटो भी खिचवाएं।
हजारों लोगों की भीड़ बेकाबू ना हो जाएं।
इसलिए इंदौर प्रशासन ने मोहम्मद रफी के खजराना वाले प्रोग्राम को इजाजत नहीं दी। अगर ये कार्यक्रम होता तो बेशक इंदौर के लिए यादगार निशानियों में से एक होता।
आज 31 जुलाई मोहम्मद रफी साहब को दुनिया से गए 43 साल हो गए है लेकिन उनकी आवाज और यादें आज भी हमारे बीच जिंदा है।
✍️ जावेद शाह खजराना (लेखक)