लेख

अजमेर के दर का कुत्ता भी सम्मानजनक है तो फिर वहां का ख़ादिम क्यों नहीं?

केरल का एक दीवाना पैदल ही हज करने के लिए जा रहा है। जिसके चर्चे हर ज़बान पर है। इसी दौरान उसका राजाओं के राजा, बादशाहों के बादशाह, हसनी हुसैनी सय्यद, हज़रत सय्यद मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह के दरबारे आली में जाना हुआ। दौराने हाज़िरी जो कुछ हुआ उसे सोशल मीडिया पर जमकर शेयर किया गया। शेयर करने वालों में से अधिकांश लोगों ने दिवाने की तरफदारी किया और ख़ादिम को बुरा भला कहा और बेशुमार ख़ादिम को लानत भेजा।

सिक्के के दो पहलू होते हैं लेकिन न जाने क्यों लोग सिर्फ मशहूर होने वाले ही लोगों की तरफदारी कर जाते हैं और दुसरे की धज्जियां उड़ा देते हैं। एक दरगाह का ख़ादिम/ सज्जादानशीन ज़ायरीन का सम्मान करता है और करना भी चाहिए क्योंकि वह एक अल्लाह के वली की दरगाह पर हाज़िर हुआ है। अधिकतर देखा जाता है कि दरगाह के ख़ादिम/ सज्जादानशीन ज़ायरीन के सरों पर हाथ रखकर ढ़ेर सारी दुआएं करते हैं। मैं भी जब कभी अल्लाह के वलियों की दरगाहों पर हाज़िरी देने जाता हूं तो ख़ादिम/ सज्जादानशीन मेरे सर पर हाथ रखकर ढ़ेर सारी दुआएं करते हैं। मुझे उनका यह तरीक़ा बहुत ही उम्दा और अच्छा लगता है। मैं कभी उनके इस काम पर आपत्ति नहीं करता हूं।

अब आते हैं दीवाने और ख़ादिम की घटित कहानी पर। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। दिवाना दुआएं कर रहा था। इसी दौरान एक ख़ादिम ने आदत के मुताबिक़ उसके सर पर हाथ रख दिया और दुआएं देना शुरू करने वाला ही था कि दिवाना भड़क उठा और सब के सामने ख़ादिम के साथ को झिड़क दिया। सवाल यह पैदा होता है कि जब एक कुत्ता भी हमारे लिए सम्मानजनक है तो ख़ादिम का सम्मान होना चाहिए। आप खुद दिल से फैसला करें कि आपको भी कोई झिड़क दे तो आप क्या करेंगे? शायद आपका जवाब यही होगा कि जैसा ख़ादिम ने जवाब दिया था वैसा ही करेंगे।

ख़ादिम पहले हीरोगिरी करता था, हुक्का बार में जाता था या वह अब कैसा है? यह सब अलग बातें हैं लेकिन हमेशा बातें सिक्के के दोनों पहलुओं पर होनी चाहिए। ज़्यादा शोहरत मिल जाए तो रब की मेहरबानियां समझकर ज़मीन पर ही टिके रहना चाहिए आसमान पर उड़ना नहीं चाहिए। आसमान पर उड़ते ही किसी को भी झिड़क देगो और फिर ऐसा ही वाक़िआ पेश आएगा जैसा कि अजमेर शरीफ़ दरगाह में पेश आया था।

ख़ैर! दरगाह कमेटी ने इस पुरी घटना की कड़ी निंदा कर दिया है और सबसे बड़ी बात यह है कि ख़ादिम ने मुआफी भी मांग लिया है और उसने दिवाने के लिए दुआएं भी कर दिया है। हो सकता मेरी इस तहरीर से हर कोई सहमत न हो। फिर भी मुझे अपनी बात रखने का अधिकार तो है ही। मैंने अपनी तहरीर में किसी का नाम जान बुझकर नहीं लिखा है।

दुआ करता हूं कि अल्लाह तआला हम सभी को मक़ामाते मुक़द्दसा का अदब वह एहतराम करने की तौफीक़ अता फरमाए और ऐसी छोटी मोटी बातों को दर गुज़र करने की तौफीक़ अता फरमाए और देश दुनिया में अमन चैन शांति पैदा फरमाए। आमीन

बारगाहे ग़रीब नवाज़ में अक़ीदत के चंद शेर पेश कर रहा हूं…

ग़रीब आए हैं दर पर तेरे ग़रीब नवाज़!
करो ग़रीब नवाज़ी मेरे ग़रीब नवाज़!!

तेरे दर की करामत यह बार-हा देखी!
ग़रीब आए और हो गए ग़रीब नवाज़!!

मौलाना मोहम्मद सैफुल्लाह ख़ां अस्दक़ी
चेयरमैन: ग़ौसे आज़म फाउंडेशन

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