लेख सम्भल

संभल विवाद : वजह, नुकसान, आरोप व प्रत्यारोप की पूरी कहानी

समद अहमद सिद्दीकी

संभल/उत्तर प्रदेश | उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके संभल में बीते दिनों संभल जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर बताने की याचिका पर कोर्ट के आदेश पर आनन फानन में सर्वे कराया गया। पहला सर्वे शांतिपूर्ण ढंग से पूरा हुआ। मस्जिद कमेटी, मुस्लिम उलमा व अवाम ने इसमें पूरा सहयोग किया। इसके बाद जुमा के दिन प्रशासन व्यवस्था चाक चौबंद रही और बड़ी संख्या में लोगों ने वहां शांतिपूर्ण तरीके से नमाज़ अदा की। कहीं से विवाद की कोई जानकारी सामने नहीं आई।

24 नवंबर को दोबारा सर्वे की बात कहते हुए सुबह सवेरे सर्वे टीम मस्जिद पहुंची। टीम के साथ कुछ अन्य लोग भी मौजूद रहे जिन्होंने धार्मिक नारे लगाए जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। इसी दौरान वजूखाने का पानी खोल दिया गया जिसे देख लोग भ्रमित हुए कि शायद मस्जिद में खुदाई की जा रही है। हालांकि मस्जिद कमेटी का दावा है कि इस दौरान मस्जिद के माइक से लगातार इस बात का ऐलान किया जा रहा था कि मस्जिद में कोई खुदाई नहीं हो रही है।

फिर भी अचानक लोगों की भीड़ इकठ्ठा होने लगी पथराव शुरू हुआ, गाड़ियां जलाई गईं और हिंसा भड़क उठी। हिंसा के दौरान 04 लोगों की मृत्यु की पुष्टि भी की जा रही है। वहीं कई पुलिसकर्मियों व आमजन के ज़ख्मी होने की बातें भी सामने आई हैं।

इस पूरे घटनाक्रम को लेकर तकरीबन 2500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। जिसमें मुख्य रूप से सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क का नाम पेश पेश लिया जा रहा है।

हालांकि सांसद बर्क इस घटनाक्रम के दौरान वहां मौजूद न होने का दावा भी कर रहे हैं और उनका आरोप है कि पुलिस की तरफ से गोली चलाई गई थी जिसकी वजह से शहर में तनावपूर्ण माहौल है। उन्होंने कहा कि “घटना “पूर्व नियोजित” थी और वहाँ मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को निशाना बनाया जा रहा था।

मरने वालों के परिवारजन और मस्जिद सदर ने भी मीडिया को दिए बयानात में पुलिस की गोली चलाने और पुलिस की गोली से मृत्यु होने की बात कही है।

इसी गहमा गहमी के बीच राजनेताओं का एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला भी तूल पकड़े हुए है। सत्ता पक्ष बीजेपी के सांसद साक्षी महाराज ने संभल में हुई हिंसा को “पूर्व नियोजित” करार दिया और कहा कि जो लोग उपचुनावों में बीजेपी की जीत से हैरान हैं उन्हीं के उकसावे पर हिंसा हुई।

हालांकि विपक्षी दल इसे तथाकथित चुनाव धांधली को छुपाने के लिए सत्ता पक्ष की “पूर्व नियोजित” साजिश बता रहे हैं। नेता विपक्ष राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा

“उत्तर प्रदेश में हालिया विवाद पर राज्य सरकार का पक्षपात और जल्दबाज़ी भरा रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। हिंसा और फायरिंग में जिन्होंने अपनों को खोया है उनके प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं हैं। प्रशासन द्वारा बिना सभी पक्षों को सुने और असंवेदनशीलता से की गई कार्रवाई ने माहौल और बिगाड़ दिया और कई लोगों की मृत्यु का कारण बना – जिसकी सीधी ज़िम्मेदार भाजपा सरकार है।”

राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि भाजपा का सत्ता का उपयोग हिंदू-मुसलमान समाजों के बीच दरार और भेदभाव पैदा करने के लिए करना न प्रदेश के हित में है, न देश के।

राहुल गांधी ने कहा, “मेरी अपील है कि शांति और आपसी सौहार्द बनाए रखें। हम सबको एक साथ जुड़ कर यह सुनिश्चित करना है कि भारत सांप्रदायिकता और नफ़रत नहीं, एकता और संविधान के रास्ते पर आगे बढ़े।”

इसी बीच मस्जिदों के मंदिर होने के दावे पर रोकथाम और युवाओं को दंगों की भेंट चढ़ने से रोकने की बात भी सामने आ रही है। लोगों का कहना है कि देश में सौहार्द बनाए रखने के लिए ऐसे मामलात पर रोकथाम ज़रूरी है।

इसे लेकर आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत के बयान “हर मस्जिद में शिवलिंग क्यूं देखना?” पर भी सवाल उठाया जा रहा है कि क्या यह बात खाली कहने तक ही सीमित है?

वहीं सेवानिवृत्त चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चन्द्रचूड़ के मस्जिद सर्वे को लेकर की गई मौखिक टिप्पणी के द्वारा खोले गए दरवाज़े को भी कुछ लोग समाज के लिए बेहतर नहीं मान रहे हैं।

इस तमाम घटनाक्रम के बीच ऐसी घटनाओं पर रोकथाम लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट और सरकार के फैसले का नुकसान उठाने वाले परिवारजनों और आम जनमानस को इंतेज़ार है ताकि फिर कोई जगह संभल न बने और फिर कहीं कोई युवा दंगों की भेंट न चढ़े।

1991 उपासना अधिनियम का संविधान में होने के बावजूद इस तरह के मामलात का देश में उठना। तूल पकड़ना और दंगे होना जनहित व देशहित में किसी भी तरह सही नहीं है।

क्या है उपासना अधिनियम 1991 (Places of Worship Act, 1991) ??

उपासना अधिनियम 1991 (Places of Worship Act, 1991) भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है। जिसका उद्देश्य धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और उनका संरक्षण सुनिश्चित करना है ताकि देश में आपसी सौहार्द व भाईचारा बना रहे।

इस अधिनियम के तहत, 15 अगस्त 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों की स्थिति को बनाए रखने का प्रावधान, धार्मिक स्थलों से संबंधित विवादों का निपटारा करने के लिए एक तंत्र का प्रावधान और अधिनियम के तहत, धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण के उल्लंघन पर दंड और जुर्माने का भी प्रावधान है।

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