लेख

लोग नहीं बदलते लोगों के नज़रिए और चेहरे बदल जाते हैं

देश में अधिकतर लोग ज्योति मौर्या को इसलिए भला बुरा बोलकर गाली दे रहे थे क्योंकि उसने अपने पति के साथ धोखा किया और उसे छोड़ दिया हैं ।

वहीं दूसरी ओर बिना पासपोर्ट अवैध तरीके से एक घुसपैठिये की तरह पाकिस्तान से आई सीमा हैदर के नाम पर प्रेम मोहब्बत के नाम पर मदद की गुहार लगाई जा रही है कि उसे भारतीय नागरिकता दो, पाकिस्तान मत भेजो,जबकि सीमा भी अपने पति को छोड़कर आई है और अपने पति को धोखा दिया है उसके साथ विश्वासघात किया है, जबकि उसका पति उसी की खुशी के लिये विदेश में पड़ा है, उसे एक निजी घर खरीद कर दिया जिसे बेंचकर ही सीमा हैदर दुबई और नेपाल के रास्ते भारत आई है।

ये दोहरा रवैया क्यों ?
अगर यही सीमा हैदर सचिन के बजाय ठीक इसी तरह सुलेमान के पास भारत आती तो क्या होता ?
मीडिया पर आतंकी स्टोर की एक कवर स्टोरी चल रही होती…

आज काँवड़ यात्रा के नाम पर सैकड़ो किलो मीटर के वन साइड रोड बंद है जो कि पूरे दो महीने बंद रहेगें क्यों कि इस साल सावन दो है, लोगों को कितनी कठिनाई हो रही है एम्बुलेंस और मरीजों तक को उसी वन साइड से ही जाना है लेकिन अगर एक मुसलमान अपनी निजी जगह पर दो चार लोगों की जमात से नमाज़ अदा करले तो FIR हो जाती है, और काँवड़ियों पर हेलोकोप्टर से फूल बिखेरे जा रहे हैं।

अगर आप भी इस दोहरी मान्सिकता और रवैया के समर्थक है फिर न तो आप धार्मिक है न न्यायकारी है बल्कि आप उस भीड़ का हिस्सा है जिसके पास सोचने समझने के लिये अपनी बुद्धि ही नहीं होती ।

दरअसल जब हम अपने व्यक्तित्व को इस तरह प्रदर्शित करते हैं जो हम वास्तव में होते नहीं हैं तो स्थिति और दयनीय हो जाती है। हम पूरी जिंदगी अपने वास्तविक व्यक्तित्व पर पर्दा डालने की कोशिश करते रहते रहते हैं। अपने व्यक्तित्व पर पर्दा डालने की यह कोशिश हमें स्वयं से ही दूर कर देती है। जब हम स्वयं से ही दूर हो जाते हैं तो हम दोगुनी ऊर्जा के साथ अपने वास्तविक व्यक्तित्व पर आवरण चढ़ाने की कोशिश करते है। आवरण चढ़ाने की कोशिश यह सिद्ध करती है कि हमें अपने व्यक्तित्व पर भरोसा नहीं है। दोहरा व्यक्तित्व हमारी जिंदगी को भी दोहरी बना देता है। ऐसी स्थिति में हम दो नावों पर सवारी कर रहे होते हैं। एक नाव आदर्शवादी व्यवहार की होती है और दूसरी नाव पाखंड से भरे व्यवहार की।

जिंदगी के इस सफर में हम अपनी सुविधानुसार पाला बदलते रहते हैं। दो नावों पर सवार होने के कारण ही हम समाज में अपना भरोसा स्थापित नहीं कर पाते हैं। आज समाज में भरोसे की जितनी कमी महसूस की जा रही है, उतनी पहले कभी महसूस नहीं की गई। हमारे समाज में विभिन्न तरह की समस्याएं इसलिए बढ़ती जा रही हैं क्योंकि हमारा पाखंड में रचा पगा व्यवहार हमारे आदर्शवादी व्यवहार पर भारी पड़ता है। हम आदर्शवादी रूप से बहुत कुछ अच्छा सोचते हैं लेकिन जब वास्तविक जिंदगी में इस सोच को आगे बढ़ाने की बात आती है तो हम हथियार डाल देते हैं। ऐसा करते ही हम कमजोर साबित हो जाते हैं।

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