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गोरखपुर। मुहर्रम की 8वीं तारीख़ को मस्जिदों व घरों में हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व उनके जांनिसारों की याद में महफिलों का दौर जारी रहा। मस्जिदों, घरों व इमाम चौकों पर फातिहा ख्वानी हुई। उलमा किराम ने ‘शहीद-ए-आज़म इमाम हुसैन’ व कर्बला के शहीदों की कुर्बानियों पर तकरीर की। जिसे सुनकर अकीदतमंदों की आंखें नम हो गईं और लबों से या हुसैन की सदा जारी हुई।
रविवार को ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिल के तहत मदरसा जामिया कादरिया तजवीदुल क़ुरआन लिल बनात अलहदादपुर में महिलाओं के दूसरे दिन की महफ़िल में आलिमा तरन्नुम रोज़ी, नाजमीन फातिमा, आलिमा गौसिया अंजुम, मेहरुन्निसा, नूर अफ्शां, महजबीन खान सुल्तानी ने कहा कि इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम की खातिर सब कुछ कुर्बान कर दिया लेकिन जुल्म करने वालों के आगे सिर नहीं झुकाया। इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम का झंडा बुलंद कर नमाज़, रोजा, अज़ान व दीन-ए-इस्लाम के तमाम कवानीन की हिफाजत की।
नूरी जामा मस्जिद अहमदनगर चक्शा हुसैन के पास मौलाना जहांगीर अहमद ने कहा कि जो लोग अल्लाह की राह में अपनी जान कुर्बान कर देते हैं वह शहीद हो जाते हैं और शहीद कभी नहीं मरता बल्कि वह ज़िंदा रहता है। इमाम हुसैन व उनके जांनिसार आज भी ज़िंदा हैं। यदि आपको इमाम हुसैन से सच्ची मोब्बत है तो उनके नक्शे कदम पर चलने का जज्बा पैदा करें।
बेनीगंज ईदगाह रोड मस्जिद में कारी मो. शाबान बरकाती ने कहा कि कर्बला से हक़ की राह में कुर्बान हो जाने का सबक मिलता है। शोह-दाए-कर्बला की कुर्बानियों से ताकतवर से ताकतवर के सामने हक़ के लिए डटे रहने का जज्बा पैदा होता है। इमाम हुसैन व उनके जांनिसारों को सलाम जिन्होंने हक़ की आवाज़ बुलंद की और दीन-ए-इस्लाम को बचा लिया।
मकतब इस्लामियात तुर्कमानपुर में नायब काजी मुफ्ती मो. अजहर शम्सी ने कहा कि कर्बला के मैदान में 10वीं मुहर्रम को सुबह से दोपहर तक खानदाने नबूवत के तमाम चश्मो चिराग एक-एक कर शहीद हो गए। हर तड़पती लाश की आखिरी हिचकी पर हज़रत सैयदना इमाम हुसैन मैदान में पहुंचे। शहीदों का जिस्म गोद में उठा लिया। खेमे तक ले आए। जिगर के टुकडे़ भी हैं। आंख के तारे भी हैं। हज़रत जैनब के दुलारे भी। तीन दिन का भूखा प्यासा शेर बाइस हजार के लश्कर के घेरे में है। तीरों की बारिश हो रही है। इसके बावजूद हज़रत अली के लख्ते जिगर बहादुरी के जौहर दिखाते रहे और एक-एक बार में कई जहन्नमियों के सर कलम करते रहे। अंत में आपने सजदे के हालात में शहादत पाई।
मस्जिद फैजाने इश्के रसूल अब्दुल्लाह नगर में मुफ्ती अख्तर हुसैन ने कहा कि पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया हसन और हुसैन दोनों दुनिया में मेरे दो फूल हैं। पैग़ंबर-ए-आज़म से पूछा गया कि अहले बैत में आपको सबसे ज्यादा कौन प्यारा है? तो आपने फरमाया हसन और हुसैन। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत फातिमा से फरमाते थे कि मेरे पास बच्चों को बुलाओ, फिर उन्हें सूंघते थे और अपने कलेजे से लगाते थे।
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना मो. असलम रज़वी ने कहा कि कर्बला के मैदान में जबरदस्त मुकाबला हक़ और बातिल के बीच शुरू हुआ। तीर, नेजा और तलवार के बहत्तर ज़ख्म खाने के बाद इमाम हुसैन सजदे में गिरे और अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए शहीद हो गए। करीब 56 साल पांच माह पांच दिन की उम्र शरीफ में जुमा के दिन मुहर्रम की 10वीं तारीख़ सन् 61 हिजरी में इमाम हुसैन इस दुनिया को अलविदा कह गए। साहबजादगाने अहले बैत (पैग़ंबरे इस्लाम के घराने वाले) में से कुल 17 हज़रात इमाम हुसैन के हमराह हाजिर होकर रुतबा-ए-शहादत को पहुंचे। कुल 72 अफराद ने शहादत पाईं। यजीदी फौजों ने बचे हुए लोगों पर बहुत जुल्म किया।
मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन ने अज़ीम कुर्बानी पेश कर बातिल कुव्वतों को करारी शिकस्त दी।
अक्सा मस्जिद शाहिदाबाद में मौलाना तहफ्फुज हुसैन रज़वी ने बताया कि इमाम हुसैन के साथ हज़रत इमाम हसन के चार नौजवान पुत्र हज़रत कासिम, हज़रत अब्दुल्लाह, हज़रत उमर, हज़रत अबू बक्र और हज़रत अली के पांच पुत्र हज़रत अब्बास, हज़रत उस्मान, हज़रत अब्दुल्लाह, हज़रत मोहम्मद इब्ने अली, हज़रत जाफ़र बिन अली शामिल थे। सभी ने शहादत पाई।
बेलाल मस्जिद इमामबाड़ा अलहदादपुर में कारी शराफत हुसैन क़ादरी ने कहा कि हज़रत अकील के पुत्रों में हज़रत इमाम मुस्लिम तो हज़रत इमाम हुसैन के कर्बला पहुंचने से पहले ही कूफा में शहीद हो चुके थे और उनके तीन पुत्र अब्दुल्लाह, अब्दुर्रहमान, जाफ़र हज़रत इमाम हुसैन के साथ थे और कर्बला में शहीद हुए। हज़रत जाफ़र तय्यार के दो पोते हज़रत मोहम्मद, हज़रत औन हज़रत इमाम हुसैन के हमराह हाजिर होकर शहीद हुए। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र हैं। यह दोनों हज़रत इमाम हुसैन के हकीकी भांजे हैं। उनकी मां हज़रत जैनब हज़रत इमाम हुसैन की सगी बहन हैं।
सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर में मौलाना अली अहमद ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन ने हमें पैग़ाम दिया कि जो बुरा है उसकी बुराई दुनिया के सामने पेश करके बुराई को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए चाहे जिस चीज की कुर्बानी देनी पड़े, ताकि दुनिया में जो अच्छी सोसाइटी के ईमानदार लोग हैं वह अमनो-अमान के साथ अपनी ज़िंदगी गुजार सकें। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई।