हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसे
ज़मीं खा गई आसमाँ कैसे कैसे
न गोर-ए-सिकंदर न है क़ब्र-ए-दारा
मिटे नामियों के निशाँ कैसे कैसे
तब तज़किरा हो मोहम्मद बिन क़ासिम का तो अमीर मीनाई का लिखा हुआ ये शेर ज़ेहन में आ ही जाता है एक ऐसा शख्स जिसने इतनी कम उम्र में सिंध फतह कर लिया और वो मक़ाम हासिल कर लिया जो किसी के लिए उम्र के आखिरी पड़ाव में भी हासिल कर पाना मुश्किल है। महज 17 बरस की उम्र में उसकी शोहरत अपने बुलन्दियों पर थी और पूरी दुनिया में उसके चर्चे थे। लेकिन उम्र के 19वें बरस में उसके साथ कुछ ऐसा हुआ की आज उसकी कब्र का भी कहीं नामोनिशान तक नहीं है। कासिम की मौत और कब्र दोनों ही आज तक एक पहेली बनी हुयी है।
मोहम्मद बिन कासिम की मौत की दो कहानियां बताई जाती हैं
[1] फतह-नामे -सिंध किताब (चचनामा) के मुताबिक मोहम्मद बिन कासिम ने राजा दाहिर सेन की बेटियों परिमला और सूर्या को तोहफे में अरब के ख़लीफ़ा के पास भेज दिया था। जब वह खलीफा के दरबार में पेश हुयीं तो उन्होंने अपने बाप की मौत का बदला लेने के लिए खलीफा से कहा कि मोहम्मद बिन क़ासिम पहले ही उनकी इज़्ज़त लूट चुका है और अब ख़लीफ़ा के पास भेजा है। यह सुनकर खलीफा नाराज हुए और मोहम्मद बिन क़ासिम को बैल की चमड़ी में लपेटकर वापस दमिश्क़ मंगवाने का का हुक्म जारी कर दिया। बैल की चमड़ी में बंद होकर दम घुटने की वजह से मोहम्मद बिन कासिम की मौत हो गयी लेकिन जब ख़लीफ़ा को पता चला कि बहनों ने उनसे झूठ बोला था तो खलीफा ने उन्हें जिंदा दीवार में चुनवा दिया।
[2] ईरानी इतिहासकार बलाज़ुरी के मुताबिक अरब का नया खलीफा सुलेमान बिन अब्द-अल-मलिक हज्जाज बिन यूसुफ़ का दुश्मन था। उसने हज्जाज के सभी सगे-सम्बन्धियों पर सख्त कार्यवाही की । मोहम्मद बिन क़ासिम को भी सिंध से वापस बुलवाकर इराक के मोसुल शहर में बंदी बना दिया गया। वहां उसके साथ बहुत सख्त बर्ताव किया गया और अज़ीयतें इतनी दी गयीं की मोहम्मद बिन क़ासिम उसे बर्दाश्त न कर सका और चंद ही दिनों में उसने दम तोड़ दिया।
मोहम्मद बिन क़ासिम को किस मक़ाम पर दफन किया गया इसका किसी भी तारीखी किताब में कोई तज़किरा नहीं है।