गोरखपुर। रविवार को 29वां रोज़ा मुकम्मल हो गया। रोज़ेदारों ने खूब इबादत कर दुआ मांगी। रेती रोड, शाह मारूफ, घंटाघर, उर्दू बाज़ार, गोरखनाथ, रसूलपुर, बक्शीपुर, नखास आदि क्षेत्रों में रात भर लोग सामान खरीदते दिखे। मुस्लिम मोहल्लों में खूब चहल पहल है। सेंवई, कुर्ता पायजामा, इत्र, टोपी व चप्पल की बिक्री में तेजी है। ईद की नमाज़ के तैयारी में लोग जुटे हुए हैं। ईद की नमाज़ के लिए ईदगाहों व मस्जिदों में तैयारियां जारी हैं। लोग हक़दारों में जकात व सदका-ए-फित्र भी पहुंचा रहे हैं।
ईद की रात है ईनाम की रात: मुफ्ती मेराज
मरकजी मदीना जामा मस्जिद में रमज़ान के 29वें दर्स में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने बताया कि क़ुरआन शरीफ़ में अल्लाह फरमाता है, रोज़ों की गिनती पूरी करो और अल्लाह की बड़ाई बोलो कि उसने तुम्हें हिदायत फरमाई। हमें अल्लाह के हुक्म के मुताबिक ज़िंदगी गुजारनी चाहिए। ईद की रात को गफलत में न गुजारें बल्कि इबादत करें। ईद की रात बहुत बाबरकत वाली रात होती है। हदीस में है कि जब ईद-उल-फित्र की मुबारक रात तशरीफ लाती है तो इसे लैलतुल जाइजा यानी ईनाम की रात के नाम से पुकारा जाता है। बुराई से दूर रहें। सदका व जकात ग़रीबों का हक़ है। जल्द अदा कर दें ताकि ग़रीब ईद की ख़ुशी में हमारे साथ शामिल हो सकें।
उन्होंने बताया कि ईदगाह में ईद की नमाज़ अदा करना पैग़ंबर-ए-आज़म व आपके सहाबा की सुन्नत है। इसलिए कोशिश रहे कि ईद की नमाज़ ईदगाह में ही अदा करें। ईदगाह दो ईदों के लिए ही बनाई गई है। ईद-उल-फित्र की नमाज़ के लिए जाते हुए रास्ते में अाहिस्ता से तकबीरे तशरीक ‘अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह। वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द’ पढ़ी जाएगी। नमाज़ ईदगाह में जाकर पढ़ना और रास्ता बदल कर आना, पैदल जाना और रास्ते में तकबीरे तशरीक पढ़ना सुन्नत है। पैग़ंबर-ए-आज़म ईद-उल-फित्र के दिन कुछ खाकर नमाज़ के लिए तशरीफ ले जाते। ईद को एक रास्ते से तशरीफ ले जाते और दूसरे से वापस होते।
ईद में रखें पैग़ंबर-ए-आज़म की सुन्नतों का ख्याल: मौलाना जहांगीर
सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह में मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने बताया कि हदीस में आया है कि पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ईद-उल-फित्र के दिन कुछ खाकर नमाज़ के लिए तशरीफ ले जाते थे। ईद के दिन हजामत बनवाना, नाखून काटना, गुस्ल करना, मिसवाक करना, अच्छे कपड़े पहनना, नये हों तो नये वरना साफ कपड़े पहनना, खुशबू लगाना अच्छा है। ईद-उल-फित्र की नमाज़ को जाने से पहले चंद खजूरें खा लेना, खजूर न हो तो मीठी चीज खा लेना, नमाज़े ईद ईदगाह में अदा करना, अहिस्ता तकबीरे तशरीक पढ़ते जाना, ईदगाह पैदल जाना अफ़ज़ल है और वापसी में सवारी पर आने से हर्ज नहीं हैं। नमाज़े ईद के लिए एक रास्ते से जाना और दूसरे रास्ते से वापस आना चाहिए।
क़ुरआन शरीफ़ में ईद की ख़ुशी मनाने का हुक्म: मौलाना अहमद
गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी ने बताया कि ईदगाह का अर्थ होता है ख़ुशी की जगह या ख़ुशी का वक्त। यह ऐसी जगह है जहां पर बंदे दो रकात नमाज़ पढ़कर अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं। जब बंदा 29 दिन या 30 दिन का रोज़ा पूरा कर लेता है तो अल्लाह तआला उसे ख़ुशी मनाने का हुक्म देता है। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम 53 साल की उम्र में मक्का से हिजरत करके मदीना आ गये तो 2 हिजरी को रोज़ा फर्ज हुआ। क़ुरआन शरीफ़ के दूसरे पारे में ईद की ख़ुशी मनाने का हुक्म नाजिल हुआ। पैग़ंबर-ए-आज़म ने आबादी से दूर अपने सहाबा के साथ ईद की नमाज़ अदा की। ईदगाह में ईद की नमाज़ अदा करना पैग़ंबर-ए-आज़म की सुन्नत है।