गोरखपुर। रमज़ान शरीफ़ के अंतिम जुमा की नमाज़ (अलविदा या जुमा तुल विदा) शहर की तमाम मस्जिदों में शांति के साथ अदा की गई। इमामों ने विशेष तकरीर की। अलविदा का खुतबा पढ़ा। रोज़ेदारों ने रो-रो कर अपने गुनाहों की माफ़ी मांगी। मुकद्दर संवारने, मुल्क में अमनो सलामती, तरक्की, खुशहाली, भाईचारगी, बैतुल मुकद्दस की आज़ादी, फिलिस्तीन व अन्य मुल्कों में हो रहे मुसलमानों पर जुल्म से निज़ात व हिफाज़त की सामूहिक रूप से दुआ मांगी गई।
अलविदा जुमा की वजह से मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक, नार्मल स्थित जामा मस्जिद हज़रत मुबारक खां शहीद मस्जिद, नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर, जामा मस्जिद रसूलपुर, जामा मस्जिद उर्दू बाज़ार, गाजी मस्जिद गाज़ी रौजा, सुन्नी जामा मस्जिद सौदागार मोहल्ला, चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर, गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर, सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाज़ार सहित शहर की तमाम मस्जिदों में नमाज़ियों की भीड़ उमड़ी। नमाज़ से पहले पढ़े जाने वाले खुतबे में रमज़ान शरीफ़ को अलविदा कह दिया गया। अलविदा के खुतबे में इमामों ने अल्लाह की हम्दो सना बयां की, पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूदो सलाम का नज़राना पेश किया, चारों ख़लीफा व अहले बैत का जिक्र किया। खुतबे में रमज़ान शरीफ़ को अलविदा कहा गया। सभी के चेहरे पर रमज़ान शरीफ़ के जाने का ग़म साफ नज़र आया।
दोपहर 12 बजे से मस्जिदों में नमाज़ियों का आना शुरु हुआ। मस्जिद की कमेटियों ने भी अलविदा के मद्देनज़र चटाई, दरी व शामियाना आदि का इंतजाम किया हुआ था। कई मस्जिदों में भीड़ ज्यादा होने की वजह से लोगों को मस्जिद के बाहर चटाई बिछाकर नमाज़ अदा करनी पड़ी।
इससे पूर्व अलसुबह अलविदा की तैयारी शुरू हो गई। बच्चे, नौज़वान, बुजुर्ग सभी नहा-धोकर, साफ-सुथरे कपड़े व टोपी पहनकर, इत्र लगाकर मस्ज़िदों में पहुंचे। सभी ने ध्यान से इमामों की तकरीर व खुतबा सुना फिर इमाम के साथ नमाज़ अदा की। इमामों की दुआ पर सभी ने आमीन कहा। अंत में सभी ने मिलकर पैग़ंबर-ए-आज़म हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूदो सलाम पेश किया। महिलाओं ने भी घरों में इबादत की। अलविदा के दिन कसरत से लोगों ने इबादत, तस्बीह व तिलावत की। शाम को सभी ने दस्तरख़्वान पर बैठकर इफ्तार किया। इस तरह रमज़ान शरीफ़ का 27वां रोजा मुकम्मल हुआ।
अलविदा जुमा की तकरीर में उलमा-ए-किराम ने यह कहा
रमज़ान शरीफ़ के अंतिम जुमा (अलविदा) में उलमा-ए-किराम ने अवाम की खूब नसीहत की। मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि हदीस पाक में है कि जो शख़्स रमज़ान शरीफ़ के आने की ख़ुशी और जाने का ग़म करें उसके लिए जन्नत है और अल्लाह पर हक़ है कि उसे जन्नत में दाखिल फरमाए। उन्होंने अपनी तकरीर में कहा कि रमज़ान एक बेहतरीन माह है जिसमें अल्लाह की रहमतें बढ़ जाती हैं। दुआएं कुबूल होती हैं। हमें शरीअत के मुताबिक ज़िंदगी गुजारनी चाहिए। रमज़ान ने हमें कामयाबी का रास्ता दिखा दिया है अब हमारी जिम्मेदारी है कि उस पर मजबूती के साथ चलकर दुनिया व आख़िरत संवारें।
सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाज़ार के इमाम हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी ने कहा कि रमजान शरीफ़ को इस्लामी सिद्धांतों, सच्चाई, हमदर्दी तथा इंसानी वसूलों के प्रशिक्षण का पीरियड कहा जाता है। नमाज़ की पाबंदी करें। नेक बनें। शबे कद्र की बची रात में खूब इबादत करें। जकात व फित्र जल्द जरूरतमंदों तक पहुंचा दें। जहन्नम से आज़ादी का अशरा चल रहा है लिहाजा रो-रो कर खूब दुआ मांगें। तिलावत-ए-क़ुरआन करें।
सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह में मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि हमें अल्लाह के हुक्म के मुताबिक ज़िंदगी गुजारनी चाहिए। हकदार ग़रीबों, यतीमों, फकीरों की जकात व फित्रा से मदद करें। ईद की रात को गफलत में न गुजारें बल्कि इबादत करें। बुराई से दूर रहे हैं। नाम के मुसलमान न बनें बल्कि क़ुरआन व हदीस के मुताबिक मुसलमान बनें। सदका व जकात ग़रीबों का हक़ है, जल्द अदा कर दें ताकि ग़रीब ईद की ख़ुशी में हमारे साथ शामिल हो सकें। हदीस में है कि जब ईद-उल-फित्र की मुबारक रात तशरीफ लाती है तो इसे ईनाम की रात के नाम से पुकारा जाता है।
चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में नायब क़ाज़ी मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि रमज़ान शरीफ़ रुख़सत हो रहा है जिस की हर घड़ी रहमत भरी है और जिसमें हर आन छमाछम रहमतें बरसती है। जिसमें जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं। दोजख के दरवाजों पर ताले पड़ जाते हैं। रोजाना लाखों करोड़ों गुनाहगारों की मग़फिरत हो जाती है। ऐसा इनामात व करामात वाला मुबारक मुकद्दस मेहमान रुख़सत हो रहा है। रमज़ान शरीफ़ के आख़िरी लम्हात में क्या हमें इस बात का सदमा होता है कि आह! अनकरीब अब मस्जिदों की रौनकें कम हो जायेंगी। आह! नेकियों का जोश ठंडा पड़ जाएगा। आह! रोजों का लुत्फों मजा, वक्ते इफ्तार का नूरानी शमां, तरावीह का कैफो सुरूर, हर तरफ क़ुरआन की तिलावत, सहरी के वक्त दरूदो सलाम की प्यारी आवाजें, आधी रात के बाद सहरी के लिए जगाने वालों की सदाएं ये तमाम मंजर अब कहां नज़र आयेंगे। ईद की ख़ुशियों में सबको शामिल कर नमाज़ की पाबंदी करें। शरीअत पर चलकर दीन व दुनिया बनाएं।