जिक्रे शहीद-ए-कर्बला महफिलों का दौर जारी
गोरखपुर। आठवीं मुहर्रम को मस्जिद व घरों में क़ुरआन ख़्वानी व फ़ातिहा ख़्वानी हुई। इबादतों का दौर जारी रहा। दरूदो सलाम का नज़राना पेश किया गया। दुआ मांगी गई। कहीं लंगर तो कहीं शर्बत बांटा गया। हज़रत सैयदना इमाम हुसैन की याद में नौजवानों ने नेकी का काम किया। जरूरतमंदों की मदद की। पौधारोपण किया। कई जगहों पर जरूरतमंदों को खाना खिलाया गया। कई मोहल्लों में पानी व शर्बत का स्टाल भी लगा। मस्जिद व घरों में हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व उनके जांनिसारों की अज़ीम क़ुर्बानी को शिद्दत से याद किया गया। उलेमा-ए-किराम ने जब कर्बला की दास्तान सुनाई तो अकीदतमंदों की आंखें भर आईं। मुस्लिम बाहुल्य मोहल्लों में चहल पहल रही। नखास व मियां बाज़ार में हलुआ पराठा बिकता नज़र आया। जाफ़रा बाज़ार कर्बला पर भी अकीदतमंद फ़ातिहा ख़्वानी करते दिखे।
बुधवार को जिक्रे शहीद-ए-कर्बला महफिलों के आठवें दिन मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर में कारी मो. अनस रज़वी ने कहा कि मुहर्रम की 10वीं तारीख़ को पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की बेटी हज़रत फातिमा ज़हरा के आंखों के तारे इमाम हुसैन को ज़ालिमों ने बेरहमी के साथ तीन दिन के भूखे प्यासे कर्बला के तपते हुए रेगिस्तान में शहीद कर दिया था। इमाम हुसैन ने अल्लाह की इबादत व सब्र का दामन नहीं छोड़ा।
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना मो. असलम रज़वी ने कहा कि ज़ालिमों ने इमाम हुसैन को यह सोच कर शहीद किया था कि इंसानियत दुनिया से मिट जाएगी लेकिन वह भूल गए कि वह जिस इमाम हुसैन का खून बहा रहे हैं, यह नवासे रसूल का है। जो इंसानियत को बचाने के लिए घर से निकले थे। इसीलिए हर कौम कह रही है हमारे हुसैन हैं।
सुन्नी जामा मस्जिद सौदागार मोहल्ला में कारी मो. मोहसिन रज़ा ने कहा कि इमाम हुसैन ने अपने नाना का रौजा, मां की मजार, भाई हसन के मजार की आख़िरी बार जियारत कर मदीना छोड़ दिया। यह काफिला रास्ते की मुसीबतें बर्दाश्त करता हुआ कर्बला पहुंचा और अज़ीम क़ुर्बानी पेश की। जिसे रहती दुनिया तक नहीं भुलाया जा सकता।
ज़ोहरा मस्जिद मौलवी चक बड़गो में कारी अनीस ने कहा कि हज़रत इमाम हुसैन ने पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की उम्मत की खातिर शहादत क़बूल की।
ग़ौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी ने कहा कि कर्बला की जंग में हज़रत इमाम हुसैन ने संदेश दिया कि हक कभी बातिल से नहीं डरता। हर मोर्चे पर जुल्म व सितम ढ़ाने वाले बातिल की शिकस्त तय है।
हुसैनी जामा मस्जिद बड़गो में मौलाना मो. उस्मान बरकाती ने कहा कि हज़रत इमाम हसन-हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम व सच्चाई की हिफ़ाजत के लिए खुद व अपने परिवार को क़ुर्बान कर दिया, जो शहीद-ए-कर्बला की दास्तान में मौजूद है। हम सब को भी उनके बताये रास्ते पर चलने की जरूरत है।
इमामबाड़ा पुराना गोरखपुर गोरखनाथ में मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीजी ने कहा कि पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने ‘खुतबा हज्जतुल विदा’ में फरमाया कि ऐ लोगों मैंने तुममें वह चीज छोड़ी है कि जब तक तुम उनको थामे रहोगे, गुमराह न होगे। पहली चीज ‘अल्लाह की किताब’ और दूसरी ‘मेरे अहले बैत’ (पैगंबर-ए-आज़म के घर वाले यानी हज़रत अली, हज़रत फातिमा, हज़रत हसन व हज़रत हुसैन आदि) हैं।
मोती जामा मस्जिद रसूलपुर अमरुतानी बाग में मुफ़्ती खुश मोहम्मद मिस्बाही ने कहा कि इमाम हुसैन व उनके जांनिसारों ने कर्बला की तपती रेत पर भूखे प्यासे रहकर अज़ीम क़ुर्बानियां पेश कीं। हमें प्रण लेना चाहिए कि हम अपनी पूरी ज़िन्दगी इमाम हुसैन के नक्शेक़दम पर चलकर गुजारेंगे, तभी हमें कामयाबी मिलेगी।
मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर में मौलाना रियाजुद्दीन क़ादरी व मौलाना मो. फिरोज निज़ामी ने कहा कि इमाम हुसैन से लोगों के प्यार की सबसे बड़ी वजह यह थी कि वो दीन-ए-इस्लाम के आख़िरी नबी के नवासे थे और मिटती हुई इंसानियत को बचाने के लिए जुल्म के खिलाफ निकले थे।
सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर में मौलाना अली अहमद ने कहा कि इमाम हुसैन मदीने से चले तो पूरा खानदान आपके साथ था, सिर्फ एक बीमार बेटी हज़रत सुगरा को पैगंबर-ए-आज़म की पत्नी उम्मुल मोमिनीन हज़रत उम्मे सलमा के पास छोड़ दिया था।