गोरखपुर। मुकद्दस रमज़ान की नूरानियत चारों तरफ छाई हुई है। गुरुवार को 19वां रोज़ा मुकम्मल हो गया। मस्जिद व घरों में इबादत के साथ क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत जारी है। दुआ मांगी जा रही है। रमज़ान का दूसरा अशरा शुक्रवार की शाम समाप्त हो जाएगा और तीसरा अशरा दोजख से आज़ादी का शुरू होगा। तीसरे अशरे में शहर की तमाम मस्जिदों में दस दिनों का एतिकाफ़ किया जाएगा। वहीं शबे कद्र की तलाश में रमज़ान की 21, 23, 25, 27 व 29 की रात में जागकर खूब इबादत की जाएगी।
शुक्रवार को चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर, रज़ा मस्जिद जाफ़रा बाज़ार, मस्जिदे जामे नूर जफ़र कॉलोनी बहरामपुर, गाज़ी मस्जिद गाज़ी रौजा, गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर, बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर, काजी जी की मस्जिद इस्माईलपुर, मियां बाज़ार पूरब फाटक मस्जिद, मस्जिद जोहरा मौलवी चक बड़गो आदि में तरावीह की नमाज़ के दौरान एक क़ुरआन-ए-पाक मुकम्मल होगा।
शबे कद्र की रात में इबादत करने का है बहुत सवाब
मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक के इमाम मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने बताया कि शबे कद्र के बारे में अल्लाह फरमाता है कि बेशक हमनें क़ुरआन को शबे कद्र में उतारा। शबे कद्र हज़ार महीनों से बेहतर है यानी हज़ार महीना तक इबादत करने का जिस कदर सवाब है उससे ज्यादा शबे कद्र में इबादत का सवाब है। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि शबे कद्र अल्लाह ने मेरी उम्मत को अता की है। यह पहली उम्मतों को नहीं मिली। हज़रत आयशा रदियल्लाहु अन्हा से मरवी है कि पैग़ंबर-ए-आज़म ने फरमाया शबे कद्र को आखिरी अशरा की ताक रातों में तलाश करो यानी रमज़ान की 21, 23, 25, 27, 29 में। नायब क़ाज़ी मुफ्ती मो. अजहर शम्सी ने बताया कि शुक्रवार 22 अप्रैल की शाम से एतिकाफ शुरु होगा।मुकद्दस रमज़ान के आख़िरी अशरे (अंतिम दस दिन) का एतिकाफ सुन्नते मुअक्कदा अलल किफाया है यानी मोहल्ले की मस्जिद में किसी एक ने कर लिया तो सब की तरफ से अदा हो गया और अगर किसी एक ने भी न किया तो सभी गुनाहगार हुए। औरतें घर में ही एतिकाफ कर सकती हैं।
इस तरह करें एतिकाफ
कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने बताया कि इस एतिकाफ में ये जरूरी है कि रमज़ान की 20वीं तारीख़ गुरुबे आफताब (सूर्यास्त) से पहले-पहले मस्जिद के अंदर ब नियते एतिकाफ मौजूद हों और उन्तीसवीं के चांद के बाद या तीस के गुरुबे आफताब (सूर्यास्त) के बाद मस्जिद से बाहर निकलें। अगर गुरुबे आफताब के बाद मस्जिद में दाखिल हुआ तो एतिकाफ की सुन्नते मुअक्कदा अदा न हुई। बल्कि सूरज डूबने से पहले मस्जिद में दाखिल हो चुके थे मगर नियत करना भूल गए थे यानी दिल में नियत ही नहीं थी क्योंकि नियत दिल के इरादे को कहते है इस सूरत में भी एतिकाफ की सुन्नते मुअक्कदा अदा न हुई। अगर गुरुबे आफताब के बाद नियत की तो नफ्ली एतिकाफ हो गया। दिल में नियत कर लेना ही काफी है जबान से कहना शर्त नहीं। अलबत्ता दिल में नियत हाजिर होना जरूरी है साथ ही ज़बान से कह लेना बेहतर है।