ऐतिहासिक

माह-ए-रमजान में बातिल के विरुद्ध इस्लाम की पहली लड़ाई जंगे बद्र

मौलाना मो० जहांगीर आलम महजूरुल क़ादरी
ज़िला अध्यक्ष बिहार स्टेट उर्दू टीचर्स एसोसिएशन नवादा

अपने साथियों से पूछने लगा कि क्या यह वही जगह है जहां लकीर खिंची गयी थी। उसके साथियों ने हां कहा तो वह छटपटाते हुए दायरे से बाहर निकलने लगा, लेकिन नहीं निकल पाया। तब साथियों से कहने लगा कि मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम की भविष्यवाणी को झूठी साबित करना है, मुझे इस दायरे से बाहर निकालो। साथी उसे उठाने के लिए झुके ही थे कि अबू जेहल ने दम तोड़ दिया। ‘जंगे बद्र में अबुसुफयान के तीन बेटे इस्लाम की मुखालेफत में लड़े, मुआविया, हनजा व अम्र, हनजा हजरत अली रज़ियल्लाहो अन्हु के हाथों कत्ल हुआ, अम्र कैदी बना और मुआविया मैदान से भाग गया था। ‘ इस जंग में 70 दुशमनाने इस्लाम मारे गए और इतने ही घायल हुए, कुछ को बंदी बनाया गया तो कुछ जान बचाकर भाग गए। ‘अल्लाह के रसूल के तरफ से जंग करने वालो में छह मुहाजिर और आठ अंसारी शहीद हुए और आख़िरकार हक़ की जीत हुई। ‘लड़ाई ख़त्म होने के बाद अल्लाह के रसूल को बेचैन देखकर एक सहाबी ने पूछा ऐ अल्लाह के रसूल आप परेशान क्यों है? आपने फ़रमाया कैदियों को जो रस्सिया बांधी गई हैं, उन्हें ढीली करो इनमें मेरे चाचा अब्बास भी हैं और फिर उनके हुक्म के मुताबिक सभी कैदियों को फिदिया लेकर छोड़ दिया गया। इनमें जो पढ़े लिखे कैदी थे, उनका फिदिया ये था कि वो 10 बच्चों को लिखना पढ़ना सिखाएंगे। ‘ये था अखलाख और इन्साफ हमारे प्यारे आका नबी ए करिमैन सल्ललाहो अलैहि वसल्लम का, जिन्होंने दुश्मनों को भी कभी कोई तकलीफ नहीं दी…सुभानअल्लाह।

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