गोरखपुर। गुरुवार को तेज धूप में रोज़ेदारों ने अल्लाह के हुक्म का पालन करते हुए रोज़ा, नमाज़ व अन्य इबादतें कीं। मुकद्दस रमज़ान रहमत और बरकत का महीना है। रमज़ान में मुसलमान ग़रीब, असहाय और जरूरतमंदों का ख़्याल रख कर उनकी मदद कर रहे हैं। रमज़ान में अल्लाह अपने बंदों के गुनाहों को माफ़ कर उन्हें दोजख से आज़ादी का परवाना अता करता है। अल्लाह के फज़ल से गुरुवार को 12वां रोज़ा मुकम्मल हो गया। 14 घंटा 19 मिनट का लम्बा रोज़ा मुसलमानों के सब व शुक्र का इम्तिहान ले रहा है। रोज़ेदारों के हौसले के आगे धूप की शिद्दत कमजोर पड़ गई है, हालांकि वह रोज़ेदार बंदे जो मजदूरी करते हैं, ठेला चलाते हैं या अन्य ज्यादा मशक्कत का काम करते हैं उनके लिए रोज़ा थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन अल्लाह की मोहब्बत के आगे रोज़ेदार गर्मी का हर सितम डटकर सहने को तैयार हैं। तरावीह की नमाज़ का सिलसिला जारी है। कई मस्जिदों में एक कुरआन शरीफ मुकम्मल हो चुका है और आने वाले शनिवार को एक दर्जन से अधिक मस्जिदों में तरावीह की नमाज़ के दौरान एक कुरआन मुकम्मल होगा।
मस्जिदों में रमज़ान का विशेष दर्स जारी है। इस कड़ी में गुरुवार को सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा में हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी ने कहा कि रोज़ा रोशनी की लकीर और नेकी की नजीर (मिसाल) है। रमज़ान का तो हर रोज़ा खुशहाली का खज़ाना और पाकीज़गी का पैमाना है। रमज़ान की बरकतों की तहरीर का ये कारवां बढ़ता ही जा रहा है। रोज़ा अल्लाह के करीब ले जाने वाला रास्ता है। इसलिए रोज़ा अल्लाह से ख़ौफ़ और मोहब्बत का सबब तो है ही, अल्लाह का अदब भी है। जब अल्लाह के फ़जल की तलब की जाती है तो अल्लाह रोज़ादार की दुआ सुनता है और मुराद पूरी करता है। फ़र्ज़ नमाज़ों के साथ तरावीह, नफ्ल नमाज़, तिलावते कुरआन कर अल्लाह के फरमाबरदार बनें।
हुसैनी जामा मस्जिद बड़गो के इमाम मौलाना मो. उस्मान बरकाती ने बताया कि रोज़ा अल्लाह का अदब भी है और फ़जल की तलब भी है। अल्लाह महान है इसलिए उस अज़ीम से डरना दरअसल मोहब्बत करना ही है। इसलिए एक रोज़ादार जब रोज़ा रखता है तो उसके दिल में ख़ौफ़े-खुदा होता है, जो उसे रोजे के अहकाम और अदब से बांधता है। बाकी बचे रोज़े में खूब इबादत कर अल्लाह को राज़ी करें। सदका, जकात व फित्रा की रकम हक़ादारों तक जल्द पहुंचा दें ताकि वह रमज़ान व ईद की खुशियों में शामिल हो सकें।