मसाइल-ए-दीनीया

सदक़ा-ए-फित्र

मसअला:
सदक़ये फित्र मालिके निसाब मर्द वह औरत बालिग नाबालिग आक़िल पागल हर मुसलमान पर वाजिब है, 2 किलो 47 ग्राम गेंहू या उसकी क़ीमत अदा करें।
📕अनवारूल ह़दीस सफह 257

हदीस:
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि बन्दे का रोज़ा आसमानो ज़मीन के बीच रुका रहता है जब तक कि सदक़ये फित्र अदा ना कर दे।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 66

हदीस:
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि सदक़ये फित्र इस लिए मुक़र्रर किया गया ताकि तमाम बुरी और बेहूदा बातों से रोज़ों की तहारत हो जाये।
📕 अनवारुल हदीस,सफह 257

सदक़ये फित्र देने वाले को उसके हर दाने के बदले जन्नत में, 70000 महल मिलेंगे।
📕 क्या आप जानते हैं,सफह 384

तालिबे इल्म पर 1 दरहम खर्च करना गोया उहद पहाड़ के बराबर सोना खर्च करना है।
📕 क्या आप जानते हैं,सफह 385

सदक़ये फित्र में गेहूं की शुरुआत हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दौर से हुई इससे पहले सदक़ये फित्र में खजूर मुनक्का और जौ ही दिया जाता था।
📕 क्या आप जानते हैं,सफह 393

उम्मते मुहम्मदिया में जब कोई शख्स सदक़ा करता है तो जहन्नम रब से अर्ज़ करती है कि मौला मुझे सज्दये शुक्र की इजाज़त दे कि इस उम्मत से एक शख्स तो मुझसे निजात पा गया।
📕 क्या आप जानते हैं,सफह 394

यहां निसाब से मुराद ज़कात का निसाब ही है मगर फर्क इतना है कि सदक़ये फित्र वाजिब होने के लिए माल पर साल गुज़रना ज़रूरी नहीं बल्कि ईद की नमाज़ से पहले अगर 52.5 तोला चांदी की क़ीमत जो आजकल की कामत के हिसाब से तक़रीबन 36400- रू बनेगा का मालिक हो गया तो सदक़ये फित्र वाजिब हो गया,यही निसाब क़ुर्बानी के लिए भी होता है यानि क़ुर्बानी के दिनों में अगर इतनी कीमत का मालिक हो गया तो क़ुर्बानी वाजिब हो गई माल पर साल गुज़रना ज़रूरी नहीं।

मसअला:
मालिके निसाब मर्द पर अपना और अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से सदक़ये फित्र देना वाजिब है बाप ना हो तो दादा दे मगर मां पर वाजिब नहीं।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 67-68

मसअला:
बीवी और बालिग़ औलाद का सदक़ये फित्र मर्द पर वाजिब नहीं हां अदा करना चाहे तो कर सकता है अगर उनका खर्च उठाता है तो बग़ैर इजाज़त भी दे सकता है अदा हो जायेगा वरना बग़ैर इजाज़त नहीं,युंही मां-बाप दादा-दादी नाबालिग भाई-बहन का सदक़ये फित्र मर्द पर वाजिब नहीं हां उनकी इजाज़त लेकर दे सकता है।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 69

मसअला:
सदक़ये फित्र के लिए रोज़ा रखना शर्त नहीं अगर शरई उज़्र की वजह से या मआज़अल्लाह क़सदन भी रोज़ा ना रखे तब भी वाजिब है।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 68

मसअला:
बेहतर है कि ईद की सुबह होने के बाद ईदगाह जाने से पहले अदा करे और अगर रमज़ान में ही अदा कर दिया तब भी अदा हो गया युंही अगर ईद की नमाज़ हो गई और सदक़ये फित्र अदा ना किया तब भी वो साकित ना हुआ अब अदा करे।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 67/71

والله تعالیٰ اعلم بالصواب

लेखक: क़ारी मुजीबुर्रह़मान क़ादरी शाहसलीमपुरी- बहराइच शरीफ यू०पी०

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