मसाइल-ए-दीनीया

मसाइल-ए-ज़कात (क़िस्त 01)

कुरआन (कंज़ुल ईमान): कुछ अस्ल नेकी ये नहीं कि (नमाज़ में ) मुंह मशरिक या मग़रिब की तरफ करो हाँ अस्ल नेकी ये है कि ईमान लाये अल्लाह और क़यामत और फरिश्तों और किताब और पैगम्बरों पर,और अल्लाह की मुहब्बत में अपना अज़ीज़ माल दें रिश्तेदारो और यतीमों और मिस्कीनों और राह गीर और साईलों को और गर्दने छुड़ाने में,और नमाज़ क़ायम रखे और ज़कात दे और अपना कौल पूरा करने वाले जब अहद करें और सब्र वाले मुसीबत और सख्ती में,और जिहाद के वक़्त यही है जिन्होंने अपनी बात सच्ची की,और यही परहेज़गार हैं।
📕 पारा 2,सूरह बक़र,आयत 177

वैसे तो क़ुर्आन में तक़रीबन 150 मर्तबा सदक़े की ताकीद आई है जिसमे 70 से ज़्यादा बार नमाज़ के साथ ज़कात का हुक्म दिया गया है मगर ये आयत पेश करने का एक दूसरा मक़सद था,मक़सद ये था कि बाज़ लोग मुसलमानों को ये समझाने की कोशिश करते हैं कि “जिसने नमाज़ पढ़ी रोज़ा रखा हज किया ज़कात दी यानि बज़ाहिर मुसलमान हैं उसको काफ़िर किस तरह कहा जा सकता है क्योंकि हदीसे पाक में आता है कि जो हमारी नमाज़ पढ़े हमारे क़िब्ले को मुंह करे हमारा ज़बीहा खाये वो मुसलमान है” तो इस बात का रद्द तो अल्लाह ने क़ुर्आन में ही साफ साफ फरमा दिया है कि सिर्फ अपना मुंह मशरिक या मग़रिब की तरफ कर लेने से कोई मुसलमान नहीं हो जाता बल्कि मुसलमान होने के लिए अल्लाह और उसके नबियों उसकी किताबों उसके फरिश्तों और क़यामत पर ईमान लाना होगा वरना लाखों क्या करोड़ों बरस नमाज़ पढ़े अगर उसके महबूबो से बुग्ज़ो हसद रखेगा तो मलऊन बनाकर हमेशा के लिए जहन्नम में डाल दिया जायेगा इसे समझने के लिए इब्लीस की मिसाल काफी है,खैर अपने मौज़ू पर आते हैं जिस तरह ज़कात के बारे में काफी आयतें नाज़िल हुई उसी तरह बेशुमार हदीसों में भी इसका तज़किरा मिलता है चन्द का ज़िक्र करता हूं।

हदीस: हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो लोग अपने माल की ज़कात नहीं अदा करेंगे तो क़यामत के दिन उनका माल गंजे सांप की शक्ल में उनके गले में पड़ा होगा और वो अपने जबड़ों से उसके मुंह को पकड़े होगा और कहेगा कि मैं तेरा माल हूं।
📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 188

हदीस: हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो सोने और चांदी का मालिक हुआ और उसने उसका हक़ अदा ना किया यानि ज़कात ना दी तो क़यामत के दिन आग के बने हुए पतरों से उसकी पेशानी और पहलु और पीठ को दागा जायेगा,और जिन्होंने अपने जानवरों की ज़कात ना दी तो क़यामत के दिन उसके ऊपर से तमाम जानवरों को गुज़ारा जायेगा जिससे कि वो रौंदा जायेगा।
📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 318

हदीस: जिस पर हज फर्ज़ हुआ और हज ना किया और ज़कात फर्ज़ हुई और ज़कात ना दी तो मौत के वक़्त वो वापसी का सवाल करेगा (यानि जिस तरह काफ़िर पर अज़ाब मुसल्लत किया जायेगा और वो तौबा करने के लिए वापस दुनिया में आने की ख्वाहिश करेगा मआज़ अल्लाह ऐसा ही कुछ उस बदकार मुसलमान के साथ भी होगा कि जिससे वो वापस आकर अपना हक़ अदा करने की दुआ करेगा,मगर ऐसा होगा नहीं)।
📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 165

हदीस: हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम फरमाते हैं कि मुसलमान को जो भी माल का नुक्सान होता है वो ज़कात ना देने के सबब से होता है।
📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 7

फुक़्हा: शैतान हर तरह से इंसान को फरेब देने में लगा रहता है मगर जब कोई बंदा उसके फरेब में नहीं आता तो उसके माल से लिपट जाता है और उसको सदक़ा व खैरात करने से रोक देता है।
📕 तिलबीसे इब्लीस,सफह 455

फुक़्हा: ताबईन रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम की एक जमाअत किसी फौत शुदा के घर उसकी ताज़ियत को गई वहां मरने वाले का भाई आहो बका व चीख पुकार कर रहा था,इस पर तमाम हज़रात ने उसे सब्र करने की तालीम दी इस पर वो बोला कि मैं कैसे सब्र करूं जबकि मैं खुद अपने भाई पर अज़ाब होते देखकर आ रहा हूं,वाक़िया कुछ युं है कि जब सब उसे दफ्न करके चले गए तो मैं वहीं बैठा रहा अचानक अपने भाई के चिल्लाने की आवाज सुनी वो चिल्ला रहा था कि सब मुझे छोड़कर चले गए मैं यहां अज़ाब में हूं मेरे रोज़े मेरी नमाज़ें सब कहां गई,इस पर मुझसे बर्दाश्त ना हुआ मैंने कब्र खोदा तो देखता क्या हूं कि उसकी क़ब्र में आग भड़क रही है और उसके गले में आग का तौक़ पड़ा है मैंने सोचा कि वो तौक़ निकाल दूं तो देखो कि खुद मेरा हाथ जलकर सियाह हो गया अब बताइये मैं कैसे सब्र करूं,जब उससे पूछा गया कि तुम्हारे भाई पर ये अज़ाब क्यों आया तो वो कहने लगा कि वो नमाज़ रोज़े और दीगर इबादतें तो खूब करता था मगर ज़कात नहीं देता था,जब ये खबर सहाबिये रसूल हज़रत अबूज़र रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को मिली तो आपने फरमाया कि ये अल्लाह तआला ने तुमको इबरत हासिल करने के लिए दिखाया है वरना काफिरो मुशरिक पर तो अज़ाब दायमी है।
📕 मुकाशिफातुल क़ुलूब,सफह 164

फुक़्हा: जो क़ौम ज़कात अदा नहीं करती तो मौला तआला उन पर से बारिश को रोक देता है (यानि सूखा अकाल पड़ जाता है)।
📕 किताबुल कबायेर,सफह 59

लिहाज़ा मुसलमानों अपने माल की ज़कात पूरी पूरी ईमानदारी से अदा करें वरना अज़ाब के लिए तैयार रहें।

والله تعالیٰ اعلم بالصواب

लेखक: क़ारी मुजीबुर्रह़मान क़ादरी शाहसलीमपुरी, बहराइच शरीफ यू०पी०

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