मसअला:
तरावीह मर्द व औरत सब के लिए बिलइज्मा सुन्नते मुअक्किदह है इस का तर्क (छोड़ना) जाइज़ नहीं। (दुर्रे मुख़्तार, वगैरह)
इस पर ख़ुलफ़ाए राशिदीन रज़ि अल्लाहु अन्हुम ने मदावमत फ़रमाई और नबी “ﷺ” का इरशाद है कि: मेरी सुन्नत और सुन्नते ख़ुलफ़ाए राशिदीन को अपने ऊपर लाज़िम समझो। और ख़ुद हुज़ूर “ﷺ” ने भी तरावीह पढ़ी और उसे बहुत पसंद फ़रमाया। (बहारे शरीअत, जिल्द 1, हिस्सा 4, सफ़ह 688, नया एडीसन)
सहीह मुस्लिम में हज़रते अबु हुरैरह रज़ि अल्लाहु अन्हु से मरवी है: रसूले करीम “ﷺ” ने फ़रमाया कि: जो रमज़ान में क़याम करे (तरावीह पढ़े) ईमान की वजह से और सवाब तलब करने के लिए उसके अगले सब गुनाह बख़्श दिए जाएंगे, यानी सग़ाइर{छोटे गुनाह}। (सही मुस्लिम शरीफ़, जिल्द 1, सफ़ह 259 & मिश्क़ात शरीफ़, सफ़ह 114)
मसअला:
जम्हूर का मज़हब ये है के तरावीह की 20, रकअतें हैं और यही हदीस शरीफ़ से साबित है;
बैहक़ी ने बसनदे सहीह हज़रते साइब बिन यज़ीद रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत की कि लोग हज़रते उमर फ़ारुक़े आज़म रज़ि अल्लाहु अन्हु के ज़माना में बीस(20) रकअत (तरावीह) पढ़ा करते थे। (बैहक़ी, जिल्द 2, सफ़ह 699)
हज़रते यज़ीद बिन रूमान رضي الله تعالیٰ عنه ने फ़रमाया की हज़रते उमर رضي الله تعالیٰ عنه के ज़माने में लोग तेईस (23) रकअत पढ़ते थे।{यानी बीस(20) रकअत तरावीह और तीन(3) रकअत वित्र} (इमाम मालिक, जिल्द 1, सफ़ह 115 & अनवारुल हदीस, सफ़ह 146 & (बहारे शरीअत, नया एडीसन, जिल्द 1, हिस्सा 4, सफ़ा 688)
मसअला:
इसका वक़्त फ़र्ज़ इशा के बाद से तुलुए फ़ज़र तक है वित्र से पहले हो सकती है और बाद भी तो अगर कुछ रकअतें इसकी बाक़ी रह गईं के इमाम वित्र को खड़ा हो गया तो इमाम के साथ वित्र पढ़ले फिर बाक़ी अदा करले जबके फ़र्ज़ जमाअत से पढ़े हों और ये अफ़ज़ल है और अगर तरावीह पूरी करके वित्र तन्हा पढ़े तो भी जाइज़ है,
और अगर बाद में मालूम हुआ के नमाज़े इशा बग़ैर तहारत (बग़ैर पाकी) पढ़ी थी और तरावीह व वित्र तहारत के (पाकी के) साथ तो इशा व तरावीह फिर पढ़े वित्र हो गया। (दुर्रे मुख़्तार & आलमगीरी)
मसअला:
मुस्तहब ये है के तिहाई रात तक ताख़ीर करें और आधी रात के बाद पढ़ें तो भी कराहत नहीं। (दुर्रे मुख़्तार)
मसअला:
अगर फ़ौत हो जाएं तो उनकी (तरावीह की) कज़ा नहीं और अगर कज़ा तन्हा पढ़ ली तो तरावीह नहीं बल्के नफ़्ल मुस्तहब हैं। जैसे मग़रिब व इशा की सुन्नतें। (दुर्रे मुख़्तार & रद्दुल मोहतार)
मसअला:
तरावीह की बीस रकअतें दस सलाम से पढ़े यानी हर रकअत पर सलाम फ़ेरे और अगर किसी ने बीसों पढ़ कर आख़िर में सलाम फ़ेरा तो अगर हर दो रकअत पर क़ाअदा करता रहा तो हो जाएगी मगर कराहत के साथ और अगर क़अदा न किया था तो दो रकअत के क़ायम मक़ाम हुईं। (दुर्रे मुख़्तार)
मसअला:
एहतियात ये है के जब दो – दो रकअत पर सलाम फ़ेरे तो हर दो रकअत पर अलग – अलग नियत करे और अगर एक साथ बीसों रकअत की नियत कर ली तो भी जाइज़ है। (रद्दुल मोहतार)
मसअला:
तरावीह में एक बार क़ुरआन मजीद ख़त्म करना सुन्नते मुअक्किदा है और दो मर्तबा फ़ज़ीलत और तीन मर्तबा अफ़ज़ल। लोगों की सुस्ती की वजह से ख़त्म को तर्क न करे। (दुर्रे मुख़्तार)
मसअला:
इमाम व मुक़तदी हर दो रकअत पर सना पढ़ें और बाद तशह्हुद दुआ भी, हाँ अगर मुक़तदीयों पर गिरानी हो तो तशह्हुद के बाद اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَآلِهِ पर इक़तिफ़ा करे। (दुर्रे मुख़्तार & रद्दुल मोहतार)
मसअला:
अगर एक ख़त्म करना हो तो बेहतर ये है के सत्ताईसवीं (27) शब (रात) में ख़त्म हो फ़िर अगर उस रात में या उसके पहले ख़त्म हो तो तरावीह आख़िर रमज़ान तक बराबर पढ़ते रहें के सुन्नते मुअक्किदा हैं। (आलमगीरी)
मसअला:
अफ़ज़ल ये है के तमाम शफ़ओं में क़िराअत बराबर हो और अगर ऐसा ना किया जब भी हर्ज नहीं। यूंही हर शफ़अ की पहली रकअत और दूसरी की क़िराअत मसावी हो दूसरी की क़िराअत पहली से ज़्यादा ना होना चाहिए। (आलमगीरी)
मसअला:
क़िराअत और अरकान की अदा में जल्दी करना मकरूह है और जितनी तरतील ज़्यादा हो बेहतर है। यूँही ताअ्व्वुज़ व तस्मिया व तमानीनत व तस्बीह का छोड़ देना भी मकरूह है। (आलमगीरी & बहारे शरीअत, जिल्द 1, हिस्सा 4)
मसअला:
हर चार रकअत पर इतनी देर तक बैठना मुस्तहब है जितनी देर में चार रकअतें पढ़ें पांचवीं तरवीहा (यानी जब तरावीह मुकम्मल हो जाएं) और वित्र के दरम्यान अगर बैठना लोगों पर गिरां (भारी) हो तो ना बैठे। (आलमगीरी)
मसअला:
इस बैठने में उसे इख़्तियार है के चुपका बैठा रहे या कलमा पढ़े या तिलावत करे या दुरूद शरीफ़ पढ़े या चार रकअतें तन्हा नफ़ल पढ़े जमाअत से मकरूह है या तस्बीह पढ़े।
سبحان ذى الملك…………………
मुकम्मल पढ़े। (बहारे शरिअत हिस्सा 4, सफ़ह 32—33—34, पुराना एडीसन)
लेखक: मुफ़्ती मुहम्मद ज़ुल्फ़ुक़ार ख़ान नईमी रज़वी
अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी
मुरादाबाद, यूपी भारत