गोरखपुर। बड़गो स्थित आस्ताने पर हज़रत कमालुद्दीन शाह वारसी अलैहिर्रहमां का दो दिवसीय उर्स-ए-पाक अकीदत व अदब के साथ मनाया गया। मंगलवार की शाम क़ुरआन ख्वानी हुई। रात में दीनी जलसा हुआ। जिसमें कारी जुन्नूरैन, हाफ़िज़ अज़ीम हस्सानी, मौलाना मो. उस्मान बरकाती आदि ने कहा कि जब पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मस्जिदे नबवी की तामीर की तो उसके साथ तालीम के लिए चबूतरा तामीर फरमाया। जिस पर बैठकर सहाबा इल्मे दीन सीखते थे और ज़िंदगी गुजारने के लिए आप से तहज़ीब और तमद्दुन की बात मालूम करते थे, हालांकि मस्जिदे नबवी की तामीर का दौर आप और आपके सहाबा पर आर्थिक तंगी का ज़माना था, पेट पर पत्थर बांधे हुए होते थे फिर भी उस वक्त मस्जिद और चबूतरा बनाते अल्लाह के पैग़ंबर ने मुसलमानों को यह तालीम दे दी है कि मुसलमान भूखा प्यासा रह सकता है मगर जैसे नमाज़ से दूर नहीं हो सकता उसी तरह इल्म हासिल करने से भी दूर नहीं रह सकता, जैसे नमाज़ फर्ज है उसी तरह इल्मे दीन हासिल करना भी फर्ज है।
उलमा-ए-किराम ने आगे कहा कि क़ुरआन-ए-पाक एक ऐसी सच्ची किताब है जो बताती है कि हमें कैसे ज़िंदगी गुजारनी है। हर बात का जिक्र क़ुरआन में है। इल्म की शमां से हमको मोहब्बत होनी चाहिए। हमें ग़रीबों की सहायता करनी चाहिए। दर्द-मंदों व बुजुर्गों से मोहब्बत करनी चाहिए। हमें हर वक्त अल्लाह से दुआ मांगनी चाहिए कि हम हर तरह की बुराई से बचें रहें और नेकी की राह पर चलें।
वहीं बुधवार को अकीदतमंदों को लंगर खिलाया गया। मनकबत पेश हुई। कुल शरीफ की रस्म अदा कर मुल्क में अमनो-अमान, तरक्की व भाईचारगी की दुआ मांगी गई। उर्स में एडवोकेट मिनहाज सिद्दीक़ी, हाफ़िज़ नासिर जमाल, हाफ़िज़ शहनवाज़, अजमेर सिद्दीक़ी, नबीउल्लाह ख़ान, अदनान, गुलाम रब्बानी, मोमिन अली, हिफाजत अली, शोएब, आसिफ, इमरान खान, जियाउल्लाह, ज़ुबैर, शहादत अली आदि ने शिरकत की।