गोरखपुर

शिद्दत से याद किए गए अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उमर, शैख़ शिब्ली व इमाम अस्क़लानी

गोरखपुर। शाही जामा मस्जिद तकिया कवलदह में रविवार को मुसलमानों के दूसरे ख़लीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उमर फ़ारुक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु, हज़रत शैख़ अबू बक़्र शिब्ली अलैहिर्रहमां व हज़रत इमाम शहाबुद्दीन अबुल फज़ल अहमद इब्ने हजर अस्क़लानी अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हुई। नात-ए-पाक पेश की गई।

सदारत करते हुए नायब काजी मुफ़्ती मो. अज़हर शम्सी ने कहा कि अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर पर 26 ज़िल हिज्जा 23 हिजरी को मस्जिद में नमाज़ के दौरान हमला हुआ। जिस वजह से आपकी शहादत 1 मुहर्रम 24 हिजरी को हुई। हज़रत उमर पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के प्रमुख चार सहाबा (साथियों) में से थे। वह हज़रत सैयदना अबू बक़्र के बाद मुसलमानों के दूसरे ख़लीफा चुने गए। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने आपको ‘फ़ारूक़’ की उपाधि दी थी, जिसका अर्थ होता है सत्य और असत्य में फर्क करने वाला। पैग़ंबर-ए-आज़म के अनुयाईयों में इनका रुतबा हज़रत अबू बक़्र के बाद आता है। हज़रत उमर जब ख़लीफा हुए तब एक नये दौर की शुरुआत हुई। दीन-ए-इस्लाम का खूब विस्तार हुआ। हज़रत उमर की न्यायप्रियता जग जाहिर है। हज़रत उमर अहले बैत से बहुत मोहब्बत करते थे।

संचालन करते हुए कारी मो. अनस रज़वी ने कहा कि हज़रत सैयदना उमर हज़रत सैयदना अबू बक़्र सिद्दीक़े अकबर के बाद तमाम सहाबा किराम में सबसे अफ़ज़ल हैं। आप पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की मुराद व दुआ हैं। वहीं हज़रत शैख़ अबू बक़्र शिब्ली तीस साल तक हदीस और फ़िक़्ह की तालीम हासिल करते रहे। आप हमेशा सादगी पसंद फरमाते थे और अक्सर वक्त तंहाई में गुजारते। आप पूरी रात जागकर इबादत व रियाजत करते। आप अपने जमाने के बहुत बड़े वली और इमाम हैं। आप हज़रत जुनैद अल बगदादी अलैहिर्रहमां के मुरीद व खलीफा हैं। आपका विसाल (निधन) 27 ज़िल हिज्जा 334 हिजरी में हुआ। आपका मजार बगदाद, इराक में है।

मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ आफताब ने कहा कि हज़रत इमाम हजर अस्क़लानी के वालिद का नाम नूरुद्दीन अली है। आपने नौ साल की उम्र में क़ुरआन-ए-पाक हिफ़्ज़ कर लिया। इसके बाद फ़िक़्ह की किताबें याद कर लीं। कई मुल्कों का सफर कर इल्मे दीन हासिल किया। आपने हदीस, फ़िक़्ह, तफसीर, तवारीख़ और सीरत की तकरीबन 150 किताबें लिखीं हैं। आपकी लिखी हुई फतहुल बारी (शरह सही बुखारी) किताब पूरी दुनिया में मशहूर है। आपका विसाल (निधन) 28 ज़िल हिज्जा 852 हिजरी में हुआ। आपका मजार मिस्र में है।

अमर में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान व हर बीमारी से शिफा की दुआ मांगी गई। उर्स-ए-पाक में हाफ़िज़ आरिफ, अफ़ज़ल खान, हाजी यूनुस, अरमान, जलालुद्दीन, मो. अयान, इकराम अली आदि मौजूद रहे।

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