गोरखपुर। जमुनहिया बाग में गुरुवार को महफिल-ए-ईद मिलादुन्नबी हुई। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हाफ़िज़ मोहम्मद आरिफ रज़ा इस्माईली ने की। नात व मनकबत मौलाना शमीमुल क़ादरी व मुनाजिर हसन ने पेश की।
मुख्य अतिथि मुफ़्ती मोहम्मद अज़हर शम्सी (नायब क़ाज़ी) व मौलाना अनवर अहमद तनवीरी ने कहा कि इस्लामी शरीअत ने तमाम इंसानों के साथ अच्छे अख़लाक़ से पेश आने की दावत दी है। इस्लाम अमन व सलामती का दीन है। इस दुनिया पर एक हज़ार साल से ज़्यादा मुसलमानों की हुक़ूमत रही है और पूरब से पश्चिम तक तौहीद का झंडा लहराता रहा है, लेकिन इस दौरान कोई मज़हबी इन्तेहा पसन्दी परवान नहीं चढ़ी, किसी दहशतगर्दी ने जन्म नहीं लिया बल्कि मुसलमानों की तरह ग़ैर मुस्लिमों की जान, इज्ज़त और उनके साज़ो सामान को मुकम्मल हिफ़ाज़त दी गई। इस्लामी शरीअत ने किसी भी ग़ैर मुस्लिम के दीन-ए-इस्लाम क़ुबूल करने पर कोई ज़बरदस्ती नहीं की बल्कि सिर्फ़ तरग़ीब और तालीम दी। अल्लाह फ़रमाता है “दीन में किसी चीज़ पर जब्र नहीं।” तारीख़ गवाह है कि बर्रे सग़ीर में लाखों इंसानों का दीन-ए-इस्लाम क़ुबूल करना सिर्फ़ और सिर्फ़ उनका दीन-ए-इस्लाम को पसंद करने की वजह से था, कोई ज़ोर ज़बरदस्ती उनके साथ नहीं थी। बर्रे सग़ीर में दीन-ए-इस्लाम क़ुबूल करने वालों की बड़ी तादाद हमारे बुजुर्गों के क़ौल व अमल और उनके अख़लाक़ से प्रभावित होकर ही दीन-ए-इस्लाम में दाखिल हुई थी। किसी भी ख़लीफ़ा या मुस्लिम हुक्मरां की तरफ़ से ग़ैर मुस्लिमों को दीन-ए-इस्लाम क़ुबूल करने के लिए जब्र व ज़बरदस्ती का सामना नहीं करना पड़ा।
अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई। महफ़िल में मजहर हुसैन, वारिस अली, अफजल हुसैन, मनोव्वर अहमद आदि ने शिरकत की।