लेखक: जफर कबीर नगरी
छिबरा, धर्मसिंहवा बाजार, संत कबीर नगर, उ.प्र.
दुनिया के सर्वोच्च नेता, वैश्विक मार्गदर्शक और परमेश्वर के अंतिम संदेष्टा हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह तआला ने दुनिया के लिए रहमत (दया) के रूप में भेजा, उनकी दया का दायरा केवल मानवता तक सीमित नहीं , अपितु यह दया व्यापक और सभी प्रकार के प्राणियों एवं पशु पक्षियों तक फैली हुई है, जब हम अज्ञानता काल (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आगमन के पूर्व काल) को देखते हैं, तो पता चलता कि अरब लोग अज्ञानता के अंधेरे में डूब गए थे, रिश्ते नातों का सम्मान नहीं किया जाता था, नारी को केवल मर्द की इच्छाएं पूरी करने की मशीन समझा जाता था, घर पर बेटी के जन्म को परिवार के लिए अपमान का कारण माना जाता था, मजदूरों और दासों को उनकी क्षमता से अधिक काम करने के लिए मजबूर किया जाता था, तथा उन्हें यातनाएं दिये जाने के साथ अमानवीय व्यवहार भी किया जाता था। व्यापार में ईमानदारी और भरोसे के बजाय झूठ, क्रूरता और स्वार्थ होने के साथ साथ अन्याय भी होता था , एक जाति किसी छोटे से मामले पर दूसरी जाति से युद्ध की घोषणा करदेती, इसलिए इतिहास में बुआस की लड़ाई का उल्लेख है जो निरंतर चालीस वर्षों तक चली, अर्थात न तो घरेलू स्तर पर शांति थी और न ही सामाजिक स्तर पर, आर्थिक रूप से गरीब चिंता में डूबे हुए थे, और इसके अतिरिक्त अशांति इतनी व्यापक थी कि व्यक्तिगत शांति प्राप्त करना भी असंभव था।
ऐसी परिस्थितियों में, मानवता की भलाई के लिए, अल्लाह सर्वशक्तिमान ने आखिरी पैगंबर महामान्य मानवता उपकारक हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को एक ऐसे धर्म के साथ भेजा, जिसे अल्लाह सर्वशक्तिमान ने इस्लाम का नाम दिया, अर्थात शांति और सुरक्षा का धर्म, यानी आप के आगमन के महान उद्देश्यों में से एक उद्देश्य शांति स्थापित करना था, और उस के साथ ही दुनिया के लिए एक उदाहरण स्थापित करना था, इसलिए पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कुरान में उच्च आदर्श के रूप में वर्णित किया गया है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने जीवन में हर तरह की परिस्थितियाँ देखीं और ये बदलती हुई परिस्थितियाँ उनकी उच्च नैतिकता को दर्शाती रहीं, इस तरह से पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दुनिया को अपने उदाहरण से दिखाया कि हर प्रकार की परिस्थितियों में अल्लाह को कैसे खुश किया जाए, पैगंबर की जीवनी पर एक सरसरी नज़र डालने से हमें आप के जीवन के जीवन मक्की और मदनी दोनों काल में शांति स्थापित करने और दुनिया को अपनी ओर आमंत्रित करने का प्रयास दिखाई देता है, और जब आपके साथियों पर सभी प्रकार के अत्याचार किए गए, तो आपने समाज की शांति बनाए रखने और सभी प्रकार के विद्रोह से रोका, किसी भी प्रकार के दुख दर्द के निवारण के लिए केवल अल्लाह के समक्ष फरियाद करने का उदाहरण प्रस्तुत किया और अपने अनुयायियों को सभी परिस्थितियों में अल्लाह दयावान पर अपना ध्यान रखने के लिए याद दिलाया।
हमें इतिहास में एक ऐसी ही घटना का पता चलता है जब पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक ईमानदार परिवार के तीन सदस्यों (हजरत यासिर, हजरत सुमय्या और हजरत अम्मार रिजवानुल्लाहि अलैहिम अजमईन) के पास से गुजर हुआ, जब काफिरों ने उन पर अत्यधिक उत्पीड़न किया हुआ था, तब उन्हों ने इन शब्दों में सलाह और खुशखबरी दी: “यासिर के परिवार वालों, धैर्य मत खोना क्योंकि अल्लाह ने तुम्हारे कष्टों के बदले में तुम्हारे लिए स्वर्ग तैयार किया है”, एक बार पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने काबा की दीवार से टेक लगाए बैठे थे, इतने में हज़रत ख़बाब बिन अर्त कुछ अन्य साथियों के साथ आप के पास आए और कहा: “हे अल्लाह के रसूल! मुसलमानों को कुरैश के हाथों इतना कष्ट हो रहा है, आप उनके लिए अल्लाह से प्रार्थना क्यों नहीं करते? जैसे ही आप ने ये शब्द सुने, उठ बैठे और आप का चेहरा लाल हो गया फिर फरमाया :“ देखो, तुम से पहले वह लोग गुजरे हैं जिनके मांस लोहे के कांटों से खरोंच कर हड्डियों तक को साफ किया गया है, लेकिन वे अपने धर्म से पीछे नहीं हटे और ऐसे लोग रहे हैं, जिनके सिर को आरी से काट दिया गया है, लेकिन उनके कदम नहीं फिसले हैं, देखिए, अल्लाह इस कार्य को पूरा करेंगे। यहां तक कि एक ऊँट सवार सनआ से हजरमौत तक जाएगा, और उसे ईश्वर के सिवाय किसी और का भय नहीं होगा, लेकिन आप जल्दी में हैं, इसी तरह, हज़रत अब्दुल रहमान बिन औफ पवित्र पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आए और कहा: हे अल्लाह के रसूल! जब हम बहुदेववादी थे तो हम सम्मानजनक थे और कोई भी हमारी ओर आंख उठा कर देख नहीं सकता था,लेकिन जब से हम मुसलमान बने हैं हम कमजोर और असहाय हो गए हैं और हमें काफिरों का अपमान और जुल्म सहना पड़ रहा है, ऐ अल्लाह के रसूल! हमें इन अविश्वासियों से लड़ने की अनुमति दें, उन्होंने कहा: “मुझे अल्लाह की ओर से क्षमा करने का आदेश है, इसलिए मैं तुम्हें युद्ध करने की अनुमति नहीं दे सकता”।
जीवन के मक्की युग में शांति स्थापन का एक उदाहरण हब्शा का प्रवास(हिज्रत) है, जब धर्म के लिए दुख और पीड़ा के सहन की श्रृंखला लंबी हो गई, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा को समाज में फसाद बरपाने और उनके अधिकारों के लिए लड़ने की अनुमति देने के बजाए इस देश और समाज को छोड़कर हिजरत का परामर्श देते हैं । नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने स्वयं इस सिलसिले में अपनी सुन्नत कायम की और मक्का से मदीना की ओर प्रस्थान किया, कोई कह सकता है कि दूसरों पर अन्याय होता देख का धैर्य रखना आसान है, लेकिन हमारा मार्गदर्शक तो वह है जिसे स्वयं इन कष्टों से गुजरना पड़ा था, जिनके शत्रु केवल इसलिए थे क्योंकि उन्होंने घोषणा की थी कि पालने वाला अल्लाह है, एक बार पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घर में किसी ने कोई गंदगी फेंक दिया जिसे उन्होंने अपने हाथ से उठाया, इसी प्रकार उन यातनाओं में से एक बड़ी यात्नकी वह थी जो आप को अबू तालिब घाटी में बनी हाशिम बनी मुत्तलिब के साथ कैद के समय में सहना पडी, इस अवधि के दौरान सभी जातियों ने आप का बहिष्कार किया, लेकिन पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस साढ़े तीन साल की अवधि को सहन किया और किसी भी प्रकार का आंदोलन और उकसाने अथवा भड़काने का काम नहीं किया, बल्कि अपनी सभी आशाओं को अल्लाह के साथ संलग्न किया, उस के बाद उनके जीवन में एक समय वह आया जब अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उन्हें सत्ता दी और सरकार उनके हाथों में आ गई, ऐसे अवसर पर भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का प्रयास यह था कि यथासंभव समाज से अशांति दूर करके शांति एवं भाईचारे का वातावरण स्थापित किया जाए तथा आपस में सुलह समझौते के साथ रहा जाए, उन्होंने मदीना में पहुंचते ही यहूदियों के साथ एक समझौता किया, जिसका उद्देश्य उनके बीच शांति बनाए रखना था, मदीना के इतिहास में ऐसी घटनाएं भी हैं जिनमें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यहूदियों की भावनाओं का विशेष ध्यान रखा और उनके साथ दयालुता और नरमी का व्यवहार किया।
हमारे पैगंबर का अनूठा उदाहरण शांति और सामंजस्य के बारे में मक्का की विजय के अवसर पर दिखाई दिया, यह वह शुभ अवसर था जब उन्होंने मक्का में एक महान विजेता के रूप में प्रवेश किया, लेकिन उसी समय उन्होंने शांति और मेल-मिलाप के एक नए अध्याय की घोषणा की, यह उनके जीवन का वह क्षण था जब पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने ऊपर हुए सभी प्रकार के अत्याचार का बदला ले सकते थे, और उन्होंने बदला लिया भी , लेकिन एक अजीब गरिमा के साथ, एक ओर उन्होंने बिलाल जैसे वफादार साथी की भावनाओं का ख्याल रखा, और दूसरी ओर उन्होंने सर्वश्रेष्ठ पैगंबर और लोगों में सर्वोत्तम होने का व्यावहारिक प्रमाण भी दिया, जिसे अपने और बेगाने दोनों ने स्वीकार किया।
इसलिए, जब मक्का के लोगों ने आपको निष्कासित कर दिया और तेरह वर्षों तक आप पर सभी प्रकार की यातनाएं आप को देते रहे और आपके साथियों पर भारी कष्ट पहुँचाए जिस को सोच कर भी आप का दिल कांप उठे, परंतु जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक्का पर विजय प्राप्त हुई , तो वर्षों तक मक्का के लोगों ने आपके और आप के सहयोगियों पर जो अत्याचार किए थे उसे देखते हुए आप बदले की भावना से नरसंहार कर सकते थे, मक्का के लोगों को तबाह कर देते, और इस हत्या में कोई भी प्रतिद्वंद्वी आपत्ति नहीं जताता, लेकिन आपने क्या किया? आपने उन सभी को छोड़ दिया और कहा “ला तस्रीब अलैकुम अल यौम”, यह कोई छोटी बात नहीं है, यह आपकी नैतिक उत्कृष्टता का एक उदाहरण है जो दुनिया में अद्वितीय है, तथ्य यह है कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अमन शांति का दूत होना न केवल उनके जीवन की घटनाओं से साबित होता है, बल्कि उन्होंने अपने अनुयायियों को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ऐसे सुनहरे सिद्धांतों और ज्ञान की शिक्षा दी जिन से वास्तव नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का शांति और सौहार्द का प्रतीक साबित होता है, समाज में शांति को बढ़ावा देने के लिए पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अधिक से अधिक सलाम को बढ़ावा देने की शिक्षा दी, तथा एक-दूसरे को उपहार देने और निमंत्रण स्वीकार करने की शिक्षा भी दी, इसलिए पैगंबर न केवल मुसलमानों को बल्कि गैर-मुस्लिमों को भी निमंत्रण स्वीकार किया और उनके द्वारा दिए गए उपहारों को भी स्वीकार किया।
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम समाज में शांति का माहौल बनाने के लिए नस्ल, धर्म या राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना प्रजा की सेवा में लगे रहते थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक बूढी गैर-मुस्लिम महिला का बोझ उठाने वााली घटना आप के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आपसी प्रेम और स्नेह को बढ़ाने के लिए बीमारों की अयादत करने का आदेश दिया, और उन्होंने इसे छह बुनियादी अधिकारों में शामिल किया जो एक मुसलमान दूसरे मुस्लिम पर है, इन सभी चीजों का एकमात्र उद्देश्य समाज और लोगों में प्रेम और स्नेह के वातावरण में शांति और सद्भाव स्थापित करना थाा, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बर्बर समाज में सुधार किया और धीरे-धीरे इसमें रहने वाले लोगों को अमन और शांति की ओर ले आए, लोगों को इंसान बना दिया, आज इस सच्चाई की रोशनी की किरणें और यह शांतिपूर्ण संदेश सारे मुझे के लोगों तक पहुंचाने की आवश्यकता है, अल्लाह हम सभी की मदद फरमाए, आमीन