गोरखपुर। मस्जिदों के इमाम (नमाज़ पढ़ाने वाले) व मोअज़्ज़िन (अज़ान देने वाले) की तनख़्वाह बढ़ाने को लेकर शहर में मुहीम चलाई जा रही है। हर जुमा को शहर की कई मस्जिदों में इस बाबत तकरीर कर अवाम व मस्जिद कमेटियों को बेदार किया जा रहा है। मुहीम को नाम दिया गया है ‘मिशन तनख़्वाह बढ़ाओ’। मुहीम छह माह तक जारी रहेगी। इसके लिए एक वाट्सएप ग्रुप ‘गुलाम-ए-मुस्तफा’ भी बनाया गया है। जिस पर शहर के तमाम उलेमा व बुद्धिजीवी आपसी सलाह मशवरा कर अपनी राय का इज़हार कर रहे हैं। मुहीम की अगुवाई समाजसेवी शाकिर सलमानी व हाफिज नूर अहमद कादरी आदि कर रहे हैं। पिछले जुमा को सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह, कादरिया मस्जिद पचपेड़वा चक्शा हुसैन, बेलाल मस्जिद अलहदादपुर आदि में तकरीर हुई थी। इस जुमा भी कई मस्जिदों में इमामों व मोअज़्ज़िनों की तनख़्वाह बढ़ाने को लेकर तकरीर कर अवाम व कमेटी को बेदार किया जाएगा।
गुलाम-ए-मुस्तफा तहरीक के शाकिर अली सलमानी ने कहा कि महंगाई व आर्थिक तंगी के जमाने में मस्जिद के इमाम व मोअज़्ज़िन हजरात की तनख़्वाह नाममात्र की है। जिस वजह से उनकी जिंदगी मुश्किल दौर से गुजर रही है। मात्र 4000 से 5000 रुपये तनख़्वाह में खुद का व परिवार का गुजारा करना बहुत मुश्किल हो रहा है। रोटी, कपड़ा व मकान की जद्दोजहद से इमाम व मोअज़्ज़िन दो चार हैं इसलिए यह मुहीम चलाई जा रही है। लॉकडाउन में इमाम व मोअज़्ज़िन के हालात और भी खराब हो गए हैं। अवाम को जागरूक होना पड़ेगा। उलेमा के प्रति लोगों को अपने रवैए में तब्दीली लानी होगी। कम से कम इमाम व मोअज़्ज़िन को दस हजार रुपये तनख्वाह मिलनी चाहिए ताकि जिंदगी आसानी से गुजर बसर हो सके।
मुफ्ती मो. अज़हर शम्सी (नायब काजी) ने कहा कि इमाम व मोअज़्ज़िन की तनख़्वाह के प्रति अवाम का रवैया बेहद अफसोसनाक है। हमारे हर मजहबी कामों में अगुवाई करने वाले इमाम व मोअज़्जिन गुरबत में जिंदगी बसर कर रहे हैं। अब अवाम व मस्जिद कमेटियों को अपना पुराना ढ़ग तब्दील करना होगा। तनख़्वाह बढ़नी ही चाहिए। मुहीम में सभी को साथ देना चाहिए। इमाम व मोअज़्ज़िन हमारी आन, बान और शान हैं लिहाजा सम्मानजनक तनख़्वाह पाना उनका हक है। इमाम व मोअज़्ज़िन हमारे दीनी रहनुमा हैं, उनका सम्मान बहुत जरूरी है।