नाम :हज़रत कुतुब शाह गौरी रहमतुल्लाह अलैहे
कर्नाटक का शहर कोलार
हज़रत कुतुब शाह गौरी के वैसे तो लाखो मुरीद थे लेकिन उन मुरीदों में आपके 70 मुरीद ऐसे थे जो बहुत खास और साथ रहने वाले थे अापने अपने उन मुरीदों को बुलाया और वसीयत की के जब मेरा विसाल हो जाए तो मेरे जनाजे को वहा दफन करना जहा मेरा जनाजा खुद रुक जाए आपके मुरीदों ने आपकी वसीयत को कुबूल किया
और कुछ अर्से बाद आपका विसाल हो गया आपके मुरीदों ने आपकी वसीयत के मुताबिक गुस्ल दिया कफ़न दिया और जनाजा लेकर चल दिए
आप के मुरीद चलते रहे चलते रहे लेकिन जनाजा कहीं ना रुका
जब नमाज़ का वक्त आया तो सबने जनाजे को रख कर नमाज़ अदा की और फिर जनाजे को लेकर चल दिए इस तरह चलते चलते दिन गुजरते रहे और आपके मुरीद अफगानिस्तान से होते हुए हिन्द पहोंच गए लेकिन जनाजा कहीं ना रुका
और चलते चलते 12 साल का अर्सा गुजर गया वक्त जितना zada गुजरता आपके जनाजे की ताज़गी और खुशबू उतनी ही बढ़ती गई
और चलते चलते आपके मुरीद कर्नाटक के एक शहर कोलार पहुंच गए वाहा जाकर देखा कि एक मंदिर है और उस मंदिर के पास एक पानी का होद है आपके मुरीदों ने जनाजा वहीं रखा और उस पानी के होद से वज़ू किया और नमाज़ पढ़ी खाना खाया तभी मंदिर से मंदिर का पुजारी बाहर आया और पूछने लगा आप लोग कोन है
आप सब ने फरमाया हम मुस्लिम है और अपने पीर के जनाजे को लेकर चले है और यहां हम नमाज़ पढ़ने के लिए रुके है
मंदिर का पुजारी घबराया और बोला कि आप लोग अभी यहां से चले जाए क्यों की आप नहीं जानते इस इलाके की एक रानी है जो मुस्लिमो से बहुत नफरत करती है अगर उसे पता चला आप लोगो ने यहां नमाज़ पड़ी है तो आपके साथ साथ मुझे भी मौत के घाट उतार देगी
अब उन्होंने जनाजा उठाया 4 ने उठाया ना उठा 8 ने उठाया ना उठा 40 ने उठाया ना उठा हर कोशिश करी मगर जनाजा अपनी जगह से ना हिला
12 साल तक चलते चलते अपने पीर की बात भूल गए थे अमीरे जमात को याद आ गया वह बोले क्या भूल गए कि हमारे पीर ने क्या कहा था पीर ने कहा था कि जब मेरा विसाल हो जाए तो जनाजा लेकर चलना और जहां पर रुक जाए वहीं पर मेर मजार बना देना
इशारा तो यही है कि यहां पर जनाजा रुक गया है तो मजार भी यही बनेग
पंडित जी ने खुद में कोशिश करके देख ली मगर एक पाया ना हिला पाए पंडित जी भी समझ गए यह कोई रोहानी ताकत है
पंडित जी भी बोले जो होगा देखा जाएगा कर भी क्या सकते हैं
अभी ये बात चल ही रही थी कि रानी अपने लश्कर के साथ वहा आ पाहोची और पूछने लगी
क्या हो रहा है
पंडित जी। बोले मुझे भी नहीं पता कि क्या हो रहा है
रानी। कौन करा रहा है
पंडित जी। यह जो लेटे हैं यही करा रहे हैं
रानी। यह कौन है
पंडित जी। यह इन लोगों के पीर हैं
रानी। इन्हें उठाओ
पंडित जी। हमने तो बहुत कोशिश कर लिया आप भी कर के देख लो
रानी। क्या मतलब
पंडित जी। हम तो काफी टाइम से कोशिश कर रहे हैं उठाने की मगर उठना तो दूर की बात हिल भी नहीं रहा
रानी। सिपाहियों इस जनाजे को उठाओ और मंदिर की हुदूद से बाहर निकाल दो
4 सिपाही आए 8 आए 12 आए सारे के सारे आ गए मगर फिर भी उठाना तो दूर की बात हिला भी नहीं पाए
सिपाहियों ने भी जवाब दे दिया कि अव चाहे आप कुछ भी करो मगर हमारे बस की बात नहीं कि उठा पाएं
रानी भी बहुत जिद्दी थी बाज नहीं आई उस वक्त सबसे ताकतवर चीज हाथी थे हाथियों को बुलाया गया जंजीर को जनाजे से से लपेटा गया जंजीर भी बहुत मोटी थी
फीलवान हुक्म दिया हाथी को चलाओ जब हाथी को चलाया गया ताकतवर जानवर था जब हाथी ने जोर लगाया जनाजा तो हिला नहीं बीच में से जंजीर के टुकड़े हो गए 72 कड़ियों की जंजीर थी और एक कड़ी एक बिलादं के बराबर अगर आपको यकीन ना हो तो आप कभी जाना तो देख लेना 14 कड़ी जनाजे से लिपटी रह गई और बाकी कड़ियां हाथी के साथ चली गई रानी भी मान गई के जब गुलामों का यह आलम है तो इनके आका रहमत लिल अालमीन सल्लल्लाहो अलैहे का क्या आलम होगा
और फिर उसी मंदिर में हज़रत कुतुब शाह गौरी का मजार बन गया
और जिस ज़ंजीर से बांध कर जनाजा खिच्वाया गया था वो टूटी हुई ज़ंजीर के टुकड़े आज भी मजार शरीफ में रखे है
मंदिर वहीं है उसमे कुछ भी नहीं बदला वहीं पुरानी इमारत जो उस ज़माने में थी बस फर्क सिर्फ इतना है पहले वो मंदिर था और अब वो एक वली का मकाम है