गोरखपुर। आज जब संविधान और संविधान के मूल्यों-स्वतंत्रता, समानता को प्रश्नांकित किया जा रहा है, उस पर हमला किया जा रहा है तब बुद्ध को याद करना बहुत महत्वपूर्ण है। बुद्ध को आज याद करना राष्ट्रीय आंदोलन, संविधान के साथ-साथ आज की सभी विकृतियों के खिलाफ संघर्ष करने का दिशा सूचक अंग है। यह बातें गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर राजेश मल्ल ने आज शाम गोरखपुर जर्नलिस्ट्स प्रेस क्लब के सभागार में बुद्ध से कबीर तक ट्रस्ट द्वारा ‘ बौद्ध दर्शन और आज का भारतीय समाज ’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही।
उन्होंने कहा कि बुद्ध ऐसे दार्शनिक हैं जो समाज से निरंतर संवाद करते हैं और संवाद के जरिए विश्लेषण करते हुए समाज के समस्याओं का हल निकालने का प्रयास करते हैं। अपने समय में जाति भेद, कर्मकांड के खिलाफ बुद्ध का आना एक तरह की क्रांति थी। बुद्ध को याद करते हुए उनके परवर्ती दार्शनिकों -नागार्जुन, धर्मकीर्ति आदि को भी याद करना जरूरी है। बुद्ध, गोरख और कबीर हमारी महान श्रमण परम्परा के अगुवा थे। आज हमें विचार करने की जरूरत है कि जिस उत्तर भारत में बहुत गहराई के साथ बुद्ध जैसा तेजस्वी पैदा हुआ, उसी जगह धर्म भेद और जाति भेद को साथ लेकर फासिज्म का क्यों आउट कैसे उभार हो रहा है।
गोष्ठी में बोलते हुए गुजरात के पूर्व डीजीपी और बुद्ध से कबीर तक ट्रस्ट के मुख्य संरक्षक डाॅ विनोद मल्ल ने कहा कि समाज में बढ़ती साम्प्रदायिकत और ध्रुवीकरण की स्थिति बेचैन करने वाली है। आज समाज जिन प्रश्नों का सामना कर रहा है, उसका जवाब व समाधान राजनीति दे पाने में अक्षम हो गई है। इसका जवाब सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहलू से ढूंढने की जरूरत है। इसी दिशा में पूर्वांचल में बुद्ध, गोरख, कबीर से लेकर आधुनिक समय में गांधी, डाॅ अम्बेडकर की विरासत व परंपरा को समाज में ले जाने की जरूरत महसूस हुई और बुद्ध से कबीर तक की यात्रा शुरू हुई जो पिछले सात वर्षों से जारी है।
वरिष्ठ कवि देवेन्द्र आर्य ने कहा कि बुद्ध पहले एक्टिविस्ट दार्शनिक है। इसके पहले के दार्शनिकों ने दर्शन को घराऊ चीज बना दिया था। वे समाज से कट कर आपस से दार्शनिक बहस कर रहे थे। बुद्ध संवादी दार्शनिक हैं जिन्होंने अनात्मवाद, अवतारवाद , आडम्बर, पाखंड को चुनौती दी। उन्होंने बुद्ध की परम्परा में गोरखनाथ द्वारा हर विभेद के खिलाफ किए गए संघर्ष को काम का बताते हुए कहा कि आज सामान्य जन की भावनाओं को दूषित करने की कोशिश की जा रही है लेकिन लोगों का आत्म अभी दूषित नहीं हुआ है। हमें बुद्ध, गोरख, कबीर की तरह साहस के साथ सामान्य जन के बीच जाने और उनसे संवाद करने की जरूरत है।
संगोष्ठी के संवाद सत्र में फिल्कार प्रदीप सुविज्ञ, आदेश सिंह, अशोक चौधरी , संदीप राय आदि ने हिस्सा लिया। आदेश सिंह ने कहा कि बौद्ध और श्रमण परम्परा को इतिहास में अपने विरोधियों से कड़ा संघर्ष करना पड़ा। इस परम्परा को आगे ले जाने वाले लोगों का समाज में बांटने, मनुष्य-मनुष्य में भेद करने और वर्चस्व बनाने वाली ताकतों से संघर्ष जारी है। उन्होंने सांस्कृतिक निर्मितियों के बनने के बारे में गहन विचार-विमर्श की जरूरत बतायी। पत्रकार अशोक चौधरी ने बुद्ध ने मृत्यु के बाद के दार्शनिक सवालों को उपेक्षित किया और दुनियावी चिंताओं-प्रश्नों पर चिंतन, मनन व संवाद किया।
संगोष्ठी का संचालन करते हुए पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने बुद्ध के जीवन, उनकी देशना, बौद्ध दर्शन के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि बौद्ध दर्शन के प्रभाव को बौद्ध मतावलंबियों की संख्या से नहीं बल्कि सभी धर्मों के मानने वालों लोगों के जीवन व सोचने के ढंग में परिवर्तन लाने की प्रासंगिकता के बतौर देखा जाना चाहिए।
इस मौके पर बुद्ध से कबीर तक ट्रस्ट के आदित्य ने वक्ताओं को स्मृति चिन्ह भेंट किया। कार्यक्रम में फादर आनंद, शैलेन्द्र कबीर, अब्दुल्लाह सिराज, कामिल खान, राजू मौर्य, पवन कुमार, जेपी यादव, रवीन्द्र मणि त्रिपाठी, आफरीन आदि मौजूद थे।