गोरखपुर

दीन-ए-इस्लाम में ज़िन्दगी के लिए एक मुकम्मल निज़ाम: सैयद लईक

तुर्कमानपुर में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा व किरात-अज़ान का मुकाबला

गोरखपुर। निकट पोस्ट आफिस, चिंगी शहीद तुर्कमानपुर में सोमवार को मरहूम हाजी अली अहमद राईन नक्शबंदी के चेहल्लुम पर जलसा-ए-ग़ौसुलवरा हुआ। बच्चों के बीच नात, किरात व अज़ान का इनामी मुकाबला भी हुआ। जलसा संयोजक इं. हाजी सेराज अहमद कादरी नक्शबंदी ने बच्चों को इनाम से नवाज़ा।

इसके बाद जलसा-ए-ग़ौसुलवरा हुआ। मुख्य अतिथि पीरे तरीकत सैयद मो. लईक क़ादरी नक्शबंदी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम ने ईमानियात, इबादात, मुआमलात और मुआशरत में पूरी ज़िन्दगी के लिये इस तरह रहनुमाई की है कि हर शख़्स चौबीस घंटे की ज़िन्दगी का एक-एक लम्हा अल्लाह की तालीमात के मुताबिक रसूल-ए-पाक सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के तरीक़े पर गुज़ार सके। दीन-ए-इस्लाम में खाने, पीने, सोने यहाँ तक कि इस्तिंजा करने का तरीक़ा भी बताया गया है। रास्ता चलने के आदाब भी बयान किए गए हैं। अल्लाह के हुक्म के साथ-साथ बन्दों के हुक़ूक़ को विस्तार से बता कर उनको अदा करने की बार-बार ताकीद की गई है।

विशिष्ट अतिथि मौलाना सैयद मो. अनस मिस्बाही नक्शबंदी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम ने इंसानों के हुक़ूक का जितना ख़्याल रखा है उसकी कोई नज़ीर किसी मज़हब में नहीं मिलती। दीन-ए-इस्लाम में आम इंसानों के हुक़ूक के साथ-साथ वालिदैन के हुक़ूक, मियाँ-बीवी के हुक़ूक़, पड़ोसियों के हुक़ूक़ और मज़दूरों के हुक़ूक़ की अदायगी के लिए ख़ास हिदायात जारी फ़रमाई है। दीन-ए-इस्लाम में यतीमों, बेवाओं और मज़लूमों का ख़ास ख़्याल रखा गया है।
इस्लामी शरीअत ने तमाम इंसानों के साथ अच्छे अख़लाक़ से पेश आने की दावत दी है। चाहे वह किसी भी मज़हब का मानने वाला हो, लेकिन मुसलमानों को आपस में भाईचारगी पर भी ज़ोर दिया है। दीन-ए-इस्लाम की ख़ूबियों में से एक अहम ख़ूबी यह भी है कि इस्लामी शरीअत ने अख़लाक़ को बेहतर से बेहतर बनाने की ख़ुसूसी तालीमात दी है।

मुख्य वक्ता अलजामियतुल अशरफिया मुबारकपुर यूनिवर्सिटी के मौलाना मसऊद अहमद बरकाती ने कहा कि अल्ला ह ने इल्म की ख़ास अहमियत क़ुरआन में कई बार ज़िक्र की है। पहली वही की इब्तेदा ‘इक़रा’ के लफ़्ज़ से फ़रमाकर क़यामत तक आने वाले इंसानों को इल्म के ज़ेवर से आरास्ता होने का पैग़ाम दिया। रसूल-ए-पाक सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने भी इल्म की ख़ास अहमियत व फ़ज़ीलत को बार बार ज़िक्र फ़रमाया। यह ध्यान देने की बात है कि इल्म उस वक़्त ही क़ाबिले क़द्र और रहमत का बाइस होगा जब उसके ज़रिए अल्लाह का ख़ौफ़ और अल्लाह की पहचान हासिल हो और ज़ाहिर है कि यह हालत क़ुरआन व हदीस से हासिल शुदा इल्म से ही पैदा होती है लिहाज़ा हमें दुनियावी उलूम से ज़रूर आरास्ता होना चाहिए और साइंस और नई टेक्नालॉजी के मैदान में भी आगे बढ़ना चाहिए, लेकिन बुनियादी तौर पर क़ुरआन व हदीस के इल्म से ज़रूर रोशनास होना चाहिए।

तिलावत कारी मो. हुसैन आलम ने की। नात अकबरपुर के मो. संदल जलालपुरी ने पेश की। संचालन मौलाना अकरम जलालपुरी ने किया। अंत में दरूदो सलाम पढ़कर अमनो सलामती की दुआ मांगी गई। जलसे में सूफी नियाज़ अहमद, मुफ्ती अख्तर हुसैन मन्नानी, मुफ्ती मो. अज़हर शम्शी, मौलाना मकसूद आलम, हाजी सेराज अहमद, मौलाना दानिश रज़ा, हाफिज सलमान, कारी हिदायतुल्लाह, अफरोज कादरी, कारी मोहसिन, मौलाना असलम रज़वी आदि मौजूद रहे।

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