गोरखपुर

हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ व हज़रत मूसा काज़िम का मनाया गया उर्स-ए-पाक

गोरखपुर। चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर व मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार में पहली सदी हिजरी के मुजद्दिद अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ियल्लाहु अन्हु, हज़रत सैयदना इमाम मूसा काज़िम रज़ियल्लाहु अन्हु व हज़रत क़ाज़ी सना उल्लाह पानीपती अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक मनाया गया। कुरआन ख्वानी व फातिहा ख्वानी की गई।

मस्जिद के पेश इमाम हाफिज महमूद रज़ा कादरी ने कहा कि हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ की पैदाइश मिस्र में 26 सफ़र 63 हिजरी में हुई। आपके वालिद का नाम अब्दुल अज़ीज़ व वालिदा का नाम उम्मे आसिम लैला था। आपके वालिद मिस्र के गवनर्र थे। आपकी तालीम मदीना शरीफ में हुई। वहां पर आपने बड़े-बड़े बुजुर्गों से मुकम्मल तालीम हासिल की। 87 हिजरी में आप मदीना के गवनर्र बने। 99 हिजरी में आप खलीफा बने। आपने दो साल छह महीने की खिलाफत के दौरान इंसाफ का खास ख्याल रखा। हमेशा सुन्नत व हदीस पर अमल करते रहे। आपके जमाने में चीन तक दीन-ए-इस्लाम पहुंचा। आपने सरकारी खजाने में जमा होने वाली जकात को यतीमों, मिस्कीनों और मोहताजों तक सही तरीके से पहुंचाना शुरू किया। नहर, सड़क, अस्पताल, मुसाफिर खाना बनवाया। आप पहली सदी हिजरी के अज़ीम मुजद्दिद हैं। आप तकवा व इबादत में बेमिसाल थे। आपने सादगी के साथ जिंदगी गुजारी। आपने मुल्क में शरई कानून को अमल कराना शुरु किया। आप अहले बैत की बहुत ताज़ीम करते थे। आपका निधन 20 या 25 रजब 101 हिजरी में हुआ। आपका मजार अलेप्पो (सीरिया) में है।

उन्होंने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम मूसा काज़िम की पैदाइश 7 सफ़र 128 हिजरी में हुई। आपके वालिद का नाम हज़रत सैयदना इमाम जाफ़र सादिक व वालिदा का नाम हमीदा खातून है। आप बहुत बड़े आलिम, इबादतगुजार व परेहजगार शख्स थे। आप बहुत सखी थे। आपको ज़हर देकर शहीद कर दिया गया। आपकी शहादत 25 रजब 183 हिजरी में हुई। आपका मजार इराक में है।

अंत में दरूदो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो सलामती की दुआ मांगी गई। उर्स में हाफिज़ सैफ अली, महबूब आलम, अबू बक्र, इमरान, इमाम हसन, मुख्तार खान, साद अहमद, अजहर अली, फुजैल, फैजान, चांद अहमद, नेसार अहमद, शहाबुद्दीन, सलीम आदि मौजूद रहे। शीरीनी बांटी गई।

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