कविता

तिरंगा

रहे शान से यह चमन ता क़यामत
है जैसे कि क़ायम गगन ता क़यामत
वफा की निशानी मोहब्बत का सरगम
हो बाकी ये गंग-व-जमन ता क़यामत
भले जान मेरी जुदा जिस्म से हो
सलामत रहे यह वतन ता क़यामत
है बस आरज़ू यह तिरंगे का मुझको
हो मेरे नस्ल का कफ़न ता क़यामत
अय अग्नि के वीरो वतन पर मारो तुम
रहे मुल्क में यह चलन ता क़यामत
कि मरना वतन पर कहां सबको हासिल
हो तुम से ही बाकी अमन ता क़यामत
बराए वतन हो मेरी जान हमज़ा
मेरे रब तू रखना चमन ता क़यामत

शहाब हमज़ा

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