गोरखपुर

गोरखपुर: हज़रत अमीर-ए-मुआविया सच्चे आशिक-ए-रसूल थें: हाफ़िज अज़ीम

हज़रत अमीर-ए-मुआविया का उर्स-ए-मुकद्दस अकीदत से मनाया गया

गोरखपुर। रविवार को अक्सा जामा मस्जिद शाहिदाबाद हुमायूंपुर उत्तरी, चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर, शाही जामा मस्जिद रसूलपुर व सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाजार में हज़रत सैयदना अमीर-ए-मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु का उर्स-ए-मुकद्दस अदब व एहतराम के साथ मनाया गया। नात व मनकबत पेश की गई। कुरआन ख्वानी व फातिहा ख्वानी हुई।

अक्सा जामा मस्जिद के इमाम मौलाना तफज़्जुल हुसैन रज़वी व नायब इमाम हाफ़िज अज़ीम अहमद नूरी ने कहा कि सहाबी-ए-रसूल अमीरुल मोमिनीन हज़रत मुआविया सच्चे आशिक-ए-रसूल थे। आप कातिब-ए-वही थे। आप दीन-ए-इस्लाम के पहले बादशाह थे। आपको अहले बैत से बहुत मोहब्बत थी। रसूल-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम आपसे बहुत मोहब्बत करते थे। आप मोमिनों के मामू भी हैं।

चिश्तिया मस्जिद के इमाम हाफ़िज महमूद रज़ा कादरी ने कहा कि दूसरे खलीफा हज़रत सैयदना उमर फ़ारूक़ ने हज़रत अमीर-ए-मुआविया को दमिश्क़ का गवर्नर मुक़र्रर किया। तीसरे खलीफा हज़रत सैयदना उस्मान के ज़माने में आप को सीरिया के पूरे इलाक़े का हाकिम बना दिया गया। हज़रत अमीर-ए-मुआविया और हज़रत सैयदना इमाम हसन में समझौता हुआ और उसके बाद हज़रत मुआविया बा-क़ायदा तमाम इस्लामी मुल्क के खलीफा क़रार दिए गए। हज़रत मुआविया ने जालिम बादशाहों के तमाम खतरों को ध्यान में रखकर समंदरी फौज़ तैयार की। सैकड़ों जंगी नावें तैयार करायीं। थल सेना को पहले से ज़्यादा मज़बूत किया। मौसम के हिसाब से भी फौज़े तैयार की। कई मुल्क जीत लिए गए। इस्लामी हुकुमत का रक़बा बहुत फैल गया। कुस्तुन्तुनिया पर समुद्री हमला किया गया। इस हमले ने कुस्तुन्तुनिया (क़ैसर) की रही सही हिम्मत तोड़ दी ।

शाही जामा मस्जिद रसूलपुर में नायब काजी मुफ्ती मो. अज़हर शम्सी ने कहा कि हज़रत मुआविया के ज़माने में पूरी रियासत में सुख-शान्ति रही। नए-नए इलाक़ों पर विजय भी मिली। उन नए इलाक़ों में एक उत्‍तरी अफ्रीका है। उत्‍तरी अफ्रीका को उस ज़माने के मशहूर सिपहसालार ‘हज़रत उक़बा बिन नाफ़े’ ने फ़तह किया। हज़रत उक़बा बिन नाफ़े बडे़ उत्‍साही सिपहसालार थे। जब उन्‍होंने चढा़ई शुरू की तो कई सौ मील तक इलाक़े पर इलाक़े फ़तह करते चले गए, यहां तक कि समंदर सामने आ गया। यह अटलांटिक महासागर था। हज़रत उक़बा ने जब देखा कि उनके मार्ग समंदर में है तो उन्‍होंने अपना घोडा़ समंदर में दौडा़ दिया और जोश में दूर तक चले गए फिर तलवार उठाकर कहा कि ऐ अल्लाह! अगर यह समंदर बाधक न होता तो मैं दुनिया के आखिरी किनारे तक तेरा नाम बुलन्‍द करता हुआ चला जाता।

सब्जपोश हाउस मस्जिद के इमाम हाफ़िज रहमत अली निज़ामी ने कहा कि हज़रत मुआविया का स्‍वभाव इतना अच्छा था कि वे किसी के साथ कठोरता से पेश नहीं आते थे, लोग उन्‍हें उनके मुहं पर भी बुरा-भला कह जाते थे। वे अपने विरोधियों को भी इनाम और सम्‍मान देकर ख़ुश रखते थे। हज़रत सैयदना इमाम हसन, हज़रत सैयदना इमाम हुसैन और उनके ख़ानदान वालों के साथ उनका व्‍यवहार बहुत अच्‍छा था और बहुत तोहफे देते थे। आपके ज़माने में जनकल्‍याण के बहुत काम हुए। आपने शाम (सीरिया) के शहर दमिश्‍क़ को राजधानी बनाया। यह शहर मदीना और कूफ़ा के बाद इस्‍लामी ख़िलाफ़त की तीसरी राजधानी था। आपका विसाल 22 रजब 60 हिजरी में हुआ। आपका मजार दमिश्‍क़ (सीरिया) में है।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में आमनो शांति व भाईचारे की दुआ मांगी गई। उर्स में सैयद हुसैन अहमद, हाफ़िज मो. इब्राहिम, बरकत अली, हाफ़िज गुलाम जीलानी, हाफ़िज आमिर हुसैन निज़ामी, हाफ़िज सद्दाम, हाफ़िज मुजम्मिल रज़ा, मो. जैद, मो. रुशान, मो. अनस रज़वी, आसिफ रज़ा, मुर्तजा अली, मुहर्रम अली, शाहिद अली, रहमत अली अंसारी, सैफ अली, हाफ़िज आफताब, हाफ़िज अब्दुर्रहमान, हाफ़िज आरिफ, मौलाना इसहाक, नदीम अहमद, शादाब अहमद, हाफ़िज मो. आरिफ, महबूब आलम, अबू बक्र, इमरान, इमाम हसन, मुख्तार खान, शाद अहमद, अज़हर अली, फुजैल, फैज़ान, चांद अहमद आदि मौजूद रहे।

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