इंदौर सिर्फ साफ~सफाई के मामले में ही अव्वल नहीं है बल्कि इंदौर अनगिनत मामलों में अव्वल रहा है । जैसे देश को पहला क्रिकेट टेस्ट टीम कप्तान सीके नायडू इंदौर महाराज ने दिया ठीक इसी तरह देश का पहला फोटोग्राफर भी इंदौर के होलकरों की देन है।
एशिया के सबसे बड़े अस्पताल की बात हो या रेलवे लाईन बिछाने के लिए करोड़ रूपए के लोन की इंदौर महाराज ने हमेशा इंदौर की तरक्की के लिए धन पानी की तरह बहाया है। काबिल लोगों को हमेशा आगे बढ़ाया है।
सोशल मीडिया का जमाना है फोटोग्राफी का चलन अपने सुनहरी दौर में है।ज्यादातर लोगों के हाथों में मोबाइल है। सभी केमरामेन बने घूम रहे हैं। लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब फोटो खिंचवाने के लिए राजे~महाराजाओं से लेकर ब्रिटिश गवर्नरों को भी हफ्तों महीनों अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता था, और देश में सिर्फ एक ही फोटोग्राफर था राजा दीन दयाल….
दीन दयाल देश के पहले फोटोग्राफर था जिन्होंने अपने कैरियर की शुरआत इंदौर से की। तुकोजीराव होलकर ने आपकी खूब मदद की फिर लाला हैदराबाद के निजाम के दरबारी फोटोग्राफर बने। सन 1885 में भारत के वायसराय के भी फोटोग्राफर रहे।
वैसे तो दीन दयाल की पैदाइश मेरठ के पास सरगला कस्बे में सन 1844 में हुई की थी लेकिन उन्होंने नौकरी इंदौर के लोक निर्माण विभाग पलासिया पर की। यहां वे ड्राफ्टमैन थे। खूबसूरत ड्राफ्टिंग करते थे।
जब केमरे की इजाद हुई तब दीन दयाल भी कैमरा लेकर मैदान में कूद पड़े और देश के सबसे पहले फोटोग्राफर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
लाला जी ने इंदौर से सन 1866 में अपनी जिंदगी की शुरुआत ड्रॉफ्ट मेन की हैसियत से की। नौकरी करते वक्त आपने ग्लासमेट तकनीक से फोटो लेना शुरू कर दिया था।
हिंदुस्तान का पहला फोटो स्टूडियो इंदौर में खुला। 🧐
महाराजा तुकोजीराव तृतीय की मदद से आपने ऊषागंज पारसी मोहल्ला छावनी में सन 1870 में “लाला दीन दयाल & संस” नाम से स्टूडियो खोला था। 1990 तक पारसी मोहल्ला में 100 साल पुराने फोटो स्टूडियो कायम थे।
शुरुआती कैमरा बहुत भारी होते थे। करीब 15 किलो वजनी। केमरे को असेंबल करने का साजो सामान एक अलमारीनुमा बक्से में रखा जाता था इन केमरे को कंधे पर टांगना नामूमीन था। इसे उठाने में 2 लोग लगते थे। इन कमरों को बैलगाड़ी और दूसरे साधनों के जरिए एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता था।
हैदराबाद के नवाब महबूब अली खां ने आपको राजा का खिताब दिया। आप 1870 से 1905 मरते दम तक एक्टिव रहे। इंदौर के बाद इन्होंने सिकंदराबाद फिर बांबे में भी स्टूडियो खोला।
दिल्ली के इंदिरागांधी केंद्र में आपके द्वारा खींची गई करीब 3000 तस्वीरों को सहेजा गया है। इन तस्वीरों के जरिए हम पुराने दौर के रहन सहन को भी देख सकते है।
लालाजी के इंतकाल के कुछ बरसों तक इनके बेटों ने स्टूडियो संभाला फिर वो बंद हो गए। इंदौर के सबसे पुराने स्टूडियो में शायद अब राजबाड़ा के पास वाला गोपाल स्टूडियो बचा है। वैसे भी अब लोग फोटो खिंचवाने स्टूडियो नहीं के बराबर जाते है। अब मोबाइल जो कैमरा है।
5 जुलाई 1905 को राजा दीन दयाल का इंतकाल हो गया लेकिन उनके द्वारा खींची गई खूबसूरत बोलती तस्वीरें आज भी जिंदा है। जो गुजरे हसीन दौर को दिखाती है।
इंदौर के लालबाग में राजा दीन दयाल जी द्वारा खींचे गए फोटो की एक गैलरी बनी हुई है। जहां इनकी तस्वीरों को को लगाया गया है। इंदौर और मालवा के 150 साल पुराने फोटो देखना हो तो कभी लालबाग तशरीफ ले जाइए। ये तस्वीरें हमें हमारा गुजरा हुआ कल और सुनहरी इतिहास बताती है।
पोस्ट में दिखाई गई तस्वीरों में एक लाला दीन दयाल की तस्वीर है , दूसरी तस्वीर 1865 में इंदौर महाराज तुकोजीराव तृतीय की फोटो है तीसरी तस्वीर लाला के इंदौर और सिकंदराबाद वाले फोटो स्टूडियो का पोस्टर है। तीसरी तस्वीर 1892 के पुराने इंदौर की है।
✍️ जावेद शाह खजराना (लेखक)
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