जीवन चरित्र

राहत इंदौरी साहब और खजराना लाइव का मुशायरा; बाईक पर सवार होकर आए थे राहत साहब

मुशायरों के पहले सुपर स्टार राहत इंदौरी

जानेमाने पत्रकार दीपक असीम और राहत इंदौरी की दोस्ती की मिसाल कृष्ण और सुदामा जैसी है। शुरू~शुरू में हम ख्याल ना सही लेकिन हम प्याला और हम निवाला रहे है। दोनों की दोस्ती , इनायत और शफक्कत भरी मोहब्बत का मैं भी गवाह हूं।

दस साल पहले की बात है…..
दीपक असीम साहब के हफ्तावर अखबार खजराना लाइव की दूसरी साल गिराह आने वाली थी। मैंने छेड़ दिया कोई जश्न करते है। उन्होंने कहा पेंटिंग की कोई प्रदर्शनी लगाते है। मैने कहा सरकार ये खजराना है कोई नहीं आएगा।

मैने कहा आपकी बहुत जान~पहचान है किसी सेलेब्रिटी को बुलवाकर उनकी तकरीर रखवा दीजिए।
उन्होंने कहा राहत साहब का मुशायरा कैसा रहेगा?
मैंने कहा जनाब फिर तो सोने पे सुहागा हो जाएगा।
लेकिन क्या राहत साहब आयेगे?

उन्होंने कहा तुम तारीख फिक्स करो।
प्रोग्राम की तैयारी में जुट जाओ लाने की जवाबदारी मेरी।

दीपक असीम साहब बड़े दिलवाले है
उन्होंने कहा जावेद मुशायरा आपके फेम ऑफ खजराना ग्रुप के बैनर तले रखो। मैने कहा नहीं जनाब प्रोग्राम आपका है लिहाजा बैनर भी आपका रहेगा।
मैं फ्लेक्स वगैरह , पब्लिसिटी , भीड़भाड़ और बाकी इंतजाम कर दूंगा।

दीपक साहब ने मरहूम शायर याकूब साकी की याद / खजराना लाइव की सालगिरह/ फेम ऑफ खजराना सबको मिलाकर एक खूबसूरत महफिल जमाई।

सन 2013 , सितंबर की 8 तारीख थी।
कमाल कम्यूनिटी हॉल में देर रात मुशायरा रखा गया।
कांग्रेसी नेता अयाज गुड्डू और एक और नेता को मैने बतौर चीफ गेस्ट बुलाया। फेम ऑफ खजराना के युवाओं की टोली तैयार थी। राहत साहब का नाम सुनकर खजराना से चाहने वाले सुनकार भी चले आए थे।

राहत साहब को लाने की बारी आई तो मैंने दीपक सर से पूछा कार का इंतजाम करू?
उन्होंने कहा अरे नहीं…
राहत साहब सिर्फ मुशायरे के सुपर स्टार नहीं बल्कि दिल के भी शहंशाह है वो मेरी बाइक पर सवार होकर आ जायेंगे। तुम फिक्र छोड़ो। राहत साहब को तामझाम की दरकार नहीं।

सचमुच दीपक असीम साहब ठीक आठ बजे
उन्हें बाइक पर टांगकर ले आए। मुझे काफी अचरच हुआ। देश के नामी गिरामी शायर हमारे छोटे से मुशायरे में शिरकत करने खुशी~खुशी बेतकल्लुफ होकर चले आए। सफेद कुर्ता पायजामा पहने थे। सादगी से लबरेज।

इसी सादगी भरे लहजे में फेम ऑफ खजराना के युवाओं , नेताओं, किशोर लड़कों की टोली के सामने राहत साहब ने देर तक शायरी सुनाई।

मेरी टोली के साथियों को तो पल्ले नहीं पड़ी।
युवाओं को जरूर थोड़ी~बहुत समझ आई ।
बाकी चाहने वालों ने खामोशी से सुनकर जरूर दाद दी।
मेरा सारा ध्यान मेहमानों को बैठाने और टोली को कंट्रोल करने में लगा रहा।

खजराना गणेश मंदिर के पुजारी दादा भालचंद भट्ट जी , पूर्व पार्षद अयाज गुड्डू , सतलज राहत जी, नूह आलम ,
शादाब सलीम जी , नुसरत मेंहदी जी , फरियाद बहादुर और हिदायतउल्ला खान भी मौजूद थे। क्या यादगार महफिल थी।

निजामत नूह आलम ने संभाली।
मेजबानी और स्वागत मैने किया।
दीपक असीम साहब प्रोग्राम के संचालक थे।
शादाब सलीम ने दिलचस्प मंजरकशी लिखी।
अखबार की कटिंग संलग्न है पढ़िएगा।

कुलमिलाकर दीपक असीम साहब के खजराना लाइव और मेरे ग्रुप फेम ऑफ खजराना का ये प्रोग्राम किसी राष्ट्रीय मुशायरे से कम नहीं था जहां सिर्फ सादगी और अपनापन बिखरा था। राहत साहब ने मोहब्बत भरा लिफाफा कुबूल किया जिसमें सिर्फ अपनापन भरा हुआ था । जो आज भी कायम है।

दूसरे दिन प्रभात किरण अखबार में हिदायत खान ने फेम ऑफ खजराना के मुशायरे की खबर लगाई।
तारीफ कम तंज ज्यादा था। अलबत्ता उनका इंटेंशन भीड़ को लेकर था। उन्होंने फेम ऑफ खजराना की तारीफ लिखी और अखबार वालों को मुशायरे से दूर रहने की ताकीद की।

मैने दीपक सर को पहली बार तमतमाते हुए देखा।
पूछा तो बोले अब अपन मुशायरा नहीं कराएंगे।
मैने कहा हुजूर मुशायरा भीड़ से नहीं अच्छे श्रोताओं से हिट माना जाता हैं और वैसे भी हमने कम समय में बिना शोर मचाए खूबसूरत मुशायरा कामयाबी के साथ निपटा दिया है । अब कोई हमें निपटाएं तो निपटाने दीजिए।

दस साल बाद…
निजामत करने वाले नूह आलम दुनिया में नहीं हैं
राहत साहब भी नहीं रहे😭
प्रोग्राम की खूबसूरत मंजरकशी करने वाले शादाब सलीम हाई कोर्ट वकील और बड़े लेखक है। फेम ऑफ खजराना के युवा भी बाल~बच्चे वाले हो गए है…
सिर्फ बाकी है तो उन लम्हों की हसीन यादें।

✍️ जावेद शाह खजराना (लेखक)

तस्वीर
जावेद शाह खजराना द्वारा क्लिक की गई।

समाचार अपडेट प्राप्त करने हेतु हमारा व्हाट्सएप्प ग्रूप ज्वाइन करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *