कविता

नात: ऐ मेरे यार तू क्या मुस्तफ़ा शनास नहीं

ज़की तारिक़ बाराबंकवी
सआदतगंज, बाराबंकी,उत्तर प्रदेश
फ़ोन:7007368108

ये तेरे लहजे में क्यूँ उनसुरे-सिपास नहीं
ऐ मेरे यार तू क्या मुस्तफ़ा शनास नहीं

मदीने जाने के असबाब सिर्फ़ बन जाएं
नहीं है ग़म कोई दौलत जो अपने पास नहीं

मुझे दिलाएँ गे फ़िरदौसे-नाज़ आक़ा मेरे
मेरा यक़ीन है ये दोस्तो क़ियास नहीं

ब फ़ैज़े-आक़ा ऐ महशर मुझे तेरा हाँ तेरा
कोई भी ख़ौफ़ नहीं है कोई हिरास नहीं

मेरे नबी की अता तुझ को कैसे मिल पाए
तेरी तमन्ना में पहलू-ए-इल्तिमास नहीं

दरूद पाक पढ़ो और मोजिज़ा देखो
नबी का नाम जहाँ है वहाँ पे यास नहीं

ज़रूर होगा वो दीवान-ए-रसूले-करीम
मुसीबतों के भँवर में भी जो उदास नहीं

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