धार्मिक

ताज़िया जायज़ या नाजायज़?

जो ताजि़या हज़रत इमाम हुसैन रज़ीयल्लालहो अन्हो के रौज़ा मुबारक की हू बहू शक्ल में बनाया जाता है उसको कोई भी मौलवी नाजायज़ नहीं मानता है। यह मौलवियों पर झूठा इल्ज़ाम है और मौलवियों को बदनाम करने का तरीक़ा है

हां! जो ताजि़या हज़रत इमाम हुसैन रज़ीयल्लालहो अन्हो के रौज़ा मुबारक की हू बहू शक्ल में नहीं बनाया जाता है और उसकी जगह हवामहल, ताजमहल, लाल किला वगैरह की शक्ल में बनाया जाता है उसको हर मौलवी नाजायज़ व हराम मानता है और इसी को “मोरव्विजा ताज़ियादारी” कहा जाता है जो यक़ीनन नाजायज़ व हराम है और अपना माल बर्बाद करना है।‌ हक़ गो और बेबाक मौलवी/ इमाम, क़ौम को हमेशा अपनी तक़रीरों/ तहरीरों द्वारा शैतानी कामों से बचने के लिए कहते रहते हैं

नोट: शक्ति प्रदर्शन के लिए मुसलमानों का ईमानी नारा “नारा-ए-तकबीर, अल्लाहो अकबर” काफ़ी है। जुलूस में हुल्लड़ बाज़ी करना, शोर शराबा करना, ढ़ोल बजाना, सीना पीटना, ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना, मां बहनों, बहू बेटियों का सज धज कर जुलूस में शामिल होना, जुलूस के दौरान नमाज़ का टाइम होने पर भी नमाज़ नहीं पढ़ना, दसवीं मोहर्रम का रोज़ा न रखना, अनेकों अनेक प्रकार के शैतानी कामों में भागीदार बनना, यह शक्ति प्रदर्शन नहीं हो सकता है

ऐ ईमान वालो! इस्लाम में पूरी तरह से दाख़िल हो जाओ और शैतान की पैरवी न करो क्योंकि शैतान तुम्हारा खुला दुश्मन है (क़ुरआन शरीफ़)

यह शहादत गहे उल्फ़त में क़दम रखना है!
लोग आसां समझते हैं मुसलमां होना!!

मौलाना मोहम्मद सैफुल्लाह ख़ां अस्दक़ी
राष्ट्रीय अध्यक्ष: ग़ौसे आज़म फाउंडेशन, जयपुर, राजस्थान

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