जब महात्मा गांधी को गोडसे ने मारा था, तब हल्ला हुआ था, एक मुसलमान ने गांधी जी की हत्या कर दी, हर तरफ़ दंगे जैसा माहौल बन गया था, तब नेहरू जी को रेडियो पर आकर कहना पड़ा, गांधी जी को मारने वाला आतंकवादी मुसलमान नहीं है बल्कि एक हिन्दू है, और हिंसा एक झटके में थम गई, ग़ुस्सा एक झटके में, दुख में बदल गया।
ठीक यही हाल महाराष्ट्र में पालघर में हुआ, पहली नज़र में 2 साधुओं की मोब्लिंचिंग करने वालों को मुसलमान कहा गया, उस घटना को मज़हबी रंग देने की ख़ूब कोशिश की गई, आख़िर में महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख को ट्वीट कर कहना पड़ा, मरने वाला और मारने वाला एक ही धर्म से है, उन 102 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया है, फिर घटना पर क्रोधित होने वाले एकदम से सॉफ्ट हो गए, उनके विरोध करने का तरीका ही बदल गया।
आप बता सकते है ऐसा क्यों हुआ?
गांधी जी की हत्या के बाद जो विरोध मुसलमानों के ख़िलाफ़ था उस आतंकी गोडसे के धर्म के ख़िलाफ़ क्यों नहीं भड़का? आख़िर गांधी जी की हत्या तो हुई थी न! अभी महाराष्ट्र में 2 साधुओं की मोब्लिंचिंग के बाद, मुसलमानों का नाम आने पर जो विरोध था, वो हिन्दू नाम होते ही, इतना कैसे बदल गया? सारा क्रोध बैलेंस बनाने में क्यों बदल गया, महाराष्ट्र के, लॉ एंड आर्डर पर कैसे ट्रांसफर हो गया?
यही मामला श्रद्धा आफताब के मामले मे हुआ और अभी थोड़े दिन पहले मुंबई के कूकर वाला मामला हुआ उसमे भी यही मानसिकता दिखी
बुरा लगेगा, पर कहूँगा, असल मे आपको दिक्कत हत्या से नहीं है बल्कि हत्या करने वालों के मज़हब से है और यही आपकी सच्चाई है।।