18वीं सदी का का दौर था, जब हिन्दोस्तान की शानो-शौकत अपने ओरुज पर थी, बंगाल मुग़ल हुकूमत की एक अहम् रियासतों में से एक था, लेकिन मुगलों के कमजोर होते ही, तमाम हिंदुस्तानी रियासतें खुदमुख्तार होने लगीं। बंगाल भी उन्हीं में से एक था। नवाब सिराजुद्दौला के नाना नवाब अलीवर्दी खान ने बंगाल को एक आजाद रियासत बना दिया था, उनके दौर में बंगाल हिन्दोस्तान की सबसे अमीर रियासत हुआ करता था।
इसकी शानो-शौकत ने इंग्लिश्तान से आये मामूली ताजिरों को भी हैरान कर दिया, वो यहां हुक्मरानी करने का ख्वाब देखने लगे, लेकिन ये उनके लिए इतना आसान नहीं था। अंग्रेजों की फौज का कमांडर रॉबर्ट क्लाइव ये बहुत अच्छे से जनता था की अगर नवाब से मैदान-ए-जंग में आमना-सामना हुआ तो उसके लिए 1 घंटा भी टिकना मुश्किल हो जायेगा। लिहाजा उसने एक ऐसे शख्स की तलाश शुरू कर दी जो नवाब को अंदर से खोखला कर दे।
रॉबर्ट क्लाइव के जासूसों ने उसे खबर दी की नवाब की फौज में एक आदमी ऐसा है जिसे कुर्सी का लालच दिया जाये तो वो बंगाल तो क्या उसकी सात पुश्तों को भी बेच सकता है। उस आदमी का नाम था मीर जाफ़र रॉबर्ट क्लाइव ने मीर जाफ़र से राब्ते करने शुरू कर दिए। मीर जाफ़र ने दरबार में साजिशों का जाल बुनना शुरू कर दिया, धीरे-धीरे उसने कई दरबारियों को अपने खेमे में मिला लिया।
23 जून 1757 का दिन था सुबह के 8 बजे थे प्लासी का मैदान तोपों और बंदूकों की घन-गरज के गूंज उठा था। बंगाल की दारुलहकूमत मुर्शिदाबाद के जुनुब में कोई 50 KM. दूर एक गांव है जिसे प्लासी के नाम से जाना जाता है। ये वही गांव है जहां हिंदुस्तानी तारीख की एक अहम्-तरीन लड़ाई “प्लासी की लड़ाई” लड़ी गयी थी, इस लड़ाई की स्क्रिप्ट अंग्रेजो ने मीर जाफर के साथ मिलकर पहले ही तैयार कर ली थी।
जब लड़ाई शुरू हुयी तो मीर जाफर ने अपने 20,000 सिपाहियों को जंग में हिस्सा लेने से रोक दिया। और नवाब से टाल-मटोल करने लगे। इस टाल-मटोल को नवाब सिराजुद्दौला समझ न सके और मीर जाफर का एक और मशविरा भी मान लिया, वो मशविरा था फौज को पीछे हटाने का। फौज के पीछे हटते ही नवाब के हाथ से सब कुछ निकल गया जब तक वो मीर जाफर की चाल को समझ पाते बहुत देर हो चुकी थी। तख़्त मीर जाफर की झोली में जा गिरा था। जो नवाब सिराजुद्दौला के बाद अंग्रेजों का एक कठपुतली नवाब बन के हुकूमत करने में कामयाब रहे।