धार्मिक सामाजिक

दहेज लेना लानत है देना नही…

अक्सर लोग इस मामले में गुमराही का शिकार होते है और दहेज लेना अपना हक समझते है।
कुछ लोग इसे सुन्नते रसूलुल्लाह कहकर भी इसका समर्थन करते है,
और दलील देते है की जब नबी ने अपनी बेटी फातिमा को दिया था तो हम अपनी बेटी को क्यों न दे.? और लेने वाले भी इसकी आड़ में इसे जायज करार देते है….

मैं आपको बता दूँ, हजरत अली उन चन्द गैरतमंद सहाबियों में से एक है जिनकी मिसाल पूरी इस्लामी तारीख में और कही नहीं मिलती, ये अक़ीदा रखना की अली ने दहेज लिया आपको ईमान से खाली कर देता है….

वाकिया कुछ यूँ है…..
नबी ए रहमत ने अबूबक्र सिद्दीक और उमर से कहा की मैं फातिमा का निकाह अली से करना चाहता हूँ..
अबूबक्र ने कहा जैसा आप बेहतर समझे,
अल्लाह के नबी ने अबूबक्र और उमर को अली के पास निकाह का पैगाम लेकर भेजा,
अली ने ये कहकर मना कर दिया की नबी की बेटी कायनात की शहजादी है और मेरे पास अपने खाने रहने पहनने तक का इंतजाम नहीं है भला मैं फातिमा से कैसे निकाह कर सकता हूं.??

अबूबक्र और उमर ने कहा….
अगर ये बात है तो हम आपकी मदद करते है, ये बात अल्लाह के नबी को पता चली और अली अल्लाह के नबी को मना न कर सके और निकाह के लिए राजी हो गए,
जब नबी ने अपने जिगर के टुकड़े को रुक्सत किया तब आपने कुछ घर का सामान भी दिया। जिसमे वह चादर भी शामिल थी जो अक्सर अल्लाह के नबी ओढ़ा करते थे, और साथ में रात के वक़्त रौशनी के लिए फानूस भी दिया था।
जरा गौर करिए,
अल्लाह के नबी ने जो तोहफे दिए थे वह इस मकसद से दिए थे ताकि अली की परेसानी कम हो जाए,
अल्लाह के नबी उसमाने गनी को अपनी 2 बेटिया ब्याही थी किसी को कुछ नही दिया था….

हमे अपनी इस्लाह करने की जरूरत है, हमारी इस घटिया सोच की वजह से न जाने कितनी लड़कियों को अपनी ससुराल में दहेज़ के लिए मारा जा रहा है।
उनके साथ बदसलूकी की जा रही है।
और ना जाने कितनी गरीब जवान लड़कियों का दहेज के बजह से निकाह नहीं हो पा रहा है।
अगर अब भी हमने इस लानती अमल को एक साथ मिलकर न छोड़ा तो कल को अल्लाह न करे, आपके या हमारे घर की भी कोई लड़की दहेज का शिकार न हो जाए…

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