104वां उर्स-ए-आला हज़रत
गोरखपुर। शुक्रवार को शहर में 14वीं व 15वीं सदी हिजरी के अज़ीम मुजद्दिद आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमां का 104वां उर्स-ए-मुबारक अकीदत व मोहब्बत के साथ मनाया गया। हर तरफ एक ही नारा गूंजा इश्क मोहब्बत-इश्क मोहब्बत, आला हज़रत-आला हज़रत। घरों, दरगाहों, मस्जिदों व सोशल मीडिया पर आला हज़रत को शिद्दत से याद किया गया। जुमा की तकरीर में आला हज़रत की ज़िन्दगी पर रोशनी डाली गई। नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर, नूरी जामा मस्जिद अहमदनगर चक्शा हुसैन, मियां साहब इमामबाड़ा पूरब फाटक मियां बाज़ार, गुलरिहा जामा मस्जिद, कुरैशिया मस्जिद खूनीपुर, मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती, गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर, सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह आदि में उर्स-ए-आला हज़रत के मौके पर महफिल सजी। क़ुरआन ख्वानी, फातिहा ख़्वानी व दुआ ख़्वानी की गई। नातो मनकबत पेश हुई। अकीदतमंदों में लंगर बांटा गया।
आला हज़रत ने ज़िन्दगी अल्लाह व रसूल की फरमाबरदारी में गुजारी: मौलाना असलम
गोरखपुर। नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में जुमा की नमाज़ के बाद महफिल हुई। जिसमें मौलाना मो. असलम रज़वी व मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि आला हज़रत ने पूरी ज़िन्दगी अल्लाह व रसूल की इताअत व फरमाबरदारी में गुजारी। आला हज़रत पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर जानो दिल से फ़िदा व क़ुर्बान थे। तकरीर के बाद कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। अकीदतमंदों में लंगर बांटा गया। महफिल में शाबान अहमद, अलाउद्दीन निज़ामी, मो. सैफ रज़ा निज़ामी, अशरफ़ निज़ामी, मो. शरीफ, मौलाना मकबूल आदि मौजूद रहे।
आला हज़रत 14वीं व 15वीं सदी हिजरी के अज़ीम मुजद्दिद हैं: शेर मोहम्मद
गोरखपुर। गुलरिहा जामा मस्जिद में उर्स-ए-आला हज़रत अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया। क़ुरआन ख़्वानी हुई। मकतब इस्लामियात के बच्चों मोहम्मद फरहान, सोजीन आलम, शिफा खान, सशब नूर, खुशी ने तकरीर, नात व मनकबत पेश की। बच्चों को ईनाम से नवाज़ा गया। मौलाना शेर मोहम्मद व कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने कहा कि आला हज़रत 14वीं व 15वीं सदी हिजरी के अज़ीम मुजद्दिद हैं। जिन्हें उस समय के प्रसिद्ध अरब व अज़म के विद्वानों ने यह उपाधि दी। आला हज़रत को अल्लाह व पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और गहरा इश्क था। जिसको आपने ‘हदाइके बख्शिश’ में नातो मनकब के जरिए बयान किया है। अंत में कुल शरीफ की रस्म हुई। सलातो सलाम पढ़कर दुआ ख़्वानी की गई। शीरीनी बांटी गई।
आला हज़रत का ‘कंजुल ईमान’ व ‘फतावा रज़विया’ बेमिसाल है: मुफ़्ती मेराज
गोरखपुर। मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती में उर्स-ए-आला हज़रत मनाया गया। क़ुरआन ख़्वानी की गई। महफिल सजी। जिसमें मुफ़्ती मेराज अहमद कादरी ने आला हज़रत की शख़्सियत पर रोशनी डालते हुए कहा कि आला हज़रत ने 13 साल की उम्र से ही फतवा लिखना और लोगों को दीन-ए-इस्लाम का सही पैग़ाम पहुंचाना शुरू कर दिया। पूरी उम्र दीन की खिदमत में गुजारी। आला हज़रत द्वारा किया गया क़ुरआन पाक का उर्दू में तर्जुमा ‘कंजुल ईमान’ व ‘फतावा रज़विया’ बेमिसाल है। अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई।
पूरी दुनिया में आला हज़रत का चर्चा है: नूर अहमद
गोरखपुर। नूरी जामा मस्जिद अहमदनगर चक्शा हुसैन में उर्स-ए-आला हज़रत पर क़ुरआन ख़्वानी व फातिहा ख़्वानी की गई। महफिल सजाई गई। हसनैन हैदर, गुलाम हुसैन, नूर अहमद कादरी, मो. दानिश, शादाब अहमद, दारैन हैदर ने कहा कि पैग़ंबर-ए-आज़म अलैहिस्सलाम से सच्ची मोहब्बत आला हज़रत का सबसे अज़ीम सरमाया था। आपकी एक मशहूर किताब जिसका नाम ‘अद्दौलतुल मक्किया’ है। जिसको आपने केवल आठ घंटों में बिना किसी संदर्भ ग्रंथ के मदद से हरम-ए-मक्का में लिखा। आज पूरी दुनिया में आला हज़रत का चर्चा है। अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई।
जंगे आजादी में आला हज़रत व आपके पूरे खानदान ने महती भूमिका निभाई: मुफ़्ती अजहर
गोरखपुर। चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में भी उर्स-ए-आला हज़रत धूमधाम से मनाया गया। क़ुरआन ख़्वानी व फातिहा ख़्वानी की गई। महफिल में मुफ्ती मोहम्मद अज़हर शम्सी व हाफिज महमूद रज़ा कादरी ने कहा कि आला हज़रत ने हिंद उपमहाद्वीप के मुसलमानों के दिलों में अल्लाह और पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के प्रति प्रेम भर कर पैग़ंबर-ए-आज़म की सुन्नतों को ज़िन्दा किया। आप सच्चे समाज सुधारक थे। आप मुल्क से बहुत मोहब्बत करते थे। जंगे आजादी में आपने और आपके पूरे खानदान ने महती भूमिका निभाई। अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई।
पूरी दुनिया में आला हज़रत की ज़िन्दगी व फतावों पर रिसर्च किया जा रहा है: मौलाना जहांगीर
गोरखपुर। सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह में उर्स-ए-आला हज़रत पर महफिल सजी। जिसमें मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि पूरी दुनिया में आला हज़रत की ज़िन्दगी व फतावों पर रिसर्च किया जा रहा है। आज पूरी दुनिया में उर्स-ए-आला हज़रत मनाया जा रहा है। जो इस बात का सबूत है कि आज दुनिया के हर कोने में आला हज़रत के चाहने वाले मौजूद हैं। आला हज़रत का “फतावा रज़विया” इस्लामी कानून (फिक्ह हनफ़ी) का इंसाइक्लोपीडिया है। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई।