धार्मिक

मुसलमानों में बुज़दिली कयों?

लेखक :मौलाना साबिर इसमाईली
अनुवादक :मुशताक अहमद बरकाती अनवारी

सवाल है कि मुसलमानों में बुजदिली क्यों है?
इसका जवाब अगर मुखतसर अल्फाज़ में दिया जाए तो यही है कि मुसलमानों के अंदर शौके शहादत और राहे खुदा में कुर्बान होने का जज्बा इस कदर खत्म हो चुका है , कि जिंदगी बचाने और ज्यादा जीने की तमन्ना लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं और अगर इसकी गहराई में जाएं तो बहुत कुछ कहा जा सकता है,
अबु दाऊद में ऐक रिवायत है,

حَدَّثَنَا عَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ إِبْرَاهِيمَ الدِّمَشْقِيُّ، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنَا بِشْرُ بْنُ بَكْرٍ، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنَا ابْنُ جَابِرٍ، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنِي أَبُو عَبْدِ السَّلَامِ، ‏‏‏‏‏‏عَنْثَوْبَانَ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:‏‏‏‏ يُوشِكُ الْأُمَمُ أَنْ تَدَاعَى عَلَيْكُمْ كَمَا تَدَاعَى الْأَكَلَةُ إِلَى قَصْعَتِهَا، ‏‏‏‏‏‏فَقَالَ قَائِلٌ:‏‏‏‏ وَمِنْ قِلَّةٍ نَحْنُ يَوْمَئِذٍ ؟ قَالَ:‏‏‏‏ بَلْ أَنْتُمْ يَوْمَئِذٍ كَثِيرٌ وَلَكِنَّكُمْ غُثَاءٌ كَغُثَاءِ السَّيْلِ وَلَيَنْزَعَنَّ اللَّهُ مِنْ
صُدُورِ عَدُوِّكُمُ الْمَهَابَةَ مِنْكُمْ وَلَيَقْذِفَنَّ اللَّهُ فِي قُلُوبِكُمُ الْوَهْنَ، ‏‏‏‏‏‏فَقَالَ قَائِلٌ:‏‏‏‏ يَا رَسُولَ اللَّهِ وَمَا الْوَهْنُ ؟ قَالَ:‏‏‏‏ حُبُّ الدُّنْيَا وَكَرَاهِيَةُ الْمَوْتِ (رقم:4297)۔

तरजुमा: रसूलुल्लाह ﷺने फरमाया करीब है की दूसरी कौमें तुम पर ऐसे ही टूट पड़ें जैसे खाने वाले पयालीयों पर टूट पड़ते हैं, हुज़ूर अकरम ﷺ से सवाल किया गया क्या उस वकत तादाद में कम होंगे?तो आप ﷺ ने फरमाया नहीं बल्कि तादाद बहुत होगी लेकिन तुम सैलाब की झाग की तरह हुंगे अल्लाह पाक तुम्हारे दुश्मन के सीनों से तुम्हारा डर निकाल देगा और तुम्हारे दिल में वहन डाल देगा, तो अर्ज की गई या रसूलुल्लाह ﷺ वहन कया चीज़ है आप ﷺ ने इरशाद फरमाया मौत का डर है “”
आज हमारी तादाद लगभग दुनिया की एक चौथाई है और लगभग 50 देशों में हमारी अकसरीयत है और मुलके हिंदुस्तान को ले लें तो लगभग 25 करोड़ मुसलमान इस मुल्क में रहते हैं लेकिन फिर भी जो हालात है वो किसी से छुपे हुए नहीं है, तारीख के पत्तों पर उन मुसलमानों का भी जिक्र मौजूद है जो अगरचे गिनती में हमसे बहुत कम थे और वसाइल की कमी थी लेकिन बड़े बड़े ज़ालिमों के सामने मुकाबले के लिए खड़े हो जाते थे और अल्लाह पाक की तरफ से फतेह याब होते थे लेकिन आज हमारी तादाद सिर्फ सुनने देखने की है–

बुज़दिली इस क़दर हमारे अंदर सरायत कर चुकी है कि इस्लाम की निशानीयों के ऊपर खुले आम हमला होता देख कर भी हम बस अफसोस कर के रह जाते हैं, किसी ने कहा था कि जब काबे में शैतान घुस जाएगा तब जागोगे ?
आज बाबरी मस्जिद का मामला हमारे सामने हैं मस्जिदे अक्सा पर दुश्मनों ने नजरें गाढ़ रखी हैं कश्मीर और फिलिस्तीन के मुसलमानों की तस्वीरें भी नज़रों से गुजरती हैं और दुनिया भर में ऐसी कई जमीनें हैं जहां मुसलमानों का खून बहाया जाता है कई इलाके ऐसे हैं जिनकी फिजाओं में मज़लूमों की फरियाद गूंजती हैं लेकिन हमारी करोड़ों की तादाद सिर्फ तमाशाई है मुसलमानों की ऐसी कोई रियासत नहीं जो मज़लूमों का दिफा करे कोई ऐसी सल्तनत नहीं जिस के साए तले हमारे बच्चों का भविष्य फल फूल सके और कोई ऐसी ताकत नजर नहीं आती जो मुसलमानों को उनका वतन वापस कर सके—-
मुल्के हिंदुस्तान में मुसलमान जिहाद का नाम लेने से पहले सोचते हैं यहाँ होने वाले इजलास वगैरह में लगभग तमाम मौजुआत पर तकारीर होती हैं लेकिन जेहाद की ज़रूरत व फज़ीलत पर जिहाद काँफरेस शायद ही कहीं देखने को मिल जाए,
इसके अलावा सैकड़ों की तादाद में माहानामे रसाइल और किताबें छपती हैं लेकिन सब ज़िकरे जिहाद से तकरीबन खाली हैं जूमआ में होने वाली तकारीर महफिले मिलाद में होने वाला बयान और मुख्तलिफ मकामात पर होने वाली खिताबें जिक्रे मुजाहिदीन के इलावा हर किसम का जिक्र मिलता है और यही वजह है कि नई नस्ल को भी विरासत में बुज़दिली मिल रही है,

हुज़दिली पैदा होने की एक बड़ी वजह यह भी है कि जिहाद पर खुलकर बात नहीं होती और ऐसा ताअसुर दिया जाता है कि अब जिहाद की जरूरत नहीं रही- मुजाहिदीन इस्लाम की सीरत बयां नहीं की जाती जिसकी वजह से नई नस्ल भी इस बीमारी के शिकार हो जाती हैं नौजवानों से पूछ लिया जाए कि मोहम्मद बिन कासिम कौन थे तो चेहरे पर इलम ना होने का खुला सुबूत दिखने लगता है,अगर सवाल करें के सुल्तान सलाहुद्दीन अयूबी कौन थे और उनके कारनामे बताएं ऐसा लगता है किसी नामुमकिन बात का मुतालबा कर लिया हो और फिर गाज़ी उरतुगरूल, गाज़ी उसमान, सुल्तान अलप अरसलान, सुलतान मोहम्मद फातेह, सुल्तान अबदुलहमीद, शहाबुद्दीन गौरी औरंग ज़ैब आलमगीर और जुमला मुजाहिद्दीन के बारे में पूछा जाए ऐसा लगता है कि किसी दूसरी दुनिया के लोगों की बात हो रही है जब हमें अपनी तारीख अपने मुजाहिदीन और उनके कारनामे उनकी बहादुरी का और उन की फिकरों ही हमे मालुम नहीं तो जाहिर है वैसे ही बनेंगे जैसा बनाने की कोशिश दुश्मनों की तरफ से जारी है-

दुश्मनों ने क्या अच्छा मनसूबा बनाया है कि मुसलमानों को गुलाम बनाने से पहले जैहनी गुलामी के कुएं में ढकेलना चाहिए और वोह जानते हैं कि बगैर इसके मुसलमानों को उनके घुटनों पर लाना मुमकिनि नहीं, आज मुसलमान खुद उस कूऐं की तरफ जा रहे हैं और वह इस तरह के हमारे कपड़े हमारी ज़बान हमारा खाना,खाना खाने का तरीका और हमारी फिक्रें सब उनके इशारों पर चलने वाले गुलामों की तरह है, वह चाहे तो फैशन के नाम पर हमें जो चाहे पेहना सकते हैं आजादी के नाम पर जो चाहें करवा सकते हैं इंसानियत के नाम पर ज़ालिम और ज़ुल्म का साथ देने वाला बना सकते हैं और अगर चाहे हमें अपने ही दीन व शरीअत के मुकाबले में खड़ा कर सकते हैं दुनिया में जो भी हो रहा है इसके पीछे सदियों की साजिशें हैं लेकिन मुसलमानों के ज़ेहन को इस कदर गुलाम बना लिया गया है उसे देखने से कासिर हैं हम जिस बुज़दिली की बात कर रहे उसे मुसलमान बुजदिल नहीं बल्कि हिकमत मसलेहत,दूर अनदेशी,इंसानियत और अमन वगैरह का नाम देते हैं-और यही ज़ेहनी गुलामी है जिसे हम ने बयान किया है – कितनी अजीब बात है बुज़दिली भी है लेकिन शुऊर नहीं रहा और इसे अच्छा भी समझा जाता है-
मुसलिम ममालिक को देख कर मुसलिम ममालिक कहते हुऐ शरम आती है कयोंकि बुज़दिली और जेहनी गुलामी के आषार साफ नज़र आते हैं- इस्लामी हुकूमत के तहत फिल्में बनाई जा रही है लेकिन कोई पाबंदी नहीं है यह भी एक बुजदिली है जिसे हुकुक और आज़ादी का नाम दिया जाता है सिनेमाघरों की कसरत बेपरदगी की इजाज़त और जूवा शराब जिना का आम तौर पर नजर आना ये सब भी बुजदिली की एक किस्म है इस्लामी हुकमरानों के अंदर ताक़त नहीं कि इन चीज़ों पर पाबंदी आइद कर सके ,नाम तो इसलामी रियासत है लेकिन मुसलमानों पर जुलम होता देख कर रियासतें भी बुज़दिली दिखाना शुरू कर देती है –
अगर हम यह कहें कि छोटों से लेकर बड़ों तक सब बुजदिली की लपेट में है तो कोई गलत बात नहीं क्योंकि जिन मुसलमानों के पास हथियार इकतिदार और ताकत नहीं वोह तो ज़हिर है लेकिन जिनके पास यह सब है वह भी जैहनी तौर पर गुलाम होने की वजह से बुजदिल हैं सबको मौत का डर है हालांकिे मर जाने और मार देने दोनों में मुसलमानों का फायदा है यह बात समझ में आ जाए तो बुज़दिलीो दूर सकती है-
हुज़ूर अकरम ﷺ की तलवार पर लिखा हुवा था :
فی الجبن عار ،فی الاقبال مکرمۃ
والمرء بالجبن لا ینجو من القدر
तरजुमा:बुज़दिली बाइसे शरम है ,इज्जत आगे बढ़ने और दुश्मन पर हमला करने में है
बंदा बुज़दिली कर के तकदीर से कभी नहीं बच सकता-
(मौत डरपोक को भी आ दबोचती है और और बहादुर भी छला जाता है,क्या ही अच्छा हो बहादुरों की तरह जान कुरबान की जाऐ!)
(مدارج النبوۃ ، ج 2 ص 116)
इज्ज़त ,बहादुरी में है,बुज़दिली में नहीं मुसलमान जुरअत मंद होता है बुज़दिल नहीं!!
अल्लाह पाक हमें हमारी नसलों को जुरअत अता फरमाए आमीन

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