धार्मिक

रहमते आलम की धार्मिक सहिष्णुता

लेखक: ज़फर कबीर नगरी
छिबरा, धर्मसिंहवा बाजार, संत कबीर नगर, उ.प्र

विचारों के मतभेदों के बावजूद दूसरों के प्रति शीतलता दिखाने, उनकी धार्मिक मान्यताओं और मूल्यों का सम्मान करने, अपमानजनक तरीके से व्यवहार न करने या उनकी भावनाओं को ठेस न पहुंचाना धार्मिक सहिष्णुता है, इसी प्रकार दूसरे धर्म के लोगों के साथ उच्च स्तरीय मानवीय व्यवहार भी धार्मिक सहिष्णुता में शामिल है, इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो प्रत्येक मानवता को मात्र एक अल्लाह से सीधा जोड़ता और उन सब को एक माता पिता की संतान और भाई भाई होने की कल्पना देता है, और यह कहता है कि किसी जगह ,विभिन्न धर्मों के मानने वाले रहते हों तो इस्लाम अन्य धर्मों के अनुयाइयों के साथ हर तरह से नरम रवैया अपनाया जाए, सहिष्णुता में विश्वास रखा जाए, मतलब यह कि दूसरों के धार्मिक विश्वासों, भावनाओं, और संस्कृति का सम्मान किया जाए, इस संबंध में कोई ऐसा काम न किया जाए कि उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचे, इस्लाम की तुलना में अन्य धर्मों में धार्मिक सहिष्णुता की अवधारणा लगभग विलुप्त है, इसके विपरीत, इस्लाम सहिष्णुता शांति एवं मानवता के सम्मान का धर्म है, इस्लामी शरीअत के अनुसार समाज का हर व्यक्ति रंग जाति एवं धर्म के भेदभाव के बिना मानवाधिकारों में एक समान हैं सहिष्णुता, शांति और मानवता के लिए सम्मान का धर्म है, इस्लामिक स्टेट के सभी नागरिक बिना किसी भेदभाव के अपने धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं और उनके धार्मिक मामलों में किसी भी प्रकार की जबरदस्ती नहीं हैं।

इस्लाम ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का ऐलान करते हुए कहा कि “दीन में कोई बाध्यता नहीं”, इसी प्रकार यह भी फरमाया “और कह दो कि सत्य वही है जो तुम्हारे रब की ओर से है, तो जो चाहे मान ले आए और जो चाहे इंकार कर दे”, फिर पवित्र कुरान में अल्लाह ताला ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को संबोधित करके तमाम मुसलमानों को खबरदार किया है कि” और अगर तेरा रब चाहता तो जो भी धरती में बसते हैं इकट्ठे सबके सभी ईमान ले आते तो क्या तू लोगों को मजबूर कर सकता है कि वह ईमान लाने वाले हो जाएं”, इस्लाम ने धार्मिक जोर-जबर्दस्ती को नकारा है और धार्मिक स्वतंत्रता एवं सहिष्णुता का झंडा बुलंद करके यह साबित किया है कि हर व्यक्ति अपने दीन धर्म के मामले में पूर्णतः स्वतंत्र है, हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया कि इस्लामी शरीअत के अनुसार उत्पीड़न और दुर्व्यवहार करने वाले को क्षमा करना चाहिए, और न्याय की स्थापना में शत्रुता को ध्यान में नहीं लाना चाहिए, अल्लाह तआला ने फरमाया, “ऐसा न हो कि किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम इनसाफ़ करना छोड़ दो। इनसाफ़ करो, यही धर्मपरायणता से अधिक निकट है।”(अल-माइदाः8),
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने भी बहुदेववादियों को शांति से रहने, और गैर-विश्वासियों के गुणों को स्वीकार करने और धर्मों के संस्थापकों का सम्मान के साथ रहने का अधिकार दिया, और अन्य धर्मों के सम्मानित व्यक्तित्वों को बुरा भला न कहने की शिक्षा दी जैसा कि कुरआन में है, अल्लाह के अलावा जिन देवताओं को ये लोग पुकारते हैं, उन्हें गाली मत दो, कहीं ऐसा न हो कि अज्ञानता के कारण वह अल्लाह को गालियां देने लगें।” (सूरः अल-अंआम 108),
तथा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस शिक्षा को अपनाकर एक मिसाल कायम की।

हजरत अबू हुरैरा रजिअल्लाह अन्हु बयान करते हैं कि दो आदमी आपस में गाली गलौज करने लगे, एक मुसलमान था और दूसरा यहूदी, मुसलमान ने कहा उस जात की कसम जिसने मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सारे विश्व पर प्रधानता प्रदान की है, इस पर यहूदी ने कहा उस जात की कसम जिसने मूसा को तमाम विश्व पर प्रधानता दी है और चुन लिया, इस पर मुसलमान ने हाथ उठाया और यहूदी को थप्पड़ मार दिया, यहूदी शिकायत लेकर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में उपस्थित हुआ, जिस पर पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुसलमान से विवरण पूछा और फिर फरमाया, मुझे मूसा पर प्रधानता ना दो, यह थी आपकी सहिष्णुता, आपने उस यहूदी की बात सुनकर मुसलमान की ही भर्त्सना की कि तुम लोग अपनी लड़ाई हो में नबियों को ना लाया करो, ठीक है तुम्हारे निकट मैं तमाम रसूलों से बेहतर हूं, अल्लाह ताला भी इसका साक्षी है, लेकिन हमारी सत्ता में एक व्यक्ति का दिल इसलिए नहीं दुखाना चाहिए कि उसके नबी को किसी ने कुछ कहा है, मैं इस की अनुमति नहीं दे सकता, मेरा आदर करने के लिए तुम्हें दूसरे नबियों का भी आदर करना होगा, तो यह था आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के न्याय और स्वतंत्रता का आधार, जो अपनों और गैरों सबका ध्यान रखने के लिए आपने स्थापित किया था।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने युग में धार्मिक नफरतों को पूर्णता समाप्त कर दिया और इस आधार पर आक्रमणात्मक कार्रवाइयों से मना फ़रमाया, चुनांचे सूरह अल बकरह में है ” जो तुम से लड़े, तुम भी उनसे अल्लाह की राह में जंग करो, परन्तु हद से न बढ़ो (क्योंकि) अल्लाह हद से बढ़ने वालों से प्रेम नहीं करताा” ,और आगे फरमाया,” अगर वह अपने हाथ को रोक लें तो अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला और दयावान है”, हजरत अबूबकर रजिअल्लाहु अन्हु की पुत्री आसमा रजिअल्लाह ताला अन्हा अपनी माता से उदास होकर मिलने मदीना आई, अस्मा रजि अल्लाहहु अनहा ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा कि क्या मुझे उनकी सेवा करने और उनके साथ अच्छा व्यवहार करने की अनुमति है? आप ने फरमाया हां वह तुम्हारी मां है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने धार्मिक सहिष्णुता का कमाल प्रदर्शन करते हुए मुस्लिम और गैर मुस्लिम के फर्क को मिटा दिय ,तथा मुुस्लिम एवं गैर मुुस्लिम सबके साथ नरमी का बर्ताव किया, चुनांचे मुसलमानों के जकात की जगह गैर मुस्लिमों पर केवल जिज्या का मामूली कर लगाया, इसी प्रकार गुलामों को आजाद करने की शिक्षा देकर खुद उस पर अमल करके बताया, हुनैन लड़ाई के अवसर पर हजारों गैर मुस्लिम गुलामों को आजाद करके दिखायाा, हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जहां धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा वहीं अपने धर्म इस्लाम का सारांश हज्जतुलवदा के अवसर पर बयान करते हुए फरमाया, क्या मैं तुम्हें ना बताऊं कि मोमिन कौन है? मोमिन वह है जिससे लोगों का माल और जान शांति में रहे, और मुसलमान वह है जिसके हाथ और जबान से दूसरे मुसलमान सुरक्षित रहें।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पूरा जीवन इस पवित्र शिक्षा का सुंदर आदर्श था, आपको अपने जीवन में विभिन्न धर्मों से वास्ता पड़ा जिनमें मुशरिकीन यहूदी नसारानी आदि थे, परंतु आपने इन सब के साथ सदैव ही उत्तम मानवीय संबंधों को बनाए रखा और चरित्र के सुंदर नमूने दिखाएं, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मदीना स्थानांतरण के बाद मक्का में कठिन अकाल पड़ गया, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके अनुरोध पर न केवल उनके लिए दुआ की बल्कि उनकी सहायता के लिए प्रभावित लोगों के लिए कुछ रकम भी भिजवाई, और आपकी दुआ के परिणाम स्वरूप बारिश हुई और अकाल दूर हो गया, इस अवसर पर जब एक मुसलमान सरदार ने मक्का के मुशरिकीन को गल्ला भेजना बंद कर दिया तो आप हजरत सल्लल्लाहो वसल्लम ने उसे निर्देश दिया कि मुशरिकीन का गला ना रोका जाए और उनके पास जाने दिया जाए, इस तरह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुशरिकीन के साथ सहिष्णुता के कई उदाहरण मौजूद हैं, एक बार ताइफ के मुशरिकीन का समूह आया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें मस्जिद-ए-नबवी में ठहराया, सहाबा ने आपत्ति जताई कि कुरान के अनुसार तो मुशरिक अपवित्र हैं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया उनकी नापाकी का संबंध हृदय से है ना कि शरीर से, और इस अपवित्रता को अच्छे चरित्र और नेक व्यवहार से दूर किया जा सकता है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के धार्मिक सहिष्णुता की एक उदाहरण (मीसाके मदीना) मदीना समझौता है, मदीना आगमन पर आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने मदीना के यहूदियों से एक अमन शांति समझौता किया जिसके अनुसार मुसलमान और यहूदी एक ही राष्ट्र (कौम) समझे जाएंगे, और यहूद को मदीने में पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता दीी, और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनके निर्णय उनके धर्म धर्म के अनुसार ही किया करते थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके शिक्षण संस्थानों में जाकर उनको संबोधित भी किया, इसी तरह मदीने के यहूदी मस्जिद-ए-नबवी में रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल करते और उनका जवाब उनको दिया जाता था, आप सल्लल्लाहुुअलैहि वसल्लम यहूदियों के भोज निमंत्रण को भी स्वीकार करते थे, जब यहूदी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में उपस्थित होते थे तो आप उनके साथ अच्छा व्यवहार करते थे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सभा में जब किसी यहूदी को छींक आती थी तो आप सल्लल्लाहु अलैैहि वसल्लम उसको दुआ देते कि अल्लाह तुम्हें हिदायत नसीब फरमाए, तुम्हें सत्य मार्ग पर चलाएं, तुम्हारा हाल अच्छा कर दे, जब किसी यहूदी के बीमार होने की सूचना आपको मिलती तो आप उसको देखने के लिए जाते थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीने में एक यहूदी घरेलू नौकर की बीमारी में उसके घर स्वयं जाकर उसकी देखरेख की।

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अन्य धर्म के मरहूमीन का भी सम्मान करते और मानवीय मूल्यों को स्थापित करते, हजरत अब्दुल रहमान बिन अबी लैला बयान करते हैं कि सहल बिन हनीफ और कैस बिन सअद कादसिया के स्थान पर बैठे हुए थे कि उनके पास से एक जनाजा गुजरा, वह दोनों खड़े हो गए, जब उनको बताया गया कि यह अन्य धर्मों में से है, तो दोनों ने कहा कि एक बार नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास से एक जनाजा गुजरा तो आप सम्मान में खड़े हो गए आपको बताया गया कि यह तो एक यहूदी का जनाजा है, इस पर रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि क्या वह मनुष्य नहीं है, यह सम्मान है दूसरे धर्म का भी और मानवता का भी, यही आदर्श और नमूने हैं जिनसे धार्मिक सहिष्णुता का वातावरण पैदा होता है और यही वह व्यवहार हैं जिनसे एक दूसरे के लिए नरम भावनाएं पैदा होती है, और यह भावनाएं ही हैं जिनसे प्यार मोहब्बत और शांति का वातावरण पैदा होता है, ना कि आजकल के दुनियादारो की तरह, की केवल नफरतों के वातावरण पैदा करने के और कुछ नहीं, एक रिवायत में आता है फत्हे खैबर के अवसर पर मुसलमानों को तौरात के कुछ संस्करण मिले, यहूदी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में उपस्थित हुए और कहने लगे कि हमारी पवित्र किताब हमें वापस की जाए, तो रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा को आदेश दिया कि उनकी धार्मिक पुस्तकें उनको लौटा दी जाएं, इन सब बातों से यह स्पष्ट है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने धार्मिक सहिष्णुता का भरपूर विकास किया तथा अपने अनुयायियों को भी ऐसा करने का आदेश दिया, फत्हे खैबर के अवसर पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में यहूद शिकायत लेकर आए कि मुसलमानों ने उनके पशु लूट लिए और फल तोड़ दिए, हैं नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस पर उनको डांटा कि तुम बिना अनुमति किसी के घर घुस जाओ और फल वगैरा तोड़ दो, जैसा कि पहले वर्णन हो चुका है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हर धर्म और समुदाय के निमंत्रण को स्वीकार करते थे, फत्हे खैबर के अवसर पर एक यहूदी औरत की तरफ से भोज निमंत्रण में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में भुनी हुई बकरी प्रस्तुत की गई जिसमें जहर मिलाया गया था, आपने मुंह में लुकमा डाला ही था कि अल्लाह ताला की ओर से ज्ञान पाकर उगल दिया, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यहूदियों को इकट्ठा किया और फरमाया, मैं एक बात पूछता हूँ क्या सच-सच बताओगे, उन्होंने कहा हां, आप ने फरमाया क्या तुमने इस बकरी में जहर मिलाया था, उन्होंने कहा हां, आपने फरमाया किस चीज ने तुम्हें इस बात पर उभारा, उन्होंने कहा हमने सोचा अगर आप झूठे हैं तो आपसे मुक्ति मिल जाएगी, और अगर आप नबी हैं तो आपको यह जहर कुछ हानि नहीं पहुंचाएगा, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुशरिकीन, और यहूदियों के अतिरिक्त ईसाइयों के साथ भी धार्मिक सहिष्णुता स्थापित करते हुए उनसे अच्छा व्यवहार किया, चुनांचे जब नजरान के ईसाई आपकी सेवा में उपस्थित हुए और धार्मिक बहस के दौरान बात मोबाहिला तक जा पहुंची, तो भी उनकी इबादत के समय रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मस्जिद-ए-नबवी में ही उन्हें इबादत की अनुमति प्रदान कर दी।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम धार्मिक सहिष्णुता पर बहुत बल देते थे और स्वयं भी उसका पालन करके दिखाते थे, यमन का एक ईसाई समूह आपसे धार्मिक वार्ता करने के लिए आया जिसमें उनके बड़े बड़े पादरी भी थे, मस्जिद में बैठकर वार्ता आरंभ हुई और आर वार्ता लंबी हो गई, इस पर उस समूह के एक पादरी ने कहा कि अब हमारी उपासना का समय हो गया है हम बाहर जाकर अपनी उपासना कर आएं, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया बाहर जाने की क्या आवश्यकता है हमारी मस्जिद में ही अपनी उपासना कर लें, आखिर हमारी मस्जिद अल्लाह की इबादत एवं उपासना ही के लिए बनाई गई है।

अर्थात महामान्य मानवता उपकारक हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जाति धर्म का भेदभाव किए बिना विश्व को सहिष्णुता का ऐसा पाठ पढ़ाया है जिसका पालन करने से फित्ना फसाद जुल्म आदि समाप्त हो सकते हैं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने धार्मिक सहिष्णुता के जो आदर्श दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किए हैं उसे कोई दूसरा नहीं कर सकता, यह केवल आप ही की विशेषता और कमाल था, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने केवल मुसलमानों पर ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों के लोगों के साथ साथ पूरे मानव समाज पर बड़े उपकार किए हैं, अतः वर्तमान समय में विश्व में अमन एवं शांति की स्थापना तथा मानवता के कल्याण के लिए अंतिम संदेष्टा हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बताए हुए मार्ग पर चलने की आवश्यकता है।

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