ये सफ़र ए कूए जानां है यहां क़दम क़दम पर बलाएं हैं
जिसे ज़िन्दगी हो प्यारी वो यहीं से लौट जाओ
यह मुलाकात करीब 5 महीने 18 दिन बाद हुई 16 फरवरी को जब ए टी एस ने हमें छोड़ा,तब से गुजरात जाने का इत्तेफाक ही नहीं हुआ केस के सारे मामलात मौलाना शम्स-उल-हुदा साहब आदि देखते रहे। हज़रत के हालात उनके संदेश भी मिलते रहे इस लिए जाना नहीं हो पा रहा था पिछली तारीख पर मौलाना शमसुलहोदा से हजरत ने कहा कि मौलाना अकील को ज़रूर लाऐं अगली तारीख 21 जुलाई थी, इसलिए मैं दो दिन पहले ही दिल्ली से मुंबई आ गया। फिर हम लोग यहां से अहमदाबाद पहुंचे 11 बजे हाईकोर्ट गये सुनवाई हुई आगे की सुनवाई के लिए अगली तारीख दे दी गई। उसके बाद हम उस्मानी साहब से मिलने जेल गए। जब हज़रत सामने आए वो स्थिति बयान नहीं की जा सकती। उनके चेहरे पर कमज़ोरी के संकेत ज़रूर थे, लेकिन उनकी आवाज़ में कोई कपकपाहट नहीं थी। चेहरा पहले की तरह तर व ताज़ा था।उसी स्वर में कहा, मिशन की स्थिति क्या है, बताया गया, फिर जेब से एक पर्ची निकाली और जल्दी जल्दी बोले यह काम करना है।
जब हम लोग अलग होने लगे तो हज़रत ने एक शेर पढ़ा
हट कर चलें वो हम से जिन्हें सर अज़ीज़ हो
हम सर फिरों के साथ कोई सर फिरा चले
अज़ीज़ दोस्तो
इस मुलाकात का जिक्र इसलिए जरूरी था ताकि हम सब अपने उस मुहसिन की कुर्बानी को जान सकें जिसने नामूस ए मुस्तफा की हिफाजत के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाया हुआ है। मिशन को हर चीज से पहले रख दिया। आपको बता दें कि उस्मानी साहब का 12/15 साल का एक बेटा और 9/10 साल की बेटी भी है लेकिन अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि इस मुजाहिद ने मिशन से पहले कभी परिवार के बारे में पूछा हो।
अज़ीज़ दोस्तो
उस्मानी साहिब क़िबला हफ़ीज़ुल्लाह द्वारा दिखाए गए साहस और बहादुरी के ऐसे उदाहरण मिलना बहुत मुश्किल है, इसलिए हम सभी के लिए यह आवश्यक है कि अगर हम उनके साथ नहीं चल सकते,तो कम से कम उनके साथ होने का एहसास तो दिला ही सकते हैं
अंत में, मैं यह भी स्पष्ट कर दूं कि तहरीक फ़ोरो इस्लाम का किसी भी प्रकार की हिंसा या अवैध गतिविधि से कोई लेना-देना नहीं है, हां हम अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते हुए, हमने हर ज़ुल्म का विरोध किया है और अंत तक ऐसा करते रहेंगे। चाहे ये ज्यादती सरकार करे या आम नागरिक।
अक़ील अहमद फैज़ी
9473962637


