मसाइल-ए-दीनीया

रोज़े के मकरूहात

सवाल:
रोज़े के मकरूहात क्या क्या है ?

۞۞۞ जवाब ۞۞۞

१. बिला उजर किसी चीज़ का चबाना।
अलबत्ता किसी औरत का शोहर बद मिजाज़ हो, और खाना ख़राब होने पर उसके गुस्से होने का अंदेशा हो तो उसे नमक ज़बान की नोक पर रख कर चखने की इजाज़त है।

इसी तरह अगर छोटे बच्चे को रोटी चबा कर खिलlने की ज़रूरत हो और रोज़ेदार औरत के अलावा वहां उस ज़रूरत का पूरा करनेवाला कोई ना हो तो वोह उसे चबा कर दे सकती है।
लेकिन ये एहतियात होना चाहिए के ऐसा करने में नमक या रोटी का कोई हिस्सा हलक़ के निचे न उतरने पाए।
वरना रोज़ा जाता रहेगा।

२. रोज़े की हालत में टूथपेस्ट इस्तिमाल करना. कोयला या कोई मंजन दांतो में मलना, या औरत का इस तरह होंठ पर सुर्खी लिपस्टिक लगाना के उसके पेट में चले जाने का अंदेशा हो।

३. रोज़े की हालत में बीवी से दिललगी करना भी मकरूह हे. जब के जिमा-सोहबत या इंज़ाल-मनी निकलने का खौफ हो.

४. रोज़े में हर ऐसा काम करना मकरूह हे जिस से इस क़दर कमज़ोरी का अंदेशा हो के रोज़ा तोडना पड़ेगा।

५. नाक में पानी चढाने और कुल्ली करने में मुबालगा -हद से ज़यादती करना।

६. सहरी में इतनी ताख़ीर करना के वक़्त में शक पैदा हो जाये।

७. नहाने की हाजत हो जाने पर जानबूझ कर सुबह सादिक़ के बाद तक गुसल में ताख़ीर करना।

८. बेक़रारी और घबराहट ज़ाहिर करना।

९. मुँह में थूक जमा करके निगलना.
वैसे बिला जमा किये निगलना मकरूह नहीं।

१०. रोज़े की हालत में किसी भी किसम के गुनाह का काम करना।

११ औरत के लिए शौहर की मौजूदगी में और सोहबत पर कुदरत होने की हालत में उसकी इजाज़त के बगैर नफली रोज़ा रखना।
📗सवमे महमूद सफा ३०, ३१
📘 किताबुल मसाइल २/१७५

و الله اعلم بالصواب

मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
उस्ताज़ दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया

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