13 जुलाई 1878 का दिन था बर्लिन में कांग्रेस की महफ़िल सज रही थी। दरअसल इस महफ़िल में जंग में शिकस्तखुर्दा उस्मानी सल्तनत के एक बड़े इलाके का बंदरबांट होना था। इस महफ़िल में उस्मानिया सल्तनत के नुमाइंदों समेत यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रिया-हंगरी, फ्रांस, जर्मनी, इटली और रूस सहित यूरोप के कई बड़ी ताकतों ने शिरकत की थी। और इन तमाम मुल्कों के नुमाइंदों ने इस मोआहिदे पर अपने दस्तखत किये थे।
इस संधि ने बाल्कान के इलाके से तक़रीबन सल्तनत का खात्मा कर दिया था। इसके अलावा उस्मानियों ने रोमानिया, सर्बिया और मोंटेनेग्रो की असल खुदमुख्तार रियासतों की आज़ादी को भी तस्लीम किया।
1876-1878 के सर्बो-तुर्की जंग के दौरान, रूस ने सल्तनते उस्मानिया को धमकी दी की वह जंग को रोकने के लिए सर्बियाई लोगों के साथ एक मोआहिदे पर दस्तखत करें। पहली सर्बो-तुर्की जंग उस्मानियों ने जीत ली थी लेकिन सर्बिया को रुसी हिमायत की वजह से उस्मानिया सल्तनत दूसरी जंग हार गयी। जिसके बाद रूस की जानिब से उस्मानिया सल्तनत पर सैन स्टेफानो की संधि थोपी गई।
13 जून से 13 जुलाई, 1878 तक, अहम् यूरोपीय ताकतों के नुमाइंदे बर्लिन में सैन स्टेफ़ानो की संधि पर फिर से बातचीत करने के लिए इकट्ठा हुए। कांग्रेस ने न केवल रूस-तुर्की जंग बल्कि बाल्कन में भी कई संघर्षों को हल करने की मांग की।
बर्लिन के मोआहिदे की शराएत के मुताबिक उस्मानियों ने सल्तनत के इलाके का पांचवां हिस्सा और बल्कान और मशरिक़ी अनातोलिया में अपनी आबादी का पांचवां हिस्सा खो दिया। हथियार डालने वाले इलाकों में अनातोलिया के काकेशस के इलाके में तीन सूबे थे – कार्स, अर्धहन और बटुम।