इमाम हसन व इमाम हुसैन से मुहब्बत करना जरूरी: मुफ्ती-ए-शहर
गोरखपुर। माहे मुहर्रम की पहली तारीख़ से शहर की विभिन्न मस्जिदों में जारी महफिल ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ के तहत गुरुवार को कर्बला का वाकया बयान हुआ। जिसे सुनकर लोग गमगीन हो गए।
मस्जिद फैजाने इश्के रसूल अब्दुल्लाह नगर में मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया हसन और हुसैन जन्नती जवानों के सरदार हैं। जिसने हसन और हुसैन से मुहब्बत की तो उसने मुझसे मुहब्बत की और जिसने उन दोनों से दुश्मनी की उसने मुझसे दुश्मनी की। एक जगह आपने इरशाद फरमाया कि जिसने इन दोनों को महबूब रखा उसने मुझको महबूब रखा और जिसने मुझको महबूब रखा उसने अल्लाह को महबूब रखा और जिसने अल्लाह को महबूब रखा अल्लाह ने उसको जन्नत में दाखिल किया। जिसने इन दोनों से नफ़रत की उसने मुझसे नफ़रत की। जिसने मुझसे नफ़रत की उसने अल्लाह से नफ़रत की। जिसने अल्लाह से नफ़रत की। अल्लाह ने उसको जहन्नम में दाखिल किया।
जामा मस्जिद मुकीम शाह बुलाकीपुर में मौलाना रियाजुद्दीन क़ादरी ने कहा कि कर्बला के मैदान में जबरदस्त मुकाबला हक़ और बातिल के बीच शुरू हुआ। तीर, नेजा और शमशीर के बहत्तर जख्म खाने के बाद इमाम हुसैन सज्दे में गिरे और अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए शहीद हो गए। करीब 56 साल पांच माह पांच दिन की उम्र शरीफ में जुमा के दिन मुहर्रम की दसवीं तारीख़ सन् 61 हिजरी में इमाम हुसैन ने इस दुनिया को अलविदा कहा। साहबजादगाने अहले बैत (पैगंबर-ए-आज़म के घराने वाले) में से कुल 17 हज़रात हज़रत इमाम हुसैन के हमराह हाजिर होकर रुतबा-ए-शहादत को पहुंचे। कुल 72 अफराद ने शहादत पाई। यजीदी फौजों ने बचे हुए लोगों पर बहुत जुल्म किया।
मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व उनके जांनिसार साथियों ने कर्बला के मैदान में अज़ीम कुर्बानी दी और दीन-ए-इस्लाम को बचा लिया।
मकतब इस्लामियात तुर्कमानपुर में नायब काजी मुफ्ती मो. अजहर शम्सी ने कहा कि कर्बला की जंग यही बताती है कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन हक़ के लिए शहीद हुए। मुहर्रम सच के लिए शहीद हो गए इमाम हुसैन को याद कर उनके बताए रास्ते पर चलने के वादा करने का दिन है। हज़रत सैयदना इमाम हुसैन और उनके साथियों की तादाद सौ से भी कम थी, जबकि यजीद के फौजी हजारों के तादाद में थे फिर भी उन लोगों ने हार नहीं मानी और पूरी बहादुरी के साथ लड़े उनकी बहादुरी से एक बारगी तो यजीद के फौजियां के दिल भी दहल गये। सबसे आखिर में लड़ते-लड़ते इमाम हुसैन ने सज्दे में अपना सर कटा दिया। इससे पहले अपने तमाम साथियों को अपनी आंखों से उन्होंने शहीद होते देखा। वह तारीख थी 10वीं मुहर्रम। मुहर्रम में उस अज़ीम कुर्बानी को याद करके इमाम हुसैन की बारगाह में खिराज-ए-अकीदत पेश किया जाता है
जामा मस्जिद रसूलपुर में मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि हज़रत इमाम हुसैन ने नाना की उम्मत की खातिर शहादत कबूल की। कर्बला की जंग में हज़रत इमाम हुसैन ने संदेश दिया कि हक़ कभी बातिल से नहीं डरता। हर मोर्चे पर जुल्म व सितम ढ़ाने वाले बातिल की शिकस्त तय है। हज़रत इमाम हसन हुसैन ने धर्म व सच्चाई की हिफाजत के लिए खुद व अपने परिवार को कुर्बान कर दिया, जो शहीद-ए-कर्बला की दास्तान में मौजूद है। हम सब को भी उनके बताए रास्ते पर चलने की जरूरत है। अंत में सलातो-सलाम पढ़कर दुआ मांगी गयी। शीरीनी बांटी गयी।