ALT न्यूज के मोहम्मद ज़ुबैर को जमानत देते हुए कोर्ट ने जो टिप्पणी की है, वो काबिल-ए-गौर है।
कोर्ट ने कहा–
‘एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति के स्वर आवश्यक हैं।इसीलिए महज़ किसी राजनैतिक दल की आलोचना के संबंध में IPC की धारा 153 A और 295 A लगाना न्यायोचित नहीं है”
हिंदू धर्म सबसे प्राचीन और उदार धर्मों में से एक है. बड़ी संख्या में हिंदू अपने प्रतिष्ठानों और बच्चों के नाम देवी देवाताओं के नाम पर रखते हैं. ऐसा करना तब तक 153A और 295A के तहत नहीं आएगा, जब तक मकसद में खोट न हो।
पटियाला हाउस कोर्ट जज ने आगे कहा… आरोपी ने जो तस्वीर पोस्ट की थी,वो 1983 में आई फिल्म एक सीन था. इसे भारत सरकार के सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन द्वारा प्रमाणित किया गया था और तभी से ये फिल्म सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है. आज तक ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली कि अमुक सीन से किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंची हो. मामले की जांच कर रहे इंवेस्टिगेटिंग ऑफिसर IO ने अभी तक उस ट्विटर यूज़र का पता नहीं लगाया है, जिसकी भावनाएं कथित रूप से आरोपी के ट्वीट के चलते आहत हुईं. और न ही धारा 161 सीआरपीसी के तहत इस यूज़र या किसी और के बयान ही दर्ज किए गए।
आगे कहा- आरोपी 5 दिन पुलिस कस्टडी में था और अब न्यायिक हिरासत में है।अब और पूछताछ की आवश्यकता नहीं है। अतः आरोपी को सलाखों के पीछे रखने की आवश्यकता नहीं है।
अडिशनल सेशंस कोर्ट,पटियाला हाउस