महिलाओं की महफ़िल का अंतिम दिन
गोरखपुर। मंगलवार को मदरसा जामिया कादरिया तजवीदुल क़ुरआन लिल बनात अलहदादपुर में महिलाओं की दीनी महफ़िल के अंतिम दिन आलिमा गौसिया अंजुम ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम में कुर्बानी देना वाजिब है। पैगंबर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम व पैगंबर हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी का वाकया ईद-उल-अज़हा पर्व की बनुियाद है। ईद-उल-अजहा पर्व शांति व उल्लास के साथ मनाएं। क़ुर्बानी रोजगार का बहुत बड़ा जरिया भी है। तीन दिन तक होने वाली कुर्बानी से जहां गरीब तबके को मुफ्त में गोश्त खाने को मिलता है वहीं मदरसा, पशुपालक, बूचड़-कसाई, पशुओं व चमड़े को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाले गाड़ी वालों, चारा व पत्ते बेचने वालों, रोटियां बनाने वाले होटलों एवं चमड़ा फैक्ट्रियों को काफी लाभ होता है। लाखों लोगों का रोजगार कुर्बानी से जुड़ा हुआ है। कुर्बानी का गोश्त पास-पड़ोस, गरीब, फकीर मुसलमानों में जरूर बांटा जाए। कुर्बानी के जानवर के चमड़े के साथ बेहतर रकम मदरसों को दी जाए। जिससे मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को सहूलियत हो। महिलाएं भी कुर्बानी का जानवर जिब्ह कर सकती हैं।
आलिमा महजबीन खान सुल्तानी सुल्तानी ने कहा कि खास जानवर को खास दिनों में कुर्बानी की नियत से जिब्ह करने को कुर्बानी कहते हैं। दीन-ए-इस्लाम में जानवरों की कुर्बानी देने के पीछे एक मकसद है। अल्लाह दिलों के हाल से वाकिफ है, ऐसे में अल्लाह हर शख़्स की नियत को समझता है। जब बंदा अल्लाह का हुक्म मानकर महज अल्लाह की रज़ा के लिए कुर्बानी करता है तो उसे अल्लाह की रज़ा हासिल होती है। बावजूद इसके अगर कोई शख़्स कुर्बानी महज दिखावे के तौर पर करता है तो अल्लाह उसकी कुर्बानी कबूल नहीं करता।