जावेद शाह खजराना (लेखक)
इंदौर से 100 किलोमीटर दूर
आनंद नगरी मांडव में सैकड़ों खुरासानी इमली के दरख़्त है। जो आकार में इतने बड़े है जैसे तीन मंजिला मकान।
गौर से देखने पर लगता है कोई दानव हाथ फैलाएं खड़ा हो। हकीकत में ये दरख़्त बहुत अजीबोगरीब दिखते है।
इन दरख़्तों की गोलाई के क्या कहने इनके अंदर सुराख़ करके आदिवासी घर बना लेते है।
इसका फल जब दरख़्त पर आता है तो किसी चिड़िया के बड़े घोसले जैसा दिखाई पड़ता है।
जी हां दोस्तों मांडव की इमली का फल अंडाकार और साइज में करीब 1 फिट से अधिक रहता है। अंदर अमचूर जैसा स्वादिष्ट गुच्छा। खाओ तो पानी की शिद्दत महसूस ना हो। मुँह रस से भर जाए।
कहते है इन दरख़्तों के पौधे और बीज यहाँ के सुल्तान महमूद शाह ख़िलजी को बगदाद के ख़लीफ़ा ने बतौर नज़राना भेजे थे। यहाँ की दारुल हुकूमत को ख़लीफ़ा की तरफ से इस्लामी हुकूमत का दर्जा हासिल था।
कभी लाखों की आबादी में मुसलमान आबाद थे यहाँ।
चारों तरफ मस्जिदों से अजाने और मंदिरों की घण्टियों की सदाएं गूंजती थी। सल्तनत दौर में यहाँ सैकड़ों मस्जिदें थी। जिसकी टक्कर हिंदुस्तान में कोई और दुसरी मस्जिद नहीं कर सकती थी। दिल्ली की जामा मस्जिद भी यहाँ की मस्जिदों से बहुत छोटी थी। बल्कि यहाँ की जामा मस्जिद तो दमिश्क की मस्जिद की नकल है , जो आज भी ऊंचाई पर सीना ताने खड़ी है। अकेले मांडव में बड़ी-बड़ी 12 जामा मस्जिदें है जो आज भी एक रिकॉर्ड है। यहाँ के महल, खण्डर और खामोशी से खड़े दरवाज़े मांडव के गुजरे वक्त की शान बयान करते है ।
अब ना वो लोग रहे। ना वो महलों की रौनकें। ना बाज़ार। ना बगीचे।
फिर भी आज यहाँ कई बादशाहों और पीर-फ़क़ीरों की बेशुमार मज़ारे है। जो आने वाले पर्यटकों से मानो बोल रही हैं।
हयात उसी की है जिसका ज़मीर ज़िंदा है
अमीर (राजा) मर गए , लेकिन फ़क़ीर (वली) ज़िंदा है।
शेर का मतलब………मांडव में बड़े-बड़े बादशाहों ने हुकूमत की लेकिन उनकी क़ब्रों पर आज कोई फूल भी पेश नहीं करता। इसलिए बादशाह हकीकत में मर गया क्योंकि अब कोई उसका नाम भी नहीं लेता।
इसी मांडव में बहुत से फ़क़ीरों की दरगाहें भी है। जहाँ आज भी चिराग रोशन होते है , फूल पेश होते है उनकी मज़ारों पर रौनक बिखरी रहती है। इसलिए फ़क़ीर ज़िंदा है